
जग सूना देख जगत के स्वामी भी चकित, भक्त-भगवान के मिल न पाने की मन में कसक
जितेन्द्र पालीवाल @ उदयपुर. जहां इन मंदिरों में आम दिनों में श्रद्धालुओं की रेलमपेल रहती थी, वहां सन्नाटा पसरा है। श्रद्धालु घरों में कैद होकर रह गए, भगवान गर्भगृह में बिराजे हैं। दोनों एक-दूजे को देख नहीं पा रहे। भक्त और भगवान के मिलन की कसक उठ रही मगर करें क्या, एक महामारी ने दोनों को यूं तो दूर किया है, लेकिन मन के मंदिर में आज भी घंटनाद हो रहा, दर्शन से आंखें सजल हो रहीं। मेवाड़ के अधिपति एकलिंगनाथ हों या उदयपुर की वैष्णोदेवी नीमज माता, भगवान जगदीश हों, श्रीनाथजी या बोहरा गणेश, हर मंदिर में बिराजे जगत के ये स्वामी रूठ न जाएं, इस बात का खास खयाल रखते हुए विधि-विधान से उन्हें नियमित पूजा-अर्चना, शृंगार और भोग-प्रसाद धराने का सिलसिला चल रहा है।
एकलिंगनाथ : कैलाशपुरी में त्रिकाल पूजा जारी
मध्यकाल में बने कैलाशपुरी स्थित एकलिंगनाथ भगवान के मंदिर में त्रिकाल पूजा तड़के चार से साढ़े छह बजे तक, 11.30 से दोपहर 1.30 तथा शाम को 5.30 से 7.30 बजे तक हो रही है। एकलिंगनाथ को मेवाड़ का राजा भी माना जाता है। मेवाड़ राजघराने मंदिर का मुख्यद्वार व आम दर्शनार्थियों का प्रवेश बंद है। केवल पुजारियों को जाने की अनुमति है।
ऋषभदेव मंदिर : केसर और दूध का होता है अभिषेक
देवस्थान विभाग के अधीन अतिप्राचीन मंदिर में केवल पुजारी व देवस्थान विभाग के कार्मिकों का प्रवेश है। आम दिनों में मंदिर सुबह 6.30 पर बजे खुलता है तथा 8.45 पर बंद होता है। सुबह जल और दूध का अभिषेक, फिर आरती, केसर पूजा का क्रम दोपहर डेढ़ बजे तक चल रहा है। फिर से जल-दूध अभिषेक, 3 से 4 बजे तक केसर पूजा, मंगल आरती, फिर शयन का क्रम तय है।
जगदीश मंदिर : दिन में हो रही पांच पूजा
चार सौ साल पुराने मंदिर में नियमित सेवा हो रही है। दिन में पांच आरतियां होती हैं। सुबह मंगला 5.30, शृंगार 10.30, राजभोग 12 बजे, संध्या आरती 7 व शयन 10.15 बजे होने के अलावा दिन में ढाई से चार बजे तक पट पूरी तरह बंद रहते हैं। 63 वर्षीय रामगोपाल पुजारी ने बताया कि कुछ मौकों पर कफ्र्यू के वक्त मंदिर बंद रहा, लेकिन इतना लम्बा समय पहली बार देखा है।
श्रीनाथजी मंदिर : सज रही विविध झांकियां
घसियार में स्थित श्रीनाथजी के प्राचीन मंदिर के अलावा उदयपुर शहर के खेरादीवाड़ा में भी श्रीनाथजी का पुराना मंदिर है। दोनों मंदिरों में आम दर्शनार्थियों के लिए प्रवेश बंद है। पुष्टिमार्गीय वल्लभ सम्प्रदाय की परम्परानुसार मंगला, श्रृंगार, ग्वाल, राजभोग, उत्थापन, भोग, आरती और शयन की झांकी सजाई जा रही है। ठाकुरजी की नियमित सेवा का क्रम जारी है।
नीमज माता : उदयपुर की वैष्णोदवी में सन्नाटा
इस तीर्थस्थल को उदयपुर की वैष्णोदेवी कहा जाता है। वर्ष 1652 में बने मंदिर में विराजित नीमज माता को अम्बा भी कहते हैं। आम दिनों में 850 मीटर ऊंचाई पर चढ़कर दर्शनार्थी पहुंचते थे, अब प्रवेश मंदिर है। मंदिर में माता की सुबह पूजा-आरती व शाम को भी नियमित तौर पर विवि-विधान से आरती होती है, जिसमें केवल पुजारी मौजूद होते हैं। चैत्र नवरात्रि में भी यहां नियमित अनुष्ठान हुए।
बोहरा गणेशजी : अब नहीं दिखती श्रद्धालुओं की कतार
आयड़ क्षेत्र से आगे धूलकोट चौराहा के पास स्थित यह गणेश मंदिर पूरे शहर की आस्था का बड़ा केन्द्र है। यहां विराजित गणेशजी को प्रथम पूज्य होने से लोग किसी भी मांगलिक कार्य की शुरुआत के मौके पर सबसे पहले निमंत्रित करते हैं। आम दिनों में दिनभर श्रद्धालुओं की चहल-पहल रहती है, अभी यहां सन्नाटा पसरा है, लेकिन सुबह-शाम पूजन के क्रम नियमित चल रहे हैं।
Published on:
12 Apr 2020 09:05 am
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