6 दिसंबर 2025,

शनिवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

Dev Bhoomi Temple: धारी देवी ने धारण कर रखें हैं चारों धाम, मंदिर के रहस्य रहते हैं हर जुबान पर

Dev Bhoomi Uttarakhand इन दिनों Joshimath में भूधंसाव के कारण सुर्खियों में हैं, इसको लेकर जनमानस में तरह-तरह की चर्चा हैं। लेकिन बता दें कि उत्तराखंड भारत की आध्यात्मिक संस्कृति का केंद्र है, जिसमें जोशीमठ नरसिंह मंदिर, बद्रीनाथ, केदारनाथ समेत कई मंदिर, लोगों की आस्था के केंद्र हैं (Joshimath Latest News) । इनमें से कई को आम लोग चमत्कारिक मानते हैं। इन्हीं में से एक है उत्तराखंड में श्रीनगर और रूद्र प्रयाग के बीच अलकनंदा तट पर स्थित धारी देवी मंदिर, जिसके कई बार न विश्वास होने वाली कहानी जन-जन की जुबान पर है।

3 min read
Google source verification

image

Pravin Pandey

Jan 08, 2023

dhari_devi_mandir.gif

धारी देवी मंदिर उत्तराखंड

सनातन संस्कृति परंपरा अनुसार चार धाम की यात्रा का बहुत महत्व है। इन्हें महातीर्थ भी कहा जाता है। सनातन धर्म के इन चारधामों में पहला है बद्रीनाथ, दूसरा जगन्नाथ पुरी, तीसरा रामेश्वरम और चौथा द्वारिका धाम। इसके अलावा उत्तराखंड में बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री को भी धाम कहा जाता है। इन धामों को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। आम लोगों की मान्यता है कि उत्तराखंड के धामों को धारण करने वाली एक देवी भी यहां देवभूमि उत्तराखंड (Dev Bhoomi Temple Uttarakhand) में विराजमान है।


मंदिर से मिलते हैं संकेतः लोगों का कहना है कि उत्तराखंड में इन चारों धामों को धारण करने वाली इस देवी के मंदिर (Dev Bhoomi Temple) में कोई या किसी भी प्रकार का परिवर्तन किया जाता है, तो उत्तराखंड के चारों धाम में जलजला आ जाता है। यहां तक की ये चारों धाम हिल जाते हैं। मान्यता है कि ये देवी मंदिर ही उत्तराखंड के चारों धामों को अपने में धारण किए हुए हैं।


जनमानस में तो यहां तक मान्यता है कि इन चारों धाम में आने वाली किसी आफत के संबंध में भी उत्तराखंड के चारों धामों को अपने में धारण करने वाली इस धारी देवी मां के मंदिर (Dev Bhoomi Temple) में संकेत मिलने शुरू हो जाते हैं।

ये भी पढ़ेंः JoshiMath Uttarakhand: जोशीमठ और बद्रीनाथ का पुस्तकों में क्या लिखा है भविष्य, जानें मान्यताएं


इसलिए धारी देवी नामः देवभूमि उत्तराखंड में देवी दुर्गा की अलग-अलग रूपों में पूजा होती है। ऐसे में बद्रीनाथ जाने वाले रास्ते पर देवभूमि के श्रीनगर से 15 किमी दूरी पर कलियासौड़ में अलकनन्दा नदी के किनारे सिद्धपीठ मां धारी देवी का मंदिर स्थित है(dhari devi mandir uttarakhand) । जिन्हें छोटे चार धाम को धारण करने वाला माना जाता है। इनका नाम धारण करने वाली देवी के नाम से ही धारी देवी पड़ा।


धारी देवी से जुड़ी मान्यताएं


उत्तराखंड का श्रीनगर शहर प्राचीन गढ़ नरेशों की राजधानी रहा है। यहीं मां धारी देवी का मंदिर है, जिसके बारे में जनमानस में कई मान्यताएं हैं। लोगों के अनुसार समूचा हिमालय क्षेत्र खासतौर से केदारनाथ मां दुर्गा और भगवान शंकर का मूल निवास स्थान है। इस केदारनाथ का मां धारी (dhari devi ) को द्वारपाल कहा जाता है। क्षेत्र के लोग तो ये भी कहते हैं कि साल 2013 में केदारनाथ में आई जलप्रलय भी मां धारी के कोप का ही परिणाम थी।

ये भी पढ़ेंः Sammed Sikhar: सम्मेद शिखर से आदिवासी समाज का भी नाता, जानिए क्यों करते हैं पूजा


स्थानीय लोगों के अनुसार धारी देवी मां काली (dhari devi) का ही एक रूप हैं। श्रीनगर में चल रहे हाइडिल-पॉवर प्रोजेक्ट के लिए साल 2013 में 16 जून की शाम मां धारी की प्रतिमा को प्राचीन मंदिर से हटा दिया गया था। प्रतिमा हटाने के कुछ घंटे बाद ही 17 जून को केदारनाथ में तबाही आ गई थी। जिसमें हजारों लोगों की जान गई। श्रद्धालुओं का मानना है कि मां धारी की प्रतिमा के विस्थापन की वजह से केदारनाथ का संतुलन बिगड़ गया था, जिस वजह से देवभूमि में प्रलय आई।

ऐसे में पहाड़ी बुजुर्गों का कहना है केदारनाथ विपदा का कारण मंदिर को तोड़कर मूर्ति को हटाया जाना है। ये प्रत्यक्ष देवी का प्रकोप है। पहाड़ के लोगों में यह मान्यता है कि पहाड़ के देवी-देवता जल्द ही रूष्ट हो जाते हैं और अपनी शक्ति से कैसी भी विनाशलीला रच डालते हैं। शाम छह बजे मूर्ति को उसके मूल स्थान से हटाया गया और रात्रि आठ बजे तबाही शुरू हो गई।

ये भी पढ़ेंः Tilkut Chauth 2023 date 2023: माघ चौथ व्रत से मिलता है सभी चतुर्थी पूजा का फल, नोट कर लें डेट

जनमानस में मां धारी देवी के चमत्कार


पहाड़ समेते पूरे उत्तराखंड में धारी देवी मंदिर के चमत्कारों की कहानियां दूर-दूर तक सुनाई देती हैं। कहते हैं मां धारी की प्रतिमा सुबह एक बच्चे के समान लगती है, दोपहर में उसमें युवा स्त्री की झलक मिलती है, जबकि शाम होते-होते प्रतिमा बुजुर्ग महिला जैसा रूप धर लेती है। कई श्रद्धालुओं की ओर से प्रतिमा में होने वाले परिवर्तन को साक्षात देखने का दावा भी किया जाता है।