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भोलेनाथ का ऐसा चमत्कारी मंदिर जहां मौली बांधने से हर मन्नत होती है पूरी, यहां खुद प्रकट हुआ था शिवलिंग

भोलेनाथ का ऐसा चमत्कारी मंदिर जहां मौली बांधने से हर मन्नत होती है पूरी, यहां खुद प्रकट हुआ था शिवलिंग

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Tanvi Sharma

Aug 09, 2018

shiv mandir

भोलेनाथ का ऐसा चमत्कारी मंदिर जहां मौली बांधने से हर मन्नत होती है पूरी, यहां खुद प्रकट हुआ था शिवलिंग

भोलेनाथ की महिमा अपरंपार हैं, कहा जाता है की भोलेनाथ भक्तों की सच्ची भक्ति से जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैँ। वहीं यह भी कहा जाता है की भगवान शिव को प्रसन्न करना बहुत ही आसान होता है वे सच्चे मन और श्रृद्धा से चढ़ाए गए एक लोटे जल से भी प्रसन्न हो जाते हैं। पुराणों में भी देखा जाए तो भगवान शिव द्वारा सच्चे भक्त को तुरंत ही मनवांछित फल मिल जाता था। चाहे व असुर हो या देवता। इसी प्रकार आज भी सावन माह में लोग भगवान शिव की पूजा-अर्चना कर उन्हें प्रसन्न करने के लिए कई तरह के उपाय करते हैं। कई तरह की विधियों से उनकी पूजा करते हैं। ऐसे ही भगवान शिव का एक चमत्कार पंजाब के मंदिर में देखने को मिलता है। यहां आए हर भक्त की मनोकामना पूरी होती है इसी के साथ रहवासियों द्वारा बताया जाता है की मंदिर में आने के बाद कोई यहां से खाली हाथ नहीं लौटता। यहां मौजूद शिवलिंग खुद प्रकट हुआ था।

हम जिस मंदिर की बात कर रहे हैं दसअसल वह मंदिर पंजाब के राजपुरा का प्राचीन शिव मंदिर नलास में है। इस मंदिर की विशेषता यह है की यहां शिवलिंग खुद प्रकट हुआ था। शिव के इस प्राचीन मंदिर में सालभर भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन सावन और शिवरात्रि पर यहां विशेष महत्व होता है। यहां लाखों लोग अपनी मन्नत मांगने आते हैं। भगवान भोलेनाथ का यह मंदिर 550 साल पुराना मंदिर है। मान्यता है की यहां आए भक्तों की कोई मुराद खाली नहीं जाती।

महाराजा पटियाला ने बनवाया था मंदिर

किवंदतियों के अनुसार नलास गांव में एक गुर्जर के पास कपिला गाय थी। जब भी वह गाय जंगल में चरने जाती थी और घर वापस आने से पहले वह एक झाड़ी के पीछे जाती थी। जब वह उस झाड़ी के पीछे जाती थी तो उसका दूध अपने आप बहना शुरू हो जाता था और जब उसका थन खाली हो जाता था तब वह घर वापस आती थी। एक दिन गाय के मालिक ने क्रोध में आकर उस झाड़ी की खुदाई शुरु की। खुदाई करते समय वहां निकले शिवलिंग पर कस्सी के प्रहार से खून की धार बह निकली। कहा जाता है कि उस समय वट वृक्ष के नीचे स्वामी कर्मगिरी तपस्या कर रहे थे। उनकी तपस्या भंग हो गई तो उन्होंने उस वक्त के महाराजा पटियाला कर्म सिंह को सारी बात बताकर खुदाई करवाई तो शिवलिंग प्रकट हुआ। संवत 1592 में महाराजा पटियाला ने मंदिर बनवाया व कर्मगिरी को मंदिर का महंत नियुक्त किया गया।

मंदिर में स्थापिक है 140 फुट उंचा त्रिशूल

मंदिर के प्रांगण में 140 फुट ऊंचा त्रिशूल स्थापित किया गया है। इसी स्थान पर भगवान शिवजी की 108 फुट ऊंची स्थापित है। मंदिर में मौजूद श्रृद्धालुओं ने बताया कि मंदिर प्रांगण में लगे 500 वर्ष पुराने बोहड़ के वृक्ष पर जो भी शिव भक्त लाल धागा यानी मौली बांधकर मन्नत मानता है। उसकी मन्नत भगवान शिव जरुर पूरी करते हैं।