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Sammed Shikharji: सिद्ध क्षेत्र है सम्मेद शिखरजी, जानें इससे जुड़ी मान्यताएं

सम्मेद शिखरजी (Sammed Shikharji) जैन धर्म से जुड़ा प्रमुख तीर्थ स्थल है। इसे जैन धर्म में तीर्थ राज कहा जाता है। Sammed Shikharji से जुड़ी ऐसी ही मान्यताओं के लिए पढ़ें पूरी रिपोर्ट।

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Pravin Pandey

Jan 06, 2023

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सम्मेद शिखरजी गिरिडीह झारखंड

Sammed Shikharji: सम्मेद शिखरजी झारखंड के गिरिडीह जिले के मधुबन में स्थित है। पारसनाथ पहाड़ पर स्थित इस जैन तीर्थ को मोक्षदायी कहा जाता है। 24 में से 20 तीर्थंकरों और कई अन्य संत मुनियों ने यहां मोक्ष प्राप्त (महापरिनिर्वाण) किया है। जैन धर्म के दिगंबर मत के लोगों की आस्था तीर्थ पर अपार है। जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ ने भी सम्मेद शिखरजी क्षेत्र (Jain pilgrimage Parasnath) में कठोर तप और ध्यान से मोक्ष प्राप्त किया था। पार्श्वनाथ की टोंक इस शिखर (parasnath hill jharkhand) पर स्थित है।


प्रत्येक जैन धर्मावलंबी अपने जीवन में कम से कम एक बार 16 किलोमीटर की पैदल दूरी तय कर सम्मेद शिखर पहुंचना चाहता है। जैन समुदाय के लोग मांस, मदिरा से परहेज करते हैं। सम्मेद शिखर यानी पारसनाथ पहाड़ पर हर तीर्थंकर के मंदिर हैं। पहाड़ी पर कुछ मंदिर 2000 साल पुराने बताए जाते हैं। सम्मेद शिखर जाने के रास्ते में आदिवासियों के भी दो पूजास्थल हैं, जिन्हें जाहेरथान कहा जाता है। आदिवासी संस्कृति में बलि की मान्यता है।

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Sammed Shikharji fact: जैन धर्म से जुड़ी कई मान्यताएं आमजन में प्रचलित (Sammed Shikharji Beliefs) है।


1. जैन धर्म में सम्मेद शिखरजी को अमरतीर्थ कहा जाता है। मान्यता है कि सृष्टि रचना के समय से ही दो तीर्थों सम्मेद शिखरजी और अयोध्या अस्तित्व में थे, यानी इन दोनों तीर्थों का अस्तित्व सृष्टि के समानांतर है।
2. हर साल सम्मेद शिखर तीर्थ यात्रा में लाखों जैन श्रद्धालु और अन्य यहां आते हैं। श्रद्धा के कारण कई तीर्थ यात्री यहां शिखर तक नंगे पांव और उपवास रखकर आते हैं। ये दर्शन और परिक्रमा करते हैं।
3. जैन धर्म शास्त्रों के अनुसार कोई भी व्यक्ति यदि अपने जीवन में एक बार सम्मेद शिखरजी की यात्रा (Sammed Shikharji Beliefs) कर लेता है, मन भाव और निष्ठा से भक्ति करता है, तीर्थंकरों की शिक्षा, उपदेशों, शिक्षाओं का शुद्ध आचरण से पालन करता है, उसे मोक्ष प्राप्त होता है। वह व्यक्ति जन्म कर्म के बंधन से 49 जन्मों तक मुक्त रहता है। वह व्यक्ति पशु योनि और नरक भी नहीं प्राप्त करता।

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4. मान्यता है कि यहां की पवित्रता, सात्विकता के प्रभाव से यहां पाए जाने वाले शेर, बाघ आदि पशुओं का स्वाभाविक हिंसक व्यवहार नहीं दिखता। इसलिए तीर्थ यात्री बिना भय के ही यहां यात्रा करते हैं।
5. मान्यता है कि जैसे गंगा स्नान से सारे पापों का नाश हो जाता है, वैसे ही सम्मेद शिखर की वंदना करने से भी पापों का नाश हो जाता है। जैन समाज की मान्यता है कि इस क्षेत्र का कण-कण पवित्र है। ये यहां पहुंचने के बाद 27 किलोमीटर के एरिया में फैले मंदिर-मंदिर जाते हैं और वंदना करते हैं। ये वंदना के बाद ही कुछ खाते-पीते हैं।
6. आदिवासी पारसनाथ पहाड़ को मरांग बुरु कहते हैं और इसकी पूजा करते हैं।

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दूसरे जगहों पर मोक्ष प्राप्त करने वाले तीर्थंकर


जैन ग्रंथों के अनुसार जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों में पहले तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव ने कैलाश पर्वत पर, 12वें तीर्थंकर भगवान वासुपूज्य ने चंपापुरी, 22वें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ ने गिरनार पर्वत, 24 वें तीर्थंकर महावीर स्वामी ने पावापुरी में मोक्षप्राप्त किया था।