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देवभूमि के प्रमुख शिव मंदिर, जहां आज भी होते हैं चमत्कार

Published: Nov 13, 2022 06:47:50 pm

– देवभूमि उत्तराखंड में भगवान शिव को शंकर, महादेव, भोलेनाथ, आशुतोष सहित कई नामों से जाना जाता है…

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Lord Shiv Mandir at DevBhoomi uttrakhand: सनातन धर्म में भगवान शंकर (शिव) कैलाशपति यानि कैलाश में रहने वाले माने गए हैं। भगवान शिव का पहाड़ों से गहरा नाता है, इनमें भी देवभूमि उत्तराखंड से तो भगवान शिव का काफी नजदीकी नाता है, तभी तो यहां मौजूद जागेश्वर धाम के पास उनके पदचिह्न तक मिलते हैं। ऐसे में आज हम आपको देवभूमि उत्तराखंड में मौजूद उनके प्रमुख मंदिरों में बता रहे हैं, इन मंदिरों के संबंध में मान्यता है कि इन मंदिरों में आज भी चमत्कार होते हैं।
: केदारनाथ मंदिर, रुद्रप्रयाग
भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में सम्मिलित होने के साथ ही यह चार धाम और पंच केदार में से भी एक है। यहां की प्रतिकूल जलवायु के कारण यह मन्दिर अप्रैल से नवंबर माह के मध्‍य ही दर्शन के लिए खुलता है। पत्‍थरों से बने कत्यूरी शैली से बने इस मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पाण्डवों के पौत्र महाराजा जन्मेजय ने कराया था। यहाँ स्थित स्वयम्भू शिवलिंग अति प्राचीन है। आदि शंकराचार्य ने इस मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया।
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इस मन्दिर की आयु के बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है, पर एक हजार वर्षों से केदारनाथ एक महत्वपूर्ण तीर्थ रहा है। राहुल सांकृत्यायन के अनुसार ये 12-13वीं शताब्दी का है। एक मान्यतानुसार वर्तमान मंदिर 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा बनवाया गया जो पांडवों द्वारा द्वापर काल में बनाये गए पहले के मंदिर की बगल में है। मंदिर के बड़े धूसर रंग की सीढ़ियों पर पाली या ब्राह्मी लिपि में कुछ खुदा है, जिसे स्पष्ट जानना मुश्किल है।
केदारनाथ जी के तीर्थ पुरोहित इस क्षेत्र के प्राचीन ब्राह्मण हैं, उनके पूर्वज ऋषि-मुनि भगवान नर-नारायण के समय से इस स्वयंभू ज्योतिर्लिंग की पूजा करते आ रहे हैं, जिनकी संख्या उस समय 360 थी। पांडवों के पोते राजा जनमेजय ने उन्हें इस मंदिर में पूजा करने का अधिकार दिया था, और वे तब से तीर्थयात्रियों की पूजा कराते आ रहे हैं।

: जागेश्वर मंदिर, अलमोड़ा
जागेश्वर भगवान सदाशिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक होने के संबंध में कई तर्क मौजूद होने के बावजूद इसे ज्योतिलिंग का दर्जा आज तक नहीं दिया गया है। इसे “योगेश्वर” के नाम से भी जाना जाता है। ऋगवेद में ‘नागेशं दारुकावने” के नाम से इसका उल्लेख मिलता है। महाभारत में भी इसका वर्णन है, इसी आधार पर कई भक्त इन्हें ज्योतिलिंग मानते हैं।
मान्यता के अनुसार इस मंदिर के पास ही भगवान शिव के पदचिंह्न भी मौजूद हैं, और कहा जाता है यहीं से उन्होंने अपना दूसरा पैर कैलाश पर रखा था। मानसखंड में भी इसका जिक्र मिलता है। इस मंदिर का कीलन स्वयं आदि शंकराचार्य द्वारा किया गया बताया जाता है।

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जागेश्वर के इतिहास के अनुसार उत्तरभारत में गुप्त साम्राज्य के दौरान हिमालय की पहाडियों के कुमाउं क्षेत्र में कत्युरीराजा था। जागेश्वर मंदिर का निर्माण भी उसी काल में हुआ। इसी वजह से मंदिरों में गुप्त साम्राज्य की झलक दिखाई देती है।

मंदिर के निर्माण की अवधि को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा तीन कालों में बाटा गया है “कत्युरीकाल , उत्तर कत्युरिकाल एवम् चंद्रकाल”। अपनी अनोखी कलाकृति से इन साहसी राजाओं ने देवदार के घने जंगल के मध्य बने जागेश्वर मंदिर का ही नहीं बल्कि अल्मोड़ा जिले में 400 सौ से अधिक मंदिरों का निर्माण किया है।

 

: श्री प्रकाशेश्वर महादेव (शिव मंदिर) देहरादून
श्री प्रकाशेश्वर महादेव मंदिर हिंदू भगवान शिव का मंदिर है जो उत्तराखंड में देहरादून–मसूरी रोड पर स्थित है यह लोकप्रिय रूप से शिव मंदिर के रूप में जाना जाता है। इस शिव मंदिर में भगवान शिव का स्फटिक शिवलिंग है। देहरादून में कई शिव मंदिर हैं, लेकिन यह शिवमंदिर विशेष है इस मंदिर में हिंदू त्यौहार शिवरात्रि और सावन के महीनों में भक्तों का तांता लगा रहता हैं।

यह प्रकाशेश्वर महादेव मंदिर के रूप में भी जाना जाता है। यह शिव मंदिर देहरादून के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यहां आप भगवान और देवी की कई तस्वीरें और मूर्तियां देख सकते हैं। हर रोज मंदिर को फूलों से सजाया जाता है। शिवरात्रि और सावन के अवसर पर विशेष पूजाएं आयोजित की जाती हैं।

श्रद्धालुओं के लिए प्रतिदिन भंडारे का आयोजन किया जाता है, जहां उन्हें प्रसाद वितरित किया जाता है। यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां भक्त भगवान को कोई दान नहीं दे सकते। यह स्थान बहुत ही शांत है जो मन को पूर्ण विश्राम और शांति देता है।

 

: दंडेश्वर मंदिर अल्मोड़ा
उत्तराखंड के प्रमुख देवस्थलो में “जागेश्वर धाम या मंदिर” प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। यह उत्तराखंड का सबसे बड़ा मंदिर समूह है। यह मंदिर कुमाउं मंडल के अल्मोड़ा जिले से 38 किलोमीटर की दुरी पर देवदार के जंगलो के बीच में स्थित है। जागेश्वर को उत्तराखंड का “पांचवा धाम” भी कहा जाता है। जागेश्वर मंदिर में 124 मंदिरों का समूह है।

इनमें से दंडेश्वर मंदिर सबसे प्रमुख मंदिर माना जाता हैं। यह मंदिर जागेश्वर मंदिर परिसर से थोड़ा ऊपर की ओर स्थित है। दांडेश्वर मंदिर परिसर जीर्ण-शीर्ण स्थिति में है, जिसके कई अवशेष खंडहर में बदल गए हैं। यह स्थान अर्तोला गाँव से 200 मीटर की दूरी पर है जहाँ से जागेश्वर के मंदिर शुरू होते हैं इस जगह से विनायक क्षेत्र या पवित्र क्षेत्र शुरू होता है।

यह स्थान झंकार साईं मंदिर, वृद्ध जागेश्वर और कोटेश्वर मंदिरों के बीच स्थित है। डंडेश्वर मंदिर जागेश्वर में स्थित है ( जागेश्वर में 124 मंदिर समूह के बीच, दांडेश्वर उनमें से एक है। यह जागेश्वर मंदिर परिसर से थोड़ा ऊपर की ओर है।

: कलेश्वर महादेव मंदिर,पौड़ी गढ़वाल
कलेश्वर महादेव मंदिर सबसे मशहूर मंदिरों में से एक है, जिसे भगवान शिव के लिए बनाया गया था । यह मंदिर आकर्षण का केन्द्र है एवम् मंदिर में भगवान शिव का शिवलिंग शामिल हैं , जो स्वयं के आकार का है। भगवान शिव के प्रेमियों के लिए यह स्थान लोकप्रिय है। इस मंदिर के बारे में यह कहा जाता है कि 5000 वर्ष पहले इस स्थान पर कालून ऋषि तपस्या किया करते थे , उन्हीं के नाम पर इस मंदिर का नाम कलेश्वर पड़ा।
5 मई 1887 में गढ़वाल रेजिमेंट की स्थापना हुई और 4 नवंबर 1887 में रेजिमेंट की प्रथम बटालियन इस मंदिर पर पहुंची। साल 1901 में पहले गढ़वाल रेजिमेंट ने यहां एक छोटा सा मंदिर को धर्मशाला का निर्माण कराया।
: कोटेश्वर महादेव मंदिर रुद्रप्रयाग
कोटेश्वर मंदिर हिन्दुओ का प्रख्यात मंदिर है , जो कि रुद्रप्रयाग शहर से 3 कि.मी. की दुरी पर स्थित एक प्राचीन मंदिर है। कोटेश्वर महादेव मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। कोटेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण 14वि शताब्दी में किया गया था , इसके बाद 16 वी और 17 वी शताब्दी में मंदिर का पुनः निर्माण किया गया था।
चारधाम की यात्रा पर निकले ज्यादातर श्रद्धालु इस मंदिर को देखते हुए ही आगे बढते है , गुफा के रूप में मौजूद यह मंदिर अलकनंदा नदी के किनारे पर स्थित है। मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव ने केदारनाथ जाते समय , इस गुफा में साधना की थी और यह मूर्ति प्राकर्तिक रूप से निर्मित है। गुफा के अन्दर मौजूद प्राकृतिक रूप से बनी मूर्तियां और शिवलिंग यहाँ प्राचीन काल से ही स्थापित है।
: बिनसर महादेव मंदिर, रानीखेत
बिनसर महादेव मंदिर एक लोकप्रिय हिंदू मंदिर है । यह मंदिर रानीखेत से लगभग 20 किमी की दूरी पर स्थित है । कुंज नदी के सुरम्य तट पर करीब साढ़े पांच हजार फीट की ऊंचाई पर बिनसर महादेव का भव्य मंदिर है। समुद्र स्तर या सतह से 2480 मीटर की ऊंचाई पर बना यह मंदिर हरे-भरे देवदार आदि के जंगलों से घिरा हुआ है।
हिंदू भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर का निर्माण 10 वीं सदी में किया गया था। महेशमर्दिनी, हर गौरी और गणेश के रूप में हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियों के साथ निहित, इस मंदिर की वास्तुकला शानदार है। बिनसर महादेव मंदिर क्षेत्र के लोगों का अपार श्रद्धा का केंद्र है।
: दक्ष महादेव मंदिर, हरिद्वार
दक्ष/ दक्षेश्वर महादेव मंदिर कनखल हरिद्वार उत्तराखंड में स्थित है। यह बहुत ही पुराना मंदिर है, जो कि भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर हरिद्वार से लगभग 4 किमी दूर स्थित है। इस मंदिर का निर्माण 1810 AD में रानी धनकौर ने करवाया था और 1962 में इसका पुननिर्माण किया गया। इस मंदिर को “दक्षेश्वर महादेव मंदिर” एवम्“दक्ष प्रजापति मंदिर” के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर के बीच में भगवान शिव जी की मूर्ति लैंगिक रूप में विराजित है।
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यह मंदिर भगवान शिव जी के भक्तो के लिए भक्ति और आस्था की एक पवित्र जगह है। भगवान शिव का यह मंदिर देवी सती (शिव जी की प्रथम पत्नी) के पिता राजा दक्ष प्रजापति के नाम पर रखा गया है। इस मंदिर में भगवान विष्णु के पांव के निशान बने (विराजित) है , जिन्हें देखने के लिए मंदिर में हमेशा श्रद्धालुओ का तांता लगा रहता है।

 

: शिव कालेश्वर महादेव मंदिर,पौड़ी गढ़वाल
उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में लैंसडाउन एक छावनी शहर तथा सुंदर, सुदूर पहाड़ी स्टेशन है जिसमें बहुत सारे हरियाली और लंबे पेड़ हैं। भारत लॉर्ड लैंसडाउन के वाइसराय के बाद स्थापित किया गया। (14 जनवरी 1845 – 3 जून 1 9 27), पहाड़ी स्टेशन में शहर और आसपास के क्षेत्रों के भीतर कई पर्यटक स्थल हैं। इस क्षेत्र में कई शिव मंदिर स्थापित हैं।

भगवान शिव का एक सदियों पुराना मंदिर, कालेश्वर महादेव मंदिर लैंसडाउन लोगों के साथ-साथ बहादुर गढ़वाल रेजिमेंट के लिए भक्ति का केंद्र है। मुख्य लैंसडाउन शहर के पास स्थित, कालेश्वर महादेव का नाम ऋष कालून के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने यहां ध्यान किया कालेश्वर महादेव मंदिर में भगवान शिव भक्तों के बीच जाने के लिए पहली और पसंदीदा जगह संतों के लिए ध्यान की भूमि माना जाता था। आगंतुक अभी भी मंदिर के पास कई ऋषियों की समाधि देख सकते हैं।

 

: गोपेश्वर महादेव मंदिर,बागेश्वर
देवभुमि उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के धपोलासेरा में भद्रवती नदी के तट पर स्थित गोपेश्वर महादेव मंदिर हैं। यहां महाशिवरात्रि पर भव्य मेले का आयोजन किया जाता हैं। दूर-दूर के गांवों से भक्त मंदिर में आते हैं। सुबह से ही जलाभिषेक को लोगों की लंबी लाइन लगी। पूरे दिन मंदिर में पूजा अर्चना चलती रही।
गोपेश्वर महादेव क्षेत्र का एकमात्र शिव मंदिर है। यहां पर भगवान शिव की शिवरात्रि पर विशेष पूजा की जाती है। मंदिर के पुजारी रावल लोग हैं। स्थानीय लोगो का कहना हैं कि मंदिर की स्थापना द्वापर युग से हुई है। वहा के लोगो का कहना हैं कि यहां पर शिवलिंग की उत्पत्ति स्वयं हुई है। जिसकी गहराई भद्रवती नदी तक है।
इस शिवलिंग में जल अर्पण करने पर वह बाहर नहीं दिखाई देता है। कहते हैं कि पानी शिवलिंग से होकर नदी में समा जाता है। उन्होंने बताया कि जब क्षेत्र में बारिश नहीं होती तो इस मंदिर में सहस्त्र घट पानी चढ़ाया जाता है। इसके बाद लोगों की मन्नत पूरी हो जाती है।

: पंचेश्वर महादेव मंदिर , चम्पावत
पंचेश्वर महादेव मंदिर लोहाघाट , उत्तराखंड से लगभग 38 कि.मी. की दूरी पर काली एवं सरयू नदी के संगम पर स्थित है |पंचेश्वर महादेव मंदिर भगवान शिव का एक पवित्र मंदिर है । इस मंदिर को स्थानीय लोगों द्वारा चुमू (ईष्ट देवता) के नाम से भी जाना जाता है । स्थानीय लोग चैमु की जाट की पूजा करते हैं ।

मंदिर में भक्त ज्यादातर चैत्र महीने में नवरात्रि के दौरान आते हैं और इस स्थल पर मकर संक्रान्ति के अवसर पर विशाल मेले का आयोजन भी किया जाता है । पंचेश्वर महादेव मंदिर भगवान शिव का एक पवित्र मंदिर है। पंचेश्वर मंदिर में शिव की सुंदर मूर्ति और शिवलिंग नाग देवता के साथ स्थापित है। नदी के संगम पर डुबकी लगाना बड़ा ही पवित्र माना जाता है।

 

: बैरासकुंड महादेव, चमोली गढ़वाल
उत्तराखंड के चमोली जिले में बैरासकुंड गांव में स्थित, बैरास्कुंड महादेव मंदिर एक प्राचीन मंदिर है जो भगवान शिव को समर्पित है। बैरासकुंड में कई प्राचीन मंदिर हैं और बैरास्कुंड महादेव मंदिर उनमें से सबसे लोकप्रिय है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, रावण ने बैरासकुंड महादेव मंदिरमें भगवान शिव की पूजा की जाती हैं| यहाँ प्रतिदिन सुबह 4 बजे शुरू होता है।

मंदिर के मुख्य पुजारी और साधु, नेपाली महाराज, भगवान शिव की पूजा करते हैं और भगवान शिव को जल चढ़ाते हैं, और पूजा दोपहर 12 बजे तक की जाती हैं| गांव और आस-पास के गांव के लोग भगवान शिव की पूजा करने के लिए मंदिर में आते हैं और ग्रामीणों द्वारा विभिन्न धार्मिक समारोहों का आयोजन साल भर किया जाता है।

मंदिर समिति महा शिवरात्रि के दौरान मंदिर में एक धार्मिक मेले का आयोजन करती है। विभिन्न क्षेत्रों के लोग मेले में शामिल होते हैं और भगवान शिव से प्रार्थना करते हैं। सावन के माह में यहां शिवजी को जल चढाने के लिए भक्तों का तांता लगा रहता हैं।

 

: मोटेश्वर महादेव मंदिर, काशीपुर
मोटेश्वर महादेव मंदिर भगवान भीम शंकर महादेव के रूप में भी जाना जाता है जो उत्तराखंड राज्य में उधम सिंह नगर जिले के काशीपुर गाँव में भगवान शिव का मंदिर है। शिवलिंग की मोटाई अधिक होने के कारण ही इसे मोटेश्वर के नाम से जाना जाता है। प्राचीन काल में, इस जगह को डाकिनी राज्य के रूप में जाना जाता था।

यहाँ, भगवान शिव एक ज्योतिर्लिंग के रूप में देखा जा सकता है जिसे भीम शंकर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में भगवान शिव पीठासीन देवता हैं, लेकिन इस प्राचीन मंदिर में कुछ अन्य देवताओं की भी पूजा की जाती है। इसमें भगवान गणेश, कार्तिकेय स्वामी, देवी पार्वती, देवी काली, भगवान हनुमान और भगवान भैरव शामिल हैं। मोटेश्वर महादेव मंदिर का धार्मिक महत्व है और यह मंदिर शिव भक्तों के बीच बहुत लोकप्रिय है।

: क्यूंकालेश्वर महादेव मंदिर, पौडी गढ़वाल
क्यूंकालेश्वर महादेव मंदिर पौडी गढ़वाल से लगभग 2200 मीटर की उचाई में स्थित हैं। क्यूंकालेश्वर महादेव मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन 8 वीं शताब्दी का मंदिर है। यह अलकनंदा घाटी के किनारे बसा हुआ है और यहाँ हिमपात पर्वतमाला का सुन्दर दृश्य दिखाई देता हैं।

कालेश्वर मंदिर का वास्तुकला कुछ हद तक केदारनाथ के समान है। मंदिर भगवान शिव, देवी पार्वती, गणपति, कार्तिकेय, भगवान राम, देवी सीता और लक्ष्मण की मूर्तियों को दर्शाता है। भक्तों को मोटी वुडलैंड्स पार करना होता है और सीढ़ी आपको मंदिर ले जाती है। ऐसा माना जाता है कि अद्वैत वेदांत के संस्थापक आदि गुरु शंकराचार्य जी ने मंदिर का निर्माण किया था। महा शिवरात्रि इस मंदिर में आनंद के साथ मनाया जाता है।

 

: कमलेश्वर महादेव मंदिर, पौड़ी गढ़वाल
कमलेश्वर महादेव मंदिर उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में श्रीनगर क्षेत्र में स्थित अतिप्राचीनतम शिवालयों में से एक महत्वपूर्ण शिवालय है। कमलेश्वर महादेव मंदिर एक स्थान है , जहां भगवान विष्णु भगवान शिव की पूजा करते हैं और सुदर्शन चक्र के साथ आशीषें होती हैं।

स्कन्दपुराण के केदारखण्ड के अनुसार त्रेतायुग में भगवान रामचन्द्र रावण का वध कर जब ब्रह्महत्या के पाप से कलंकित हुये तो गुरु वशिष्ट की आज्ञानुसार वे भगवान शिव की उपासना हेतु देवभूमि पर आये इस स्थान पर आकर उन्होने सहस्त्रकमलों से भगवान शिव की उपासना की जिससे इस स्थान का नाम “कमलेश्वर महादेव” पड़ गया।

 

: नीलकंठ महादेव मंदिर, ऋषिकेश
नीलकंठ महादेव मंदिर , भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन पवित्र मंदिर है , जो कि उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में ऋषिकेश के स्वर्गाश्रम (राम झुला या शिवानन्द झुला) से किलोमीटर की दुरी पर मणिकूट पर्वत की घाटी पर स्थित है। मणिकूट पर्वत की गोद में स्थित मधुमती (मणिभद्रा) व पंकजा (चन्द्रभद्रा) नदियों के ईशानमुखीसंगम स्थल पर स्थित नीलकंठ महादेव मन्दिर एक प्रसिद्ध धार्मिक केन्द्र है ।

नीलकंठ महादेव मंदिर ऋषिकेश के सबसे पूज्य मंदिरों में से एक है। यह मंदिर समुन्द्रतल से1675 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। नीलकंठ महादेव मंदिर में बड़ा ही आकर्षित शिव का मंदिर बना है एवम् मंदिर के बाहर नक्काशियो में समुन्द्र मंथन की कथा बनायी गयी है। नीलकंठ महादेव मंदिर के मुख्य द्वार पर द्वारपालो की प्रतिमा बनी है।


: सत्येश्वर महादेव मंदिर, टिहरी गढ़वाल
सत्येश्वर महादेव मन्दिर प्रमुख हिन्दू मंदिर है जो कि बौराड़ी नई टिहरी की ढाल पर स्थित है। यह मंदिर लगभग 200 साल पुराना है। सत्येश्वर मन्दिर परिसर में तीन छोटे , दो मध्यम और एक मुख्य मन्दिर है। छोटे वाले मन्दिरों में से एक “भैरवबाबा का मंदिर” है तथा बाकी के दो मन्दिरों में कुछ स्थापना संबधी मतभेद के कारण किसी मूर्ति की स्थापना नहीं हो पायी है।

बायीं तरफ जो दो मध्यम आकार के बड़े मन्दिर हैं उनमें से एक में भगवान शिव तथा माता पार्वती की वरद हस्त मुद्रा में मूर्तियां स्थापित हैं, तथा दूसरे में मां त्रिपुरी सुन्दरी दुर्गा, विघ्नहर्ता गणेश और मां काली की भव्य मूर्तियां स्थापित हैं। इसके अलावा मुख्य मन्दिर में एक विशाल शिवलिंग और उसके पीछे माता लक्ष्मी और विघ्न हर्ता गणेश जी की मूर्तियां स्थापित हैं। शिवरात्री के अवसर पर मंदिर में भक्तो की भीड़ का तांता लगा रहता है।


: टपकेश्वर मंदिर, देहरादून
टपकेश्‍वर मंदिर एक लोकप्रिय गुफा मंदिर भगवान शिव को समर्पित है । टपकेश्वर मंदिर देहरादून शहर के बस स्टैंड से 5.5 किमी दूर स्थित एक प्रवासी नदी के तट पर स्थित है। यह मंदिर सिध्पीठ के रूप में भी माना जाता है। टपकेश्वर मंदिर में “टपक” एक हिन्दी शब्द है , जिसका मतलब है “बूंद-बूंद गिरना”। टपकेश्वर मंदिर एक प्राकर्तिक गुफा है , जिसके अन्दर एक शिवलिंग विराजमान है।

यह कहा जाता है कि गुफा के अन्दर विराजित शिवलिंग पर चट्टानों से लगातार पानी की बूंदे टपकती रहती है तथा पानी की बुंदे स्वाभाविक तरीके से शिवलिंग पर गिरती है। जिस कारण इस मंदिर का नाम “टपकेश्वर मंदिर” पड़ गया। मंदिर के कई रहस्य हैं और मंदिर के निर्माण के ऊपर भी कई तरह की बातें होती रहती हैं।

कोई कहता है कि यहां मौजूद शिवलिंग स्वयं से प्रकट हुआ है , तो कई लोग बताते हैं कि पूरा मंदिर ही स्वर्ग से उतरा है। यह माना जाता है कि मंदिर अनादी काल से इस स्थान पर विराजित है और यह भी माना जाता है कि यह पवित्र स्थान गुरु द्रोणाचार्य जी की तपस्थली है।


: ताड़केश्वर महादेव मंदिर, टिहरी गढ़वाल
ताड़केश्वर महादेव मंदिर टिहरी गढ़वाल जिले के लैंसडाउन क्षेत्र में स्थित पवित्र धार्मिक स्थान है। ताड़केश्वर महादेव मंदिर भगवान् शिवजी को समर्पित है। यह मंदिर समुन्दरी तल से 2092 मीटर ऊंचाई पर स्थित है।

ताड़केश्वर धाम मन्दिर 5 किमी की चौड़ाई मे फैला हुआ है। यह मंदिर बलूत और देवदार के पेड से घिरा हुआ है जो कि प्रकति की सुंदरता के लिये बहुत ही अच्छा है। साथ ही यहां कई पानी के छोटे छोटे झरने बहते हैं। ताड़केश्वर महादेव मंदिर को एक पवित्र स्थल माना जाता है।

 

: बिल्केश्वर महादेव मंदिर, हरिद्वार
बिल्केश्वर महादेव मंदिर, भगवान शिव शंकर का धाम है एवम् हरिद्वार के पास स्थित “बिल्व पर्वत” पर बना है। यह एक छोटा मंदिर है, जो सामान्य शिवलिंग और नंदी के साथ पत्थर से बना है एवम् यह मंदिर एक पहाड़ी क्षेत्र में जंगल से घिरा हुआ है। इस जगह में भगवान गणेश , भगवान हनुमान , महादेव और माता रानी के छोटे मंदिर भी स्थित है। यहां भगवान शिव के लिए बैल की पत्तियों की पेशकश करने और गंगा नदी के पानी के साथ शिवलिंग के अभिषेक करने की परंपरा है ।

 

: क्रांतेश्वर महादेव मंदिर , पिथौरागढ़
क्रांतेश्वर महादेव मंदिर भगवान शिव का पवित्र मंदिर है, जो कि चंपावत शहर के पूर्व में एक ऊंचे पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। क्रांतेश्वर महादेव मंदिर मुख्य चंपावत शहर से 6 किमी दूर स्थित है और यह समुद्र तल से 6000 मीटर की ऊंचाई पर बना है।

यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है क्योंकि यह मंदिर के नाम से स्पष्ट हो जाता है। क्रांतेश्वर महादेव मंदिर को स्थानीय लोग “कणदेव” और “कुरमापद” नाम से भी संबोधित करते हैं। क्रांतेश्वर महादेव मंदिर अनोखी वास्तुशिल्प से निर्मित अद्भुत मंदिर है। पर्यटक के लिए क्रांतेश्वर महादेव मंदिर एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है क्योंकि यह स्थान भगवान द्वारा आशीषित है।

 

: कपिलेश्वर महादेव मंदिर , पिथौरागढ़
कपिलेश्वर महादेव मंदिर टकौरा एवं टकारी गांवों के ऊपर “सोर घाटी” यानी “पिथौरागढ़ शहर “ में स्थित एक विख्यात मंदिर है। कपिलेश्वर महादेव मंदिर पिथौरागढ़ के ऐंचोली ग्राम के ऊपर एक रमणीक पहाड़ी पर स्थित है। 10 मीटर गहरी गुफा में स्थित यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।

एक पौराणिक कहावत के अनुसार, इस स्थान पर भगवान विष्णु के अवतार महर्षि कपिल मुनि ने तपस्या की थी इसीलिए इसे “कपिलेश्वर” के नाम से जाना गया। इस गुफा के भीतर एक चट्टान पर शिव , सूर्य व शिवलिंग की आकृतियाँ मौजूद हैं। यह मंदिर शहर से केवल 3 किमी दूरहै तथा यह मंदिर हिमालय पर्वतमाला का लुभावना दृश्य प्रस्तुत करता है।

 

: लाखामंडल मंदिर,देहरादून
लाखामंडल मंदिर एक प्राचीन मंदिर है जो कि उत्तराखंड के देहरादून जिले के जौनसर-बावार क्षेत्र में स्थित है। यह मंदिर देवता भगवान शिव और देवी पार्वती को समर्पित हैं एवम् समुन्द्रतल से इस मंदिर की ऊँचाई 1372 मीटर है। यह मंदिर शक्ति पंथ के बीच बहुत लोकप्रिय है क्योंकि उनका मानना है कि इस मंदिर की यात्रा उनके दुर्भाग्य को समाप्त कर देगी। मंदिर अद्भुत कलात्मक काम से सुशोभित है।

लाखामंडल मंदिर का नाम दो शब्दों से मिलता है। लाख अर्थ “कई” और मंडल जिसका अर्थ है “मंदिरों” या “लिंगम” मंदिर में दो शिवलिंग अलग-अलग रंगों और आकार के साथ स्थित हैं , “द डार्क ग्रीन शिवलिंग” द्वापर युग से संबंधित है , जब भगवान कृष्ण का अवतार हुआ था और “लाल शिव लिंग” त्रेता युग से संबंधित हैं , जब भगवान राम का अवतार हुआ था।

लाखामंडल मंदिर को उत्तर भारतीय वास्तुकला शैली में बनाया गया है , जो कि गढ़वाल, जौनसर और हिमाचल के पर्वतीय क्षेत्रों में मामूली बात है। मंदिर के अंदर पार्वती के पैरों के निशान एक चट्टान पर देखे जा सकते हैं , जो इस मंदिर की विशिष्टता है। लाखामंडल मंदिरमें भगवान कार्तिकेय, भगवान गणेश, भगवान विष्णु और भगवान हनुमान की मूर्तियां मंदिर के अंदर स्थापित हैं।


: मुक्तेश्वर महादेव मंदिर,नैनीताल
मुक्तेश्वर महादेव मंदिर उत्तराखंड के नैनीताल जिले के मुक्तेश्वर के सर्वोच्च बिंदु के ऊपर स्थित है । यह मंदिर “मुक्तेश्वर धाम या मुक्तेश्वर” के नाम से भी जाना जाता है । मंदिर में प्रवेश करने के लिए पत्थर की सीढ़ियों से पहुंचा जा सकता है और यह मंदिर समुद्र तल से 2315 मीटर की ऊँचाई पर कुमाऊं पहाड़ियों में है । मुक्तेश्वर का नाम 350 साल पुराने शिव के नाम से आता है , जिसे मुक्तेश्वर धाम के रूप में जाना जाता है , जो शहर में सबसे ऊपर, सबसे ऊंचा स्थान है। मंदिर के निकट “चौली की जाली” नामक एक चट्टान है।

 

: टिम्मरसैंण महादेव भगवान, चमौली गढ़वाल
टिम्मरसैंण महादेव भगवान शिव की एक गुफा है जो उत्तराखंड के चमोली जिले के नीती गांव में स्थित है। यह गुफा जम्मू और कश्मीर के अमरनाथ मंदिर की तरह प्राकृतिक रूप से प्रसिद्ध है। क्योंकि यहां बर्फ का एक प्राकृतिक शिवलिंग है, इस स्थान को दिन प्रतिदिन लोकप्रियता मिल रही है।

सर्दियों के मौसम में, चमोली की टिम्मरसैंण महादेव की इस आध्यात्मिक गुफा में एक प्राकृतिक शिवलिंग बनता है। यह गांव भारत-चीन सीमा पर बर्फ से ढकी गढ़वाल हिमालय की गोद में बसा है। इस स्थान पर जाने के लिए विशेष अनुमति की आवश्यकता होती है।

शिवलिंग लगभग जम्मू की अमरनाथ गुफा के शिवलिंग जैसा दिखता है। चमोली गढ़वाल के नीती – क्षेत्र में महादेव गुफा एक बहुत ही पवित्र स्थान है। यहां स्थानीय निवासी भगवान शिवलिंग के दर्शन करने आते हैं और गर्मी के मौसम में भगवान शिव को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

 

: ओणेश्वर महादेव मंदिर, टिहरी गढ़वाल
ओणेश्वर महादेव मंदिर जनपद टिहरी गढ़वाल के विकासखंड प्रताप नगर के पट्टी ओण के मध्य स्थित ग्राम पंचायत देवाल में स्थित प्राचीन एवम् धार्मिक मंदिर है। ओणेश्वर महादेव भगवान शिव स्वरुप है। ओणेश्वर महादेव मंदिर श्रधा , विश्वास , प्रगति और उन्नति का प्रतीक है।

इस मन्दिर में श्रीफल के अतिरिक्त और किसी भी चीज की बली नहीं दी गई और आज भी मात्र एक श्रीफल और चावल अपने ईष्ट को पूजने का काम सभी श्रद्धालू करते आ रहे हैं ।

ओणेश्वर महादेव मंदिर के पश्वा (जिन पर देवता अवतरित होते हैं) उनमें मुख्य रूप से ओनाल गांव के नागवंशी राणा एवं खोलगढ़ के पंवार वंशज व अन्य कई प्रमुख जाति पर अवतरित होते हैं तथा देवता की पूजा के लिए ग्राम सिलवाल गांव के भट्ट जाति के बाह्मण एवं ग्राम जाखणी, पट्टी भदूरा के सेमवाल जाति के ब्राह्मण हैं।

पूजा वैसे तो सभी कर सकते हैं किन्तु देवता के पूजा के लिए सिलवाल गांव के मुण्डयाली वंशज भट्ट ब्राह्मण और ग्राम जाखणी के हरकू पण्डित के वंशज की खास जिम्मेदारी मन्दिर पूजा के लिए रहती है।

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