scriptएक चावल ने पांडवों की बचाई थी इज्जत, 10 से अधिक लोगों का भरा पेट, यहां जानें पूरी कहानी | know the amazing story of mahabharat krishna draupadi, rishi durvasa | Patrika News

एक चावल ने पांडवों की बचाई थी इज्जत, 10 से अधिक लोगों का भरा पेट, यहां जानें पूरी कहानी

locationमुंबईPublished: Apr 23, 2020 05:12:23 pm

एक चावल के दाने से 10 से अधिक लोगों ने खाना खाया, ऐसे हुआ था संभव…..

krishna draupadi samvaad

krishna draupadi samvaad

‘महाभारत’ सीरियल ( mahabharat serial ) वर्ष 1988 में आया था। अब करीब 32 साल बाद लॉकडाउन के बीच यह टीवी सीरियल एक बार फिर से दूरदर्शन पर प्रसारित किया जा रहा है। सभी लोगों ने देखा होगा मगर एक बात ऐसी है जिस पर शायद ही किसी ने गौर किया हो। बता दें कि महज एक चावल ने पांडवों की इज्जत बचाई थी। दरअसल उस एक चावल ने 10 से अधिक लोगों का पेट भर दिया था। वो कैसे यहां जानिए?

 

krishna draupadi samvaad

पांडवों से है नाता
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार महर्षि दुर्वासा ( rishi durvasa ) अपने कुछ साथियों के साथ दुर्योधन के महल पहुंचे थे। जहां उनकी खूब अवाभगत हुई। इसके बाद दुर्योधन ने उन्हें पांडवों से मिलकर उन्हें भी आतिथ्य सेवा करने का मौका देने की बात कही। ऋषि दुर्वासा ने दुर्योधन की बात मानकर अपने 10 से अधिक शिष्यों के साथ पांडवों के घर जाने को प्रस्थान किया। जैसे ही दुर्वासा, पांडवों के पास पहुंचे तो उन्होंने नमस्कार किया। बाद में ऋर्षि दुर्वासा ने पांडवों से कहा कि हम स्नान करके भोजन करेंगे।

द्रौपदी की बढ़ गई थी चिंता
युधिष्ठिर ने द्रौपदी ( draupadi ) को बताया कि ऋषि दुर्वासा अपने 10 से अधिक शिष्यों के साथ अपने घर पधारे हैं। अभी वो स्नान करने गए है और आकर भोजन करेंगे। युधिष्ठिर की यह बात सुनकर द्रौपदी की चिंता बढ़ गई। परेशानी का कारण यह था कि सभी भोजन कर चुके थे और भोजन शेष नहीं था। ऐसे में उन्हें भय था कि यदि महर्षि दुर्वासा को भोजन ना करा पाए तो वह शाप दे देंगे।

 

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अक्षयपात्र में एक दाना चावल का
कहा जाता है कि द्रौपदी को सूर्यदेव से एक अक्षयपात्र मिला था। जिसमें तब तक अन्‍न रहता था जब तक की द्रौपदी भोजन ना कर लें। जैसे ही सबको खिलाने के बाद वे भोजन ग्रहण करतीं, वह पात्र पूरी तरह से खाली हो जाता था। महर्षि जब पधारे तब सभी पांडवों और पांचाली भोजन कर चुके थें।

कृष्ण ने रखी पांडवों की लाज
द्रौपदी के परम सखा थे कृष्ण। उन्होंने चीरहरण के दौरान जिस तरह से कन्हैया को याद किया था और कान्हा ने उनकी लाज रखी थी। ठीक उसी तरह से द्रौपदी ने फिर कृष्ण ने उनकी लाज बचाने की विनती की। उन्होंने मुरलीधर को पुकारा और वे तुरंत हाजिर हो गए। उन्होंने अपनी पीड़ी श्रीकृष्ण को सुनाई।

माधव-द्रौपदी संवाद
कृष्‍ण जैसे ही द्रौपदी के पास पहुंचे उन्‍होंने कहा कि अत्‍यंत भूखा हूं, जल्‍दी से कुछ खाने को दो। इस पर द्रौपदी ने कहा कि मोहन इसीलिए तो तुम्‍हें पुकारा है। इसके बाद पूरी बात कह सुनाई। तब श्रीकृष्‍ण ने कहा कि देखो तो पात्र में शायद कुछ शेष रह गया हो।

एक दाने से भर गया पेट
कृष्‍ण के बार-बार भोजन का आग्रह करने पर द्रौपदी ने उनके सामने वह अक्षयपात्र लाकर रख दिया। देवकीनंदन ने देखा कि उस पात्र में चावल का एक दाना शेष रह गया था। उन्‍होंने जैसे ही उसे खाया उधर स्‍नान करके भोजन के लिए आ रहे महर्षि दुर्वासा और उनके शिष्‍यों का पेट भर गया। इस तरह से कृष्ण ने पांडवों और द्रौपदी को महर्षि दुर्वासा से मिलने वाले शाप से बजाया था।

यूं ही प्रस्‍थान कर गए महर्षि
महर्षि दुर्वासा और उनके शिष्‍यों को जैसे ही यह अहसास हुआ कि उनका पेट तो काफी भरा हुआ है। वह तो अन्‍न का एक दाना भी ग्रहण नहीं कर सकते। तब उन्‍होंने आपस में पांडवों को बिना बताए ही प्रस्‍थान करने का निर्णय लिया। चूंकि महर्षि दुर्वासा जानते थे कि युधिष्ठिर धर्म प्रिय हैं वह अतिथि को बिना भोजन कराए जाने नहीं देंगे, ऐसे में वह पांडवों को बगैर बताए हुए अपने शिष्‍यों के साथ वहां से प्रस्‍थान कर गए।

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