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बिहार के इस देवी मंदिर में होते हैं एक से एक चमत्कार, जानकर हैरान रह जाएंगे आप

locationभोपालPublished: Sep 26, 2019 12:24:28 pm

Submitted by:

Devendra Kashyap

हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसका संबंध मार्केण्डेय पुराण से है।

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बिहार का जिक्र रामायण काल से लेकर महाभारत तक में है। माना जाता है कि बिहार प्राचीन काल से समृद्ध संस्कृति वाला राज्य रहा है। बिहार में कई धर्मों का जन्म भी हुआ है। यहां पर कई देवी-देवताओं के चमत्कारी मंदिर भी हैं, जिनका उल्लेख धर्म ग्रंथों में भी मिलता है।

आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसका संबंध मार्केण्डेय पुराण से है। कथाओं के अनुसार, देवी ने शुंभ-निशुंभ के सेनापति चण्ड और मुण्ड का वध यहीं पर की थी। यही नहीं, इस मंदिर में एक प्राचीन शिवलिंग भी है। यह मंदिर बिहार के कैमूर जिले में स्थित है। इसे माता मुंडेश्वरी मंदिर के नाम से जाना जाता है।
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भारत के प्राचीम मंदिरों में एक मुंडेश्वरी मंदिर कैमूर पर्वत की पवरा पहाड़ी पर 608 फीट ऊंचाई पर स्थित है। अन्य देवी स्थानों की तरह यहां पर भी बलि दी जाती है लेकिन बलि की प्रक्रिया थोड़ी अलग है। यहां पर सात्विक परंपरा के अनुसार बालि दिया जाता है। यहां बलि में बकरा चढ़ाया जाता है लेकिन उसे मारा नहीं जाता है। कहा जाता है कि जो भी यहां सच्चे मन से मां की उपासना करता है, उसे मां मुंडेश्वरी जरूर पूरी करती हैं।

हैरान करने वाला चमत्कार


यहां पर बालि के लिए बकरे को लाया जाता है और जब उसे मां के सामने प्रस्तुत किया जाता है, तब मंदिर का पुजारी मां की मूर्ति को स्पर्श कर चावल बकरे पर फेंकता है तो उसी क्षण बकरा मृतप्राय सा हो जाता है। इसके बाद फिर से उस अक्षत फेंका जाता है, तब बकरा उठ खड़ा होता है। इसके बाद बकरे को छोड़ दिया जाता है।
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यहीं पर हुआ था मुंड का वध


पौराणिक कथाओं के अनुसार, चण्ड-मुण्ड नाम के असुर का वध करने के लिए देवी यहां आई थी। चण्ड के वध हो जाने के बाद मुण्ड यहीं पर पहाड़ी में छिप गया। इसके बाद माता ने मुण्ड का वध यहीं पर किया। यही कारण है कि देवी माता मुण्डेशवरी के नाम प्रसिद्ध हो गईं।

शिवलिंग बदलता है रंग


मां मुण्डेशवरी मंदिर में भगवान शिव का एक पंचमुखी शिवलिंग है। जिसके बारे में बताया जाता है कि वह दिन में तीन बार रंग बदलता है। यह शिवलिंग सुबह, दोपहर और शाम को अलग-अलग रंग का दिखाई देता है। मंदिर का अष्टाकार गर्भगृह आज तक कायम है। यही नहीं, मंदिर परिसर में पाए गए शिलालेख ब्राह्मी लिपि में है।
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