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राधा-कृष्ण मंदिर : यहां पर ग्रंथ और मुकुट की होती है पूजा

locationभोपालPublished: Aug 19, 2019 01:24:35 pm

Submitted by:

Devendra Kashyap

Radha Krishna Temple : राधा-कृष्ण की मूर्ती तो नहीं है, फिर भी इस मंदिर को राध-कृष्ण की मंदिर के नाम से जाना जाता है।

Radha Krishna Temple

राधा-कृष्ण मंदिर : यहां पर ग्रंथ और मुकुट की होती है पूजा

हमारे देश में भगवान श्रीकृष्ण ( Lord Krishna ) की कई मंदिरें है, जहां पर श्रद्धालु पूजा-पाठ करते हैं। हर मंदिर में कृष्ण की मूर्तियां होती हैं लेकिन एक मंदिर ऐसा भी जहां कोई भी मूर्ती नहीं है। Krishna Janmashtami के मौके पर हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां राधा-कृष्ण की मूर्ती तो नहीं है, फिर भी इस मंदिर को राध-कृष्ण की मंदिर ( Radha Krishna Temple ) के नाम से जाना जाता है।
ऐसा मंदिर मध्य प्रदेश के इंदौर में स्थित है। इस मंदिर में मूर्तियां नहीं है। अपने आप में अनोखे इस मंदिर में भक्त ग्रंथ और मुकुट की पूजा करते हैं। मान्यता है कि यहां पर पूजा करने से सभी तरह की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस मंदिर का इतिहास और परंपरा भी अनोखी है, जो कभी किसी ने न तो देखी है ना ही सुनी है।
Radha Krishna Temple
 

इंदौर शहर के गौराकुंड चौराहे के ठीक पहले प्रणामी संप्रदाय का प्राचीन राधा-कृष्ण मंदिर है। मंदिर में दाखिल होते ही सामने चार मूर्तियां स्थापित प्रतीत होती है। असल में वो मूर्तियां नहीं है बल्कि ग्रंथ और मोर मुकुट है।
ग्रंथों का होता है श्रृंगार

मंदिर में चांदी के सिंहासन पर 400 साल पुराने श्रीकृष्ण स्वरूप साहब ग्रंथ स्थापित किया गया है। ग्रंथों को मोर मुकुट पहनाया जाता है, पोशाक भी राधा-कृष्ण जैसी ही पहनाई जाती है। श्रृंगार इस तरह से किया जाता है, जिसे देखने पर राधा-कृष्ण की मूर्तियां ही प्रतीत होती हैं।
Radha Krishna Temple
 

100 साल पुराना मंदिर

बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण होलकर राजघराने में पंच रहे मांगीलाल भंडारी ने करवाया था। प्रणामी संप्रदाय के गुरु प्राणनाथ ने जब ग्रंथों का अध्ययन किया तो उन्होंने समझा कि मूर्तियों की तरह ही ग्रंथ भी प्रभावशाली होते हैं। उन्हीं के निर्देशानुसार तब से ही यहां पर ग्रंथों की पूजा की जाती है।
जन्माष्टमी पर विशेष पूजा

भगवान श्रीकृष्ण की जिस तरह से पूजा होती है, उसी तरह यहां पर हर दिन पांच बार ग्रंथ की पूजा की जाती है। यही नहीं, ग्रंथों को झूला भी झुलाया जाता है। प्रणामी संप्रदाय के अलावा अन्य समुदाय को मानने वाले लोग भी बड़ी संख्या में यहां आते हैं। इस मंदिर में जन्माष्टमी पर विशेष आयोजन के साथ पूजा-अर्चना की जाती है। यहां पर पान का भोग लगाया जाता है।
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