
khatushyam temple
संत दादूदयाल के शिष्यों की नागा सेना ने ढूंढाड़ को बचाने के लिए लगातार दो सौ साल तक ३३ युद्धों में भाग लेकर त्यागमयी सेवा और कुर्बानी दी। वर्ष १७७९ में बादशाह शाह आलम द्वितीय के सूबेदार मुर्तजा अली खां भड़ेच करीब पचास हजार सैनिकों के साथ शेखावाटी होते हुए जयपुर पर हमला करने आया था। श्रीमाधोपुर को लूटने के बाद वह खाटू श्यामजी मंदिर को तोडऩे के लिए बढऩे लगा। तब दादू संत मंगलदास के नेतृत्व में नागा साधुओं ने शुरू में नाथावत व शेखावतों के साथ मिलकर मुगल सेना से मोर्चा लिया।
जयपुर से कछवाहा सेना के पहुंच जाने पर सभी ने मिलकर मुगलों से घोर संग्राम किया। युद्ध में दादू संत मंगलदास महाराज तो सिर कटने के बाद भी झुंझार बन लड़ते रहे। डूंगरी के चूहड़ सिंह नाथावत भी अपने दो पुत्रों के साथ युद्ध में शहीद हुए। सेवा के दलेल सिंह, दूजोद के सलेदी सिंह शेखावत, बलारा के हनुवंत सिंह, बखतसिंह खूड़ व सूरजमल ने सेना के हरावल में रह लड़ते हुए कुर्बानी दी।
युद्ध में कायमखानी मिश्री खां, कायस्थ अर्जुन व भीम के अलावा स्वरुप बड़वा, महादान चारण, मौजी राणा ने भी श्याम मंदिर को बचाने के लिए प्राण न्योछावर किए। इन सब वीरों ने मुर्तजा खां भड़ेच को उसके हाथी सहित मार दिया और मुगल सेना को भगा दिया। कुर्बानी देने वाले संत मंगलदास की आज भी पूजा होती है। इस युद्ध में देवी सिंह सीकर, सूरजमल बिसाऊ, नृसिंहदास नवलगढ़ और अमर सिंह दांता ने भी सेना सहित हिस्सा लिया। दादू पंथियों की सात बटालियनें थी।
एक वस्त्र में लंगोट व पांच शस्त्रों में तलवार, ढाल, तीर, भाला और कटार जैसे पौराणिक हथियारों से युद्ध करते थे। सबसे पहले कामां की तरफ से जयपुर पर होने वाले हमले में नागा संतों ने बहादुरी दिखाई। लुहारु की तरफ से जयपुर पर हमला रोकने के लिए दांतारामगढ़ व उदयपुर वाटी में नागा सेना भेजी गई। टोंक नवाब से अनबन हुई तब निवाई में नागा सेना भेजी गई। वर्तमान सचिवालय की बैरक्स में नागा पलटनें रहती थी।
नागा सेना ने खाटूश्यामजी के अलावा जोधपुर ,खंडेला,फतेहपुर,करौली, ग्वालियर, मंडावा, नवलगढ़ सहित करीब ३३ युद्धों में वीरता दिखाई। जयपुर के घाट दरवाजे की सुरक्षा का भार नागा सेना के पास रहा। कुंभ मेलों व संतों की सुरक्षा के लिए नागा संत हथियारों के साथ जाते रहे। विदेशी खान-पान की वजह से नागा सेना को द्वितीय विश्व युद्ध में विदेश नहीं भेजा गया। दादूपंथी शूरवीर व विद्वान महात्मा हुए, इनको शुरूसे ही शास्त्र व शस्त्रों का अभ्यास कराया जाता रहा।
- जितेन्द्र सिंह शेखावत
Published on:
22 Dec 2017 04:27 pm
बड़ी खबरें
View Allमंदिर
धर्म/ज्योतिष
ट्रेंडिंग
