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इलेक्ट्रिक चाक ने आसान किया काम तो अब अच्छी मिट्टी के लिए जद्दोजहद

करवा चौथ और दीपावली ने लौटाई कुम्हारों की रौनक, रुण्डेड़ा के कुम्हारों के घरों में चलने लगी चाक, मिट्टी के करवे और दीपकों की मांग बढ़ी, पर्यावरण के लिए भी बेहतर

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Electric Chawk

राजकुमार मेनारिया/रुण्डेड़ा. सूरज की पहली किरण के साथ जिलेभर के कुम्हार परिवारों के आंगन में चाक घूमने लगता है। करवाचौथ का दिन है और मिट्टी के करवे खरीदने के लिए बाजारों में रौनक है। 10 दिन बाद दीपावली है, जिससे मिट्टी के दीपकों की मांग चरम पर है। त्योहारों के मौसम ने कुम्हारों के जीवन में फिर से आशा और उल्लास भर दिया है। हालांकि इन दिनों कुम्हार विद्युत चाक पर मिट्टी के आइटम बनाने का काम कर रहे हैं, विद्युत चाक के इस्तेमाल ने कारीगरों का काम थोड़ा आसान किया है, लेकिन अच्छी मिट्टी की कमी उनके लिए अभी भी बड़ी समस्या है। रमेश कहते हैं, “अच्छी मिट्टी अब बहुत दूर से लानी पड़ती है। सरकार अगर रियायती दरों पर कच्चा माल उपलब्ध कराए, तो हम और बेहतर काम कर सकते हैं।”

महिलाओं के लिए करवे का महत्व

आज सुबह से ही सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र की कामना के लिए करवाचौथ का व्रत रख रही हैं। बंशीलाल कुम्हार के दुकान पर महिलाएं करवे खरीदने के लिए आती-जाती दिखती रही। करवा खरीदते हुए भागवती नाम की एक महिला बताती है कि “करवे के बिना करवाचौथ की पूजा अधूरी होती है। इसमें पानी भरकर चांद को अर्घ्य दिया जाता है, फिर पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खोला जाता है। रुण्डेड़ा निवासी शिवम कुम्हार बताते हैं कि इस साल हमने करवे पर हाथ से सुंदर पेंटिंग और नई डिज़ाइन बनाई हैं। ये करवे हर साल की तुलना में ज्यादा पसंद किए जा रहे हैं। जिन पर फूल-पत्तियों या पारंपरिक कलाकृतियों की सजावट की है।

दीपावली की तैयारी : चाक पर घूमती उम्मीदें

दीपावली के लिए मिट्टी के दीपकों की मांग तेजी से बढ़ रही है। रमेश चंद्र कुम्हार बताते है कि त्योहारी सीजन में दीपकों की बिक्री ही मुख्य सहारा है। इस बार हमने रंग-बिरंगे और डिजाइनर दीपक तैयार किए हैं, जो घरों की सजावट के लिए काफी पसंद किए जा रहे हैं। कुम्हारों का व्यवसाय एक समय मंदी की चपेट में आ गया था, जब प्लास्टिक और मशीन से बने उत्पादों ने बाजार पर कब्जा कर लिया था। लेकिन अब लोग पारंपरिक और पर्यावरण-अनुकूल उत्पादों की ओर लौट रहे हैं। सूरजमल कुम्हार बताते है कि आजकल लोग मिट्टी के दीपक और करवे इसलिए भी खरीदते हैं क्योंकि ये न केवल सस्ते होते हैं बल्कि पर्यावरण के अनुकूल होते हैं।

कठिनाई के बीच उम्मीदों का दीपक

रुण्डेड़ा कस्बे में कभी सैकड़ों कुम्हार परिवार इस कला से जुड़े थे, लेकिन अब केवल 20-25 परिवार ही बचे हैं। इनमें भी कुछ ही पूरी तरह सक्रिय हैं। रमेश चंद्र बताते हैं, अधिक मेहनत और कम आमदनी के कारण कई परिवारों ने यह काम छोड़ दिया है। हमें अब सरकार से सहयोग की उम्मीद है, ताकि यह परंपरा जिंदा रह सके।

स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए बेहतर विकल्प

मिट्टी के दीपक और करवे पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों के लिए फायदेमंद हैं। प्लास्टिक के उत्पाद न केवल प्रदूषण फैलाते हैं, बल्कि पूजा में भी इन्हें इस्तेमाल करना शुभ नहीं माना जाता। शिवम् बताते हैं, मिट्टी के दीपक और करवे पूजा के बाद आसानी से मिट्टी में मिल जाते हैं, जिससे प्रदूषण नहीं होता।


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