
रवींद्रनाथ मेडिकल कॉलेज के अधीन संचालित महाराणा भूपाल चिकित्सालय में दवाइयों की खरीदी के नाम पर राजस्थान मेडिकेयर रिलीफ सोसायटी को करोड़ों रुपए की चपत लगाने का बड़ा खेल सामने आया है। निजी मेडिकल स्टोर संचालक से सांठ-गांठ कर कम कीमत की दवाइयों को मनमानी कीमत में खरीदने वाले इस खेल में प्रशासनिक अधिकारियों की भूमिका सीधे तौर पर संदिग्ध हैं।
मिलीभगत से क्रय बिल में दवाइयों की एमआरपी शून्य दशाई जा रही है। एक दवाई की एमआरपी और बिल में हजारों रुपए का अंतर बिना जांच के इस सत्य को प्रमाणित कर रहा है। अधिकारियों एवं कार्मिकों ने न केवल मेडिकल स्टोर संचालक को फायदा पहुंचाया, बल्कि बीपीएल दवा स्टोर पर रखी महंगी दवाइयों की कीमत पर काला मार्कर चला दिया।
मार्जिन भी गायब
मेडिकल स्टोर संचालक को जेनरिक दवाइयां एमआरपी से आधे दामों में मिल जाती हैं। वहीं कंपनी की ब्रांडेड इथिकल दवाइयों में एमआरपी पर मार्जिन करीब 25 से 35 प्रतिशत तक होता है। चिकित्सालय की निविदा व्यवस्था के तहत ठेकेदार फर्मों की ओर से दरें भी बहुत कम भरी जाती हैं। इसके बावजूद बीपीएल स्टोर को पिं्रट लागत से अधिक दर पर दवाई देने का मामला भ्रष्टाचार को उजागर करता है।
घपले की बानगी : 7160 रुपए की दवा का बिल 8680 रुपए
दवाइयों की खरीद में कमीशनखोरी की हकीकत जानकर हर कोई दंग रह जाएगा। छह मई 2016 को मेंबर सी.डी. डिस्ट्रीब्यूटर्स से बीपीएल स्टोर के मेम्बर सेक्रेट्री के नाम से जारी बिल के जरिये 'ग्रोथ हार्मोन्सÓ नामक इंजेक्शन के पांच नग भेजे गए। कुल 5.50 वेट टैक्स के साथ तैयार यह बिल करीब 45787 रुपए का था, लेकिन बिल की विशेषता यह थी कि इसमें एमआरपी शून्य लिखी गई। बेच नंबर ईसी 70203 एवं ईसी 70981 के इन इंजेक्शनों की कीमत ड्रग सप्लायर की ओर से 8680 रुपए बताई गई। हकीकत में बाजार में बिकने वाले 'ह्यूमन ग्रोथ हार्मोन इंजेक्शनÓ की कीमत मात्र 7,160 रुपए है।
एेसा नहीं होना चाहिए
मेरी जानकारी में फिलहाल यह विषय आया नहीं है, लेकिन उम्मीद करता हूं कि एेसा नहीं होना चाहिए। अगले वर्किंग-डे में इस मामले की जांच करवा लेंगे।
डॉ. रमेश जोशी, उप अधीक्षक, एमबी हॉस्पिटल
Published on:
25 Jul 2016 12:15 pm
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