ऐसी जीपों के चालक जीप की छतों पर भी सवारियां बैठाने से नहीं चूकते। हालांकि इस राजमार्ग पर एक के बाद एक रोडवेज दौड़ती है, लेकिन ये सभी सभी बसें द्रुतगामी होने से अधिकतर गांवों में इनका ठहराव नहीं है। ये टोंक से रवाना होकर देवली ही रुकती हैं। ऐसे में यात्री टकटकी लगाए बसों को आते-जाते ही देखते रहते हैं।
उल्लेखनीय है कि एक दशक पूर्व तक टोंक से देवली के लिए टोंक आगार की ओर से आधा दर्जन से अधिक साधारण बसें संचालित की जाती थी। इनके हर आधे घंटे के अंतराल में संचालित होने से राजमार्ग किनारे बसे गांवों समेत दूरदराज के 200 से अधिक गांवों के लोगों को सुरक्षित परिवहन सुविधा मिली हुई थी। समय बीतने के साथ रोडवेज अधिकारियों की ओर से साधारण सेवा की बसों में कटौती की जाती रही। हैरानी की बात है कि एक पखवाड़े से देवली मार्ग पर सुबह से लेकर दोपहर तीन बजे तक कोई साधारण बस उपलब्ध नहीं है। ऐसे में राजमार्ग किनारे बसे गांवों के लोगों को रोडवेज का लाभ नहीं मिल रहा। भरनी, संथली, बंथली, पोल्याड़ा, धुवाकलां, नयागांव समेत अन्य गांव-ढाणियों की यात्रा करने वालों को निजी वाहनों का सहारा लेना पड़ता है।
दोपहर बाद जाओ, सुबह आओ
टोंक आगार की ओर से देवली मार्ग पर यात्री भार कम मिलने का कारण बताते हुए साधारण बसों की संख्या में कटौती की जाती रही। सुबह 10 व दोपहर एक बजे देवली की ओर से जाने वाली रोडवेज भी गत दिनों बंद कर दी गई। अब सुबह कोई बस उपलब्ध नहीं है। दोपहर तीन बजे टोंक से दिल्ली वाया देवली, केकड़ी, साढ़े तीन बजे देवली व पांच बजे आवां के लिए रोडवेज उपलब्ध है। इनकी भी सेवा महज जाने के लिए ही है। यह पहले दिन जाकर दूसरे दिन सुबह आती है। ऐसे में एक दिन दोपहर में यात्रा करने वाला दूसरे दिन ही अपने गांव लौट सकता है। इनमें दिल्ली जाने वाली रोडवेज वापसी में एक्सप्रेस बनकर केकड़ी, मालपुरा होते हुए जाने से यात्रियों को परिवहन का लाभ नहीं मिल पाता। चौंकाने वाली बात यह है कि वर्तमान में साधारण बसों के तीन फेरे ही टोंक-देवली मार्ग पर संचालित किए जा रहे हैं। हालांकि विभिन्न आगारों की एक्सप्रेस बसें हर दस से बीच मिनट के बीच गुजर रही है।
जान जोखिम में
रोडवेज के अभाव में बाड़ाजेरेकिला, मेहंदवास, उस्मानपुरा, दाखिया, अरनियानील, खेड़ा, महुआ गांवों के लोग जान जोखिम में डालकर जीपों से यात्रा कर रहे हैं। इनमें भी यात्रियों को परेशानी तब होती है, जब जीप चालक लम्बी दूरी के यात्रियों को तो सीट उपलब्ध करा देते हैं। सीटें पूरी भरने के बाद मेहंदवास व अन्य गांव के यात्रियों को जीप के पीछे लटकने के लिए कह दिया जाता है।
टोंक आगार के बेड़े में 98 बसें है। ये बसें दिल्ली, फरीदाबाद, श्योपुर, भोपाल, उदयपुर, जयपुर-कोटा, रावतभाटा समेत कई मार्गों पर संचालित हैं। आगार का ध्यान छोटे मार्गों पर नहीं है।
सिरे नहीं चढ़ पाई
परिवहन सुविधा देने के लिए संचालित होने वाली ग्रामीण बस सेवा का लाभ भी लोगों को नहीं मिला। जबकि जिले के ढाई सौ गांव-ढाणियों के लोगों को आवाजाही की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए परिवहन विभाग ने सर्वे कर 21 नए मार्गों की सूची टोंक आगार को भेजी थी। ट्रांसपोर्ट संचालकों द्वारा रूचि नहीं लिए जाने से योजना सिरे नहीं चढ़ पाई। महज कुछ मार्गों पर ही ग्रामीण बस सेवा संचालित हुई। इनमें भी कई बंद हो चुकी है।
यात्रीभार कम था
टोंक-देवली मार्ग पर संचालित लोकल बसों को पर्याप्त यात्री भार नहीं मिल रहा था। निर्धारित राजस्व नहीं देने से मजबूरी में इन्हें बंद करना पड़ा। यात्रीभार बढ़ा तो फिर से संचालित कर दी जाएगी।
ललितकुमार शर्मा, आगार प्रबन्धक टोंक।