
अलग है बलि देने की प्रक्रिया
भारत के प्राचीन मंदिरों मे शुमार यह मंदिर कैमूर पर्वत की पवरा पहाड़ी पर है। मां मुंडेश्वरी के मंदिर में कुछ ऐसा होता है जिस पर जिसपर किसी को भी विश्वास नहीं होता। श्रृद्धालुओं के अनुसार मंदिर में बकरे की बलि की प्रक्रिया बहुत अनूठी और अलग है। यहां बलि में बकरा चढ़ाया जाता है, लेकिन उसका जीवन नहीं लिया जाता बल्कि उसे मंदिर में लाकर देवी मां के सामने खड़ा किया जाता है, जिस पर पुरोहित मंत्र वाले चावल छिड़कता है। उन चावलों से वह बेहोश हो जाता है, फिर उसे बाहर छोड़ दिया जाता है। इस चमत्कार को देखने वाले अपनी आंखो पर यकीन नहीं कर पाते हैं। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता पशु बलि की सात्विक परंपरा है।

माता ने यहां किया था चंड-मुंड का वध
चंड-मुंड नाम के असुर का वध करने के लिए देवी यहां आई थीं तो चंड के विनाश के बाद मुंड युद्ध करते हुए इसी पहाड़ी में छिप गया था। यहीं पर माता ने मुंड का वध किया था। इसलिए यह माता मुंडेश्वरी देवी के नाम से प्रसिद्ध हैं। पहाड़ी पर बिखरे हुए कई पत्थर और स्तंभ बीखरे हुए हैं जिनको देखकर लगता है की उनपर श्रीयंत्र, कई सिद्ध यंत्र-मंत्र उत्कीर्ण हैं।

शिवलिंग का बदलता है रंग
मां मुंडेश्वरी के मंदिर में गर्भगृह के अंदर पंचमुखी शिवलिंग है। मान्यता है कि इसका रंग सुबह, दोपहर व शाम को अलग-अलग दिखाई देता है। कब शिवलिंग का रंग बदल जाता है, पता भी नहीं चलता। प्रत्येक सोमवार को बड़ी संख्या में भक्तों द्वारा शिवलिंग पर जलाभिषेक किया जाता है। यहां मंदिर के पुजारी द्वारा भगवान भोलेनाथ के पंचमुखी शिवलिंग का सुबह शृंगार करके रुद्राभिषेक किया जाता है।

ऐसे पहुंचे मुंडेश्वरी मंदिर
मुंडेश्वरी मंदिर पहुंचने के लिए मंदिर के सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन भभुआ रोड है। यह मुगलसराय-गया रेलखंड लाइन पर है। मंदिर स्टेशन से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर है। मोहनिया से सड़क मार्ग से आप आसानी से मुंडेश्वरी धाम पहुंच सकते हैं। पहले मंदिर तक पहुंचने का रास्ता बहुत कठिन था। लेकिन अब पहाड़ी के शिखर पर स्थित मंदिर तक पहुंचने के लिए पहाड़ को काट कर सीढ़ियां व रेलिंग युक्त सड़क बनाई गई है। सड़क से कार, जीप या बाइक से पहाड़ के ऊपर मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।