माता का इतिहास
माता हरसिद्धि के मंदिर का निर्माण कब ओर कैसे हुआ इसका कोई प्रमाण नही है; परन्तु यह मंदिर अतिप्राचीन और ऐतिहासिक है। चर्चाओं के मुताबिक कुछ लोग इसे महाराजा छत्रसाल के द्वारा बनवाये जाने की संभावना व्यक्त करते है क्योंकि सन 1726 ईस्वी मे सागर जिले में महाराजा छत्रसाल के द्वारा कई वार आक्रमणों का उल्लेख इतिहास मे वर्णित है।
चरवाहे ने देखा तो लिया पाषाण रुप
हरसिद्धि माता के बारे में भी अनेको किवदंतियों प्रचलित है। एक किंवदन्ती के अनुसार रानगिर में एक चरवाहा हुआ करता था चरवाहे की एक छोटी बेटी थी चरवाहे की बेटी के साथ एक वनकन्या रोज खेला करती थी एंव चरवाहे की बेटी को अपने साथ भोजन कराती थी तथा रोज एक चांदी का सिक्का देती थी।
चरवाहे को जब इस बात की जानकारी लगी तो एक दिन छुप कर दोनों कन्याओं को खेलते देख लिया। चरवाहे की जेसे ही नजर वनकन्या पर पडी़ तो उसी समय वनकन्या ने पाषाण रुप ले लिया। बाद में चरवाहे ने पाषाण रुप धारण कर चुकी कन्या का चबूतरा बना कर उस पर छाया आदी की और यही से भी हरसिद्धि की स्थापना हुई। धीरे- धीरे जनसहयोग से मंदिर का निर्माण कराया गया।