5 दिसंबर 2025,

शुक्रवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

Navratri: काशी में चरण, उज्जैन में सिर और भोपाल में होती है इस माता के धड़ की पूजा, करनी पड़ती है उल्टी परिक्रमा

Navratri Harsiddhi Mata Mandir भोपाल से 35 किमी दूर ग्राम तरावली में है मां हरसिद्धि का दरबारमान्यता है मन्नतें होती हैं पूरीयहां अर्जी लगाने आने वाले करते हैं उल्टी परिक्रमाराजा विक्रमादित्य ने की थी माता की आराधना

3 min read
Google source verification

image

Pravin Pandey

Oct 17, 2023

tarawali_image.jpg

तरावली माता मंदिर भोपाल

tarawali mata mandir शक्ति पर्व शारदीय नवरात्रि चल रहा है। इसमें लोग माता आदिशक्ति के विभिन्न स्वरूपों की पूजा कर रहे हैं, लेकिन क्या आप ऐसे स्वरूप के बारे में जानते है जिसके चरण की पूजा वाराणसी में सिर की पूजा उज्जैन में और धड़ की पूजा भोपाल में होती है तो आइये जानते हैं हरसिद्धि माता मंदिर के चमत्कारिक मंदिर के बारे में..


tarawali mata mandir मध्य प्रदेश की राजधानी से 35 किमी दूर स्थित ग्राम तरावली में मातारानी का विशेष मंदिर है। इस मंदिर में मां जगदंबा हरसिद्धि के रूप में विराजमान हैं। यहां सीधे नहीं उल्टे परिक्रमा लगाने से माता प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों की कामना पूरी करती हैं। ऐसा करने वाला व्यक्ति यहां किसी कामना को लेकर अर्जी लगाता है, वह जरूर पूरी होती है। तरावली स्थित मां के हरसिद्धि धाम में श्रद्धालु कामना की पूर्ति के लिए उल्टी परिक्रमा लगाकर माता के दरबार में अर्जी लगाते हैं। नवरात्र के दौरान यहां भीड़ लग रही है।


तरावली स्थित मां का धाम हरसिद्धि के नाम से देशभर में प्रसिद्ध है। बताया जाता है कि साधरण रूप से श्रद्धालु यहां भी सीधी परिक्रमा लगाते हैं, लेकिन जिनकी कोई विशेष कामना होती है वे उल्टी परिक्रमा लगाकर माता के दरबार में अर्जी लगाते हैं। इसके बाद जब उनकी मनोकामना पूरी हो जाती है, तब श्रद्धालु माता के दरबार में पहुंचकर सीधी परिक्रमा लगाते हैं।


बहुत से भक्त संतान की कामना को लेकर माता के दरबार में पहुंचते हैं। यहां आने पर महिलाएं मंदिर के पीछे स्थित नदी में स्नान करती हैं और इसके बाद माता की आराधना करती हैं और संतान की कामना करती हैं।

ये भी पढ़ेंः Navratri Ke Upay: नवरात्रि में जरूर आजमाएं ये दस उपाय, शनि प्रकोप, गरीबी समेत दस दुखों का पल में कर देते हैं अंत


जब राजा विक्रमादित्य उज्जैन के शासक थे। तब वह काशी गए थे। वहां उन्होंने मां की आराधना कर उज्जैन चलने के लिए तैयार किया था। इस पर मां ने कहा था कि वह उनके चरणों को यहां पर छोड़कर चलेंगी। साथ ही जहां सबेरा हो जाएगा। वे वहीं विराजमान हो जाएंगी। इसी दौरान जब वह काशी से चले तो तरावली स्थित जंगल में सुबह हो गई और माता तरावली में ही विराजमान हो गईं। राजा विक्रमादित्य ने लंबे समय तक तरावली में मां की आराधना की। जब मां प्रसन्न हुई तो वे केवल शीश के साथ चलने तैयार हुईं। माता के चरण काशी, धड़ तरावली और शीश उज्जैन में है। विद्वान बताते हैं कि उस समय विक्रमादित्य को पानी की जरूरत हुई तो मां ने खुद जलधारा दी थी। जिससे वाह्य नदी का उद्गम भी तरावली गांव से हुआ है।

ये भी पढ़ेंःदेश के प्रसिद्ध मंदिर के विषय में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें


-मान्यता है कि दो हजार वर्ष पूर्व काशी नरेश गुजरात की पावागढ़ माता के दर्शन करने गए थे।
-वे अपने साथ मां दुर्गा की एक मूर्ति लेकर आए और मूर्ति की स्थापना की और सेवा करने लगे।
-उनकी सेवा से प्रसन्न होकर देवी मां काशी नरेश को प्रतिदिन सवा मन सोना देती थीं।
-जिसे वो जनता में बांट दिया करते थे।


-यह बात उज्जैन तक फैली तो वहां की जनता काशी के लिए पलायन करने लगी।
-उस समय उज्जैन के राजा विक्रमादित्य थे। जनता के पलायन से चिंतित विक्रमादित्य बेताल के साथ काशी पहुंचे।
-वहां उन्होंने बेताल की मदद से काशी नरेश को गहरी निद्रा में लीन कर स्वयं मां की पूजा करने लगे।
-तब माता ने प्रसन्न होकर उन्हें भी सवा मन सोना दिया।


-विक्रमादित्य ने वह सोना काशी नरेश को लौटाने की पेशकश की।
-लेकिन काशी नरेश ने विक्रमादित्य को पहचान लिया और कहा कि तुम क्या चाहते हो।
-तब विक्रमादित्य ने मां को अपने साथ ले जाने का अनुरोध किया। काशी नरेश के न मानने पर विक्रमादित्य ने 12 वर्ष तक वहीं रहकर तपस्या की।
-मां के प्रसन्न होने पर उन्होंने दो वरदान मांगे, पहला वह अस्त्र, जिससे मृत व्यक्ति फिर से जीवित हो जाए और दूसरा अपने साथ उज्जैन चलने का।
-तब माता ने कहा कि वे साथ चलेंगी, लेकिन जहां तारे छिप जाएंगे, वहीं रुक जाएंगी।


-लेकिन उज्जैन पहुंचने सेे पहले तारे अस्त हो गए। इस तरह जहां पर तारे अस्त हुए मां वहीं पर ठहर गईं। इस तरह वह स्थान तरावली के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
-तब विक्रमादित्य ने दोबारा 12 वर्ष तक कड़ी तपस्या की और अपनी बलि मां को चढ़ा दी, लेकिन मां ने विक्रमादित्य को जीवित कर दिया।
-यही क्रम तीन बार चला और राजा विक्रमादित्य अपनी जिद पर अड़े रहे।
-ऐसे में तब चौथी बार मां ने अपनी बलि चढ़ाकर सिर विक्रमादित्य को दे दिया और कहा कि इसे उज्जैन में स्थापित करो।
-तभी से मां के तीनों अंश यानी चरण काशी में अन्नपूर्णा के रूप में, धड़ तरावली में और सिर उज्जैन में हरसिद्धी माता के रूप में पूजे जाते हैं