22 दिसंबर 2025,

सोमवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

मनसा माता को खुश करने को कभी चढ़ती थी पशु बलि

ढूंढाड़ पर राज करने वाले मीणा राजा तथा कछवाहा राजा आमेर की मनसा माता को अपने राज्य की मालिक मानते थे

2 min read
Google source verification

image

Sunil Sharma

May 09, 2016

shila mata temple jaipur

shila mata temple jaipur

- जितेन्द्र सिंह शेखावत


ढूंढाड़ पर राज करने वाले मीणा राजा और बाद में उनसे शासन छीनने वाले कछवाहा राजा
आमेर की मनसा माता
को अपने राज्य की मालिक मानते थे। आमेर किले में मां शिला देवी की प्रतिष्ठा से पहले कछवाहा राजाओं में मंसा देवी के प्रति गहरी आस्था रही। युद्ध हो या कोई विशेष अभियान वे सबसे पहले उनके यहां ही ढोक लगाते। जयगढ़ की विजयगढ़ी से नीचे की घाटी में पौराणिक काल से विराजमान मनसा माता का यह पवित्र स्थान देवी की खोळ और घाटाराणी के नाम से मशहूर रहा है।


आमेर के अंबिकेश्वर मंदिर के समय के इस प्राचीन मंदिर की माता के ललाट पर सर्प का फन होने से माता की सर्पों की देवी के रुप में भी मान्यता है। भागवत पुराण के 48वें स्कंद में मनसा माता को जगत कारु ऋषि की पत्नी बताया है। इसमें लिखा है कि जब ऋषि पुष्कर तीर्थ गए तब उन्होंने आमेर में विश्राम किया। बाद में इस जगह पर मनसा माता का मंदिर बनाया गया। माता की मूर्ति मानव निर्मित नहीं है। पहाड़ की चट्टान में स्वयं भू-माता के नेत्र, भौंह, ललाट व मुख है। हरियाली से आच्छादित प्राकृतिक स्थान पर कभी सिद्ध महात्मा अड़ानंद ने घोर तपस्या की। उनकी समाधि भी देवी की खोळ में है।


किवदंती है कि स्वामी अड़ानंद के समय माता को खुश करने के लिए पशु बलि दी जाती थी। एक बार गलती से अमर बकरे की बलि दे दी गई। अमर बकरे का मांस गेंहू की मीठी घूघरी में बदलने के बाद से मंदिर में मांस-मदिरा चढ़ाने पर रोक लगा दी गई। इतिहासकार रावत सारस्वत ने इतिहास में लिखा है कि संवत 322 में आमेर के मीणा राजा कुंतल ने कुंतलगढ़ बनवाया तब से ही मीणा समाज मनसा माता को देवी मानकर पूजा कर रहा है। अकबर के सेनापति महाराजा मानसिंह प्रथम के समय मंसा देवी की पूजा के लिए पश्चिम बंगाल में 24 परगना जिले के भाटापाड़ा से आए बंगाली ब्राह्मणों को आमेर के लाल बाजार में बसाया गया। पूजा-अर्चना के लिए रियासत के महकमा पुण्य की तरफ से मंदिर महंत को 6 रुपए 13 आने माहवार मिलते थे।


वट वृक्ष के नीचे सिद्धेश्वर महादेव का मंदिर भी मीणा शासकों की आस्था का केंद्र रहा है। शहर के गुजराती औदिच्य भट्ट खानदान के अलावा ठठेरों का रास्ता स्थित ठठेरा समाज भी बच्चों के जडुले और विवाह के बाद वर-वधू को धोक दिलाने मनसा माता के मंदिर लाते हैं। जयपुर बसने के पहले ठठेरा समाज भी आमेर में रहता था।

ये भी पढ़ें

image