धरती के सबसे जागृत मंदिरों में से एक है ये मंदिर : नाम है मां ज्वालपा का मंदिर
मां भगवती ज्वाला यानि अग्नि के रूप में प्रकट हुईं थीं यहां...

देश विदेश में यूं तो कई जगह देवी देवताओं के मंदिर मिल जाते हैं। लेकिन कई ऐसे भी मंदिर हैं जहां चमत्कारों के अलावा मनोकामना भी तुरंत पूरी हो जाती है। ऐसे में आज हम आपको एक ऐसे देवी मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां के सम्बन्ध में मान्यता है कि पौराणिक महत्व के अलावा यहां एक और जहां हर इच्छा पूरी होती है वहीं इसे धरती के सबसे जागृत मंदिरों में से एक माना जाता है।
देव भूमि उत्तराखंड में आपको कई ऐसे मंदिर मिलेंगे, जिनके रहस्यों और कहानियों का कोई अंत नहीं। यहां पौड़ी-कोटद्वार मार्ग पर नयार नदी के किनारे स्थित है मां ज्वाल्पा देवी का सिद्ध पीठ। इस सिद्ध पीठ का पौराणिक महत्व विशाल है।
इस पवित्र धाम के बारे में कहा जाता है कि यहां सच्चे मन से मां भगवती की आराधना करने पर मन की हर इच्छा पूरी होती है। मां ज्वालपा भगवती थपलियाल और बिष्ट लोगों की कुलदेवी हैं ।
ज्वालपा देवी मंदिर देव भूमि उत्तराखंड के पौड़ी से 34 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। नवालिका नदी यानी नयार नदी के बाएं किनारे पर स्थित ये मंदिर 350 मीटर के क्षेत्र में फैला है। नवरात्रि के दौरान इस मंदिर का भव्य नज़ारा देखने के लिए देश और दुनियाभर से लोग आते हैं। इस मंदिर की कहानी पुलोम नाम के राक्षस से जुड़ी है।
मंदिर से जुडी कथा-
ज्वाल्पा देवी के बारे में मान्यता है कि एक बार पुलोम नाम के राक्षस की कन्या सुची ने इंद्र को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए नयार नदी के किनारे तप किया था। सुची की तपस्या से खुश होकर इसी स्थान पर मां भगवती ज्वाला यानी अग्नि के रूप में प्रकट हुईं।
इसके बाद मां ने राक्षस की कन्या सुची को उसकी मनोकामना पूर्ण का वरदान दिया। ज्वाला रूप में दर्शन देने की वजह से इस स्थान का नाम ज्वालपा देवी पड़ा था। देवी पार्वती के दीप्तिमान ज्वाला के रूप में प्रकट हुई थी तो वो अखंड दीपक तबसे निरंतर मंदिर में प्रज्ज्वलित रहता है।
इस परंपरा को जारी रखने के लिए तबसे से कफोलस्यूं, मवालस्यूं, रिंगवाडस्यूं, खातस्यूं, घुड़दौड़स्यूं और गुराडस्यूं पट्टयों के गांवों से तेल की व्यवस्था होती है। इन गांवों के खेतों में सरसों उगाई जाती है और अखंड दीप को प्रज्ज्वलित रखने के लिए तेल की व्यवस्था की जाती है।
कहा ये भी जाता है कि आदिगुरू शंकराचार्य ने यहां मां की पूजा की थी, तब मां ने उन्हे दर्शन दिए। बताया जाता है कि 18वीं शताब्दी में गढ़वाल के राजा प्रद्युम्न शाह ने ज्वाल्पा मंदिर को 11.82 एकड़ जमीन दान दी थी।
वजह ये थी कि यहां अखंड दीपक के लिए तेल की व्यवस्था के लिए सरसों का उत्पादन हो सके। मंदिर के एक तरफ मोटर मार्ग और दूसरी ओर नयार नदी बहती है। ये खूबसूरत नज़ारा देखकर हर कोई मंत्रमुग्ध हो जाता है।
इस सिद्धपीठ में चैत्र और शारदीय नवरात्रों में विशेष पाठ का आयोजन होता है। इस मौके पर देश-विदेश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। खासतौर पर अविवाहित कन्याएं सुयोग्य वर की कामना लेकर आती हैं। मां ज्वालपा का मंदिर धरती के सबसे जागृत मंदिरों में से एक माना जाता है।
Hindi News अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें (Hindi News App) Get all latest Temples News in Hindi from Politics, Crime, Entertainment, Sports, Technology, Education, Health, Astrology and more News in Hindi