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इस मंदिर के दर्शन के बिना अधूरी है आपकी धार्मिक यात्रा

locationभोपालPublished: Aug 13, 2020 12:45:43 pm

शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव के एक ही शिव विग्रह का शिरोभाग…

Your char dham pilgrimage is incomplete without visiting this temple

Your char dham pilgrimage is incomplete without visiting this temple

सनातन धर्म के आदि पंच देवों में भगवान श्री गणेश, भगवान विष्णु, देवी मां दुर्गा, भगवान शंकर यानि शिव व सूर्यदेव शामिल है। वहीं चार धामों में बद्रीधाम, जगन्नाथ, द्वारिका व रामेश्वरम शामिल हैं। आदि पंच देवों में से एक भगवान शिव को संहार का देवता माना जाता है। वहीं इनके ज्योतिर्लिंगों में से एक शिवलिंग इतना महत्वपूर्ण माना जाता है, कि उनके दर्शन किए बिना चार धामों की यात्रा तक पूर्ण नहीं मानी जाती।

जानकारों के अनुसार चार धामों की यात्रा में श्रद्घालु हिमालय क्षेत्र में जिन भगवान केदारनाथ के दर्शन करते हैं, उनका भगवान पशुपतिनाथ से विशेष संबंध माना जाता है। शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव के एक ही शिव विग्रह का शिरोभाग पशुपतिनाथ है। इसलिए ऐसा कहा जाता है कि चार धाम यात्रा करने के बाद भी पशुपतिनाथ के दर्शन किए बिना यात्रा पूरी नहीं होती।

अतीत से ही हिमालय का पूरा भू-भाग महेश्वर दर्शन का केन्द्र रहा है। महाभारत के वन पर्व में भगवान पशुपतिनाथ के क्षेत्र को महेश्वरपुर की संज्ञा दी गई है और कहा गया है कि महेश्वरपुर में जाकर भगवान शंकर की अर्चना करके उपवास रखने से सभी कामनाएं पूरी होती है।

माहेश्वरपुर गत्वा अर्चयित्वा वृषध्वजम्ï।

ईप्सितांल्लभते कामानुपवासान्न संशय॥

(म.भा.वन पर्व 84/129)

शिवपुराण में पशुपतिनाथ व केदारनाथ के महत्व का विशेष रूप से वर्णन किया गया है। शिवपुराण के अनुसार जब पाण्डव हिमाचल के पास पहुंचकर केदारनाथ के दर्शन करने के लिए आगे बढ़े तो पाण्डवों को देखकर भगवान शिव ने भैसे का रूप धर लिया और भागने लगे। पाण्डवों ने उनकी पूंछ पकड़कर बार-बार प्रार्थना की तो नीचे की ओर मुंह कर शिव विराजमान हुए तथा भक्तवत्सल नाम से इसी रूप में स्थित हुए भगवान केदारनाथ का शिरोभाग नेपाल में पहुंचकर पशुपतिनाथ के रूप में प्रतिष्ठिïत हुआ।

पशुपतिनाथ मंदिर के संबंध में स्कन्द पुराण में उल्लेख है। इसके अनुसार भगवान सदाशिव को शे.ष्मान्तक वन विशेष प्रिय था। भगवान शंकर पार्वती के साथ मृग बनकर विहार करते रहे। भगवान शिव को सभी देवतागण अपने बीच न पाकर दुखी हुए तथा खोजते खोजते शे.ष्मान्तक वन पहुंचे। वहां भगवान शिव एक सींग वाले त्रिनेत्र मृग के रूप में विचरण करते दिखाई दिए।

ब्रह्मा, विष्णु व इन्द्र ने उन्हें पहचाना और सींग से पकड़कर वश में करना चाहा, परन्तु भगवान शिव उछलकर वाग्मती नदी के पार पहुंच गए व वाग्मती के पश्चिम तट पर पशुपति के रूप में रहने लगे।

ऐसा माना जाता है कि पशुपति मंदिर के ज्योतिर्लिंग की प्रतिष्ठा ग्वालों ने करवाई थी। ग्वालों के बाद किरात राजाओं, लिच्छवि वंश व मल्ल वंश के नरेशों ने इस पवित्र मंदिर का निर्माण समय-समय पर करवाया तथा शाहवंश के राजाओं के समय तक आकर इसने वर्तमान स्वरूप प्राप्त किया।

काठमांडू शहर से 5 किलोमीटर दूर वाग्मती के पश्चिम तट पर स्थित पशुपतिनाथ मंदिर आकर्षक नेपाली वास्तुकला के नमूने के रूप में अवस्थित है। इस भव्य मंदिर की छतें स्वर्णमण्डित और दीवारें रजत जड़ित हैं। पशुपतिनाथ क्षेत्र का यह पावन परिसर हिन्दू संस्कृति के साथ साथ विभिन्न सम्प्रदयों का विशिष्ठ साधना स्थल भी रहा है।
दो सौ चौसठ हेक्टेयर जमीन में फैले पशुपतिनाथ क्षेत्र में आज दो सौ पैंतीस विविध शैली के मोहक मंदिर है। जो शैव, वैष्णव, शाक्त आदि वैदिक धर्म की विभिन्न शाखाओं से संबंधित है। इसी क्षेत्र में बौद्घों के दो विहार तथा एक स्तूप व दो नानक मठ भी इसी क्षेत्र में स्थित है।

श्रद्घालुओं व संतों के आवास के लिए अनेक मठ, आश्रम व धर्मशालाएं यहाँ हैं। गौरी, किरातेश्वर, गृह्यïकाली, बाबा गोरखनाथ, सीताराम, लक्ष्मी नारायण, भगवान विष्णु, नील सरस्वती, मंगलगौरी, भस्मेश्वर, माता वत्सला, मृगेश्वर आदि मन्दिर प्रमुख है।

पशुपति नाथ मंदिर की दर्शन विधि भी विशिष्टï है। दर्शन के क्रम में सबसे पहले भगवान पशुपतिनाथ की परिक्रमा पूरी की जाती है। तब मंदिर में प्रवेश करने की परम्परा है। भगवान शिव की केवल आधी परिक्रमा करने का निर्देश है। उत्तर की ओर बहने वाली जलधारा को भी लांघा नहीं जाता है।

पशुपतिनाथ मंदिर क्षेत्र में पूरे वर्ष भर विभिन्न धार्मिक आयोजन, पर्व मनाए जाते रहते हैं। महाशिवरात्री, शीतलाष्टमी, हरिशयनी और हरि बोधनी एकादशी, श्रीव्यास जयंती, गुरु पूर्णिमा, हरि तालिका तीज, नवरात्र, वैकुण्ठ चतुदर्शी, बाला चतुदर्शी आदि पर्वों में भगवान पशुपति नाथ व क्षेत्र के अन्य मंदिरों में विशेष पूजन होने के कारण श्रद्घालुओं का तांता बंधा रहता है।

इन पर्वों के अतिरिक्त पशुपतिनाथ क्षेत्र में चलाई जाने वाली यात्राएं भी प्रसिद्घ हैं। जिनमें वैशाख शुल्क पूर्णिमा को छंदों चैत्य यात्रा, आषाढ़ कृष्ण अष्ठमी को त्रिशूल यात्रा, आषाढ़ शुक्ला सप्तमी को सूर्य तथा गंगा माई यात्रा, गाई यात्रा, खड्ग यात्रा, चन्द्र विनायक यात्रा, श्वेत भैरव यात्रा, नवदुर्गा यात्रा, गुहेश्वरी यात्रा आदि प्रमुख हैं।

पशुपतिनाथ के दर्शन के साथ साथ श्रद्घालु नेपाल के अन्य धार्मिक स्थलों के दर्शन के लिए भी जाते हैं। सुंसरी का वराह क्षेत्र, खोटाड़ का हलेसी महादेव, धनुषा का जानकी मंदिर, चितवन का देवघाट, काठमांडू का ब्रजयोगिनी, दक्षिण काली, बुढानील कण्ठ, स्वयंभूनाथ, बौद्घनाथ, गौरखा का मनकामना व गोरख काली, कपिल वस्तु व वाल्मिकी आश्रम प्रमुख हैं।

भगवान पशुपति नाथ देवों के भी देव यानी महादेव है। उनका महिमागान समग्र वैदिक, पौराणिक ग्रंथों में पाया जाता है। शुक्ल यजुर्वेद का 16वां अध्याय तो पूरा का पूरा भगवान-पशुपतिनाथ की स्तुतियों से भरा पड़ा है।

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