
राकेश शर्मा ‘राजदीप’/उदयपुर. यह बात सौ फीसदी सच है कि कोई भी कला सिखाई नहीं जा सकती, उसे मार्गदर्शन से परिष्कृत जरूर किया जा सकता है। किसी भी कला के नैसर्गिक गुण तो जन्मजात ही होते हैं। हां, परिवेश से थोड़ा बहुत असर संभव हो सकता है। फिर अगर तकनीक को भी हुनर से जोड़ लिया जाए तो क्या कहने। कुछ ऐसा ही उदाहरण शहर के युवा चित्रकार निर्मल यादव के कृतित्व से सायास सामने आता है। असल में परिवार में दूर-दूर तक किसी का कला से कोई नाता नहीं था। निर्मल बताते हैं कि बचपन से ही मेरा कला के प्रति रुझान देखकर पिता अक्सर परदेसी पामणों को मुझसे मिलवाते। ऐसे में धीरे-धीरे दुनिया के दूसरे कोने में फैली कलाओं की समझ बढऩे लगी। इस बीच, महज 12 वर्ष की उम्र में अपने एक मित्र के पिता का पोट्र्रेट बनाकर पहली कमाई के रूप में चार सौ रुपए और खासी प्रशंसा पाकर इसी राह में आगे बढऩे का हौसला मिला।
साल 2007 में सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय से ड्राइंग एंड पेंटिंग में एमए करने के बाद कुछ समय घनश्याम नि बार्क, राधेश्याम और कन्हैयालाल शर्मा जैसे स्थापित चित्रकारों से लघुचित्रण शैली जानी और सीखी। उदयपुर और जयपुर की आर्ट गैलरीज में बतौर सहयोगी कलाकार काम किया। इसी दौरान अपनी शैली विकसित कर मिनिएचर-कंट प्रेरी आर्ट में नए प्रयोग करने आरंभ किए। आगे, पीएचडी करते पूरी तरह कला के क्षेत्र में कदम रखकर घर के एक कमरे में बनाई पहली वॉटर कलर सीरीज को मुंबई की कई कला दीर्घाओं में पार िायों ने जमकर सराहा। उसके बाद तो लगातार कई कीर्तिमान बने। कई चित्राकृतियां देश-विदेश में मुंहमांगे दामों में बिकीं। मुंबई, दिल्ली, अहमदाबाद, नागपुर और जयपुर जैसे बड़े शहरों में कई सोलो-ग्रुप एक्जिबिशन के अलावा ऑन लाइन पार्टीसिपेशन तथा राज्य स्तरीय पुरस्कार भी कामयाबी की झोली में आए।
थ्रेड वर्क है अलग पहचान
निर्मल बताते हैं कि यंू भले ही विदेशी पर्यटक मेवाड़ की मिनिएचर आर्ट के दीवाने हैं। लेकिन मेरी पहचान पेन, कोण और बारीक ब्रश की सहायता से बने थ्रेड वर्क से है, जिसकी हर वक्त ाासी डिमांड बनी रहती है। इसके अलावा मुझे मिक्स मीडियम में काम करना अच्छा लगता है। अधिकांशत: कैनवास पर ऑइल और एक्रेलिक कलर्स के साथ ग्लास, स्पै और वॉटर कलर से कृतियां बनाते कई मर्तबा नए कलाकारों और विदेशियों को लाइव डेमो भी दिए हैं। गांव के कला साधकों को प्रशिक्षण
कमजोर तबके और रिमोट एरिया के कला साधकों को जमीन से जुड़ा यह कलाकार हमेशा नि:स्वार्थ ााव से सि ााने को तत्पर नजर आता है। इनका मानना है कि भले ही कलाकार पैदा नहीं किए जा सकते हों, सच्ची लगन वाले जरूरतमंद लोगों को कलाकार बनाया तो जा सकता है। यही कला और ईश्वर की सबसे बड़ी आराधना ाी है।
Published on:
06 Jan 2018 10:15 pm
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