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राजस्थान के ऐसे पांच गांव जिनका दाना-पानी उदयपुर में, उपचार कराने चित्तौडग़ढ़ और पढ़ाई के लिए जाते हैं प्रतापगढ़

patrika.com/rajsthan

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राजस्थान के ऐसे पांच गांव जिनका दाना-पानी उदयपुर में, उपचार कराने चित्तौडग़ढ़ और पढ़ाई के लिए जाते हैं प्रतापगढ़

राजस्थान के ऐसे पांच गांव जिनका दाना-पानी उदयपुर में, उपचार कराने चित्तौडग़ढ़ और पढ़ाई के लिए जाते हैं प्रतापगढ़

जसराज ओझा-नरेश कुमार वेद. लसाडि़या (उदयपुर). राजस्थान के गांवों में समस्याएं तो आपने देखी होगी पर उदयपुर जिले की एक एेसी पंचायत हैं जिसके पांच गांव तीन जिलों की सीमाओं में फंसे हैं। इन्हें कोई अपना नहीं मानता। गांवों में अब तक बल्ब नहीं जल पाया। सड़क के नाम पर केवल पगडंडी है। चारपहिया वाहन तो कभी इन गांवों में आए ही नहीं। बाइक है लेकिन इसे चलाना मुश्किल क्योंकि रास्ते उबड़ खाबड़ है। मोबाइल है पर नेटवर्क नहीं आता। जिले के लसाडि़या उपखंड की भरेव पंचायत के ये पांच गांवों की दास्तां अजीब है। कहने को ये उदयपुर जिले में आते हैं और दाना-पानी यहीं से मिलता है। इनको उपचार कराने चित्तौडग़ढ़ के बांसी जाना पड़ता है क्योंकि नजदीक में कोई सरकारी अस्पताल नहीं है। खरीददारी व पढ़ाई करने धरियावद जाना पड़ता है। मतलब हर काम के लिए तीन जिलों के गांवों पर निर्भर है। उदयपुर जिले के अंतिम गांव भरेव पंचायत के धार, मायदा, कालाखेत, खोखरिया गांव के ये हालात है। इनको ग्राम पंचायत मुख्यालय पर जाने के लिए ३० किमी का सफ र तय करना पडता है। धार गांव से मुख्य सड़क करीबन ६ किमी है। लोगों को पैदल चलकर आना पडता है। दुपहिया वाहन भी बडी मुश्किल से निकलते हैं। इस मार्ग पर ट्रैक्टर से ही यात्रा की जा सकती है।
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10-12वीं पास नहीं मिलेगी बेटियां
सरकार का बेटियों को पढ़ाने पर जोर है लेकिन इन गांवों में १०वीं व १२वीं पढ़ी-लिखी बेटियां बहुत कम मिलेगी। इनके अभिभावक १०-१५ किमी दूर पढाई के लिए अनुमति नहीं देते हैं। पढ़ाई के लिए सरकारी स्कूल भी पूरे नहीं है। कुछ सामाजिक संस्थाएं शिक्षा की अलग जगा रही है। धार व मायदा के ग्रामीणों की लम्बे समय से आंगनवाड़ी की मांग चल रही है जो भी पूरी नहीं हुई है।
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सुबह के निकले पहुंचते हैं रात को
ग्रामीण रमेशचंद्र मीणा, कालूलाल मीणा, प्यारचंद मीणा व लिम्बाराम मीणा ने बताया कि रोजगार के लिए बांसी, बडीसादडी, धरियावाद, कानोड़ जाना पड़ता है। सुबह ६-७ बजे घर से निकलते हैं जो वापस रात को घर पहुंचते है। अधिकांश लोगों को पैदल ही जाना पड़ता है क्योंकि यातायात के पूरे साधन नहीं है। धार गांव में यातायात के साधनों का अभाव है।
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वन क्षेत्र इसलिए नहीं डली बिजली लाइन
पंडित दीनदयाल उपाध्याय ज्योति योजना के अंतर्गत विद्युत लाइन वन विभाग ने अपने क्षेत्र में ले जाने की स्वीकृति नहीं दी। इस पर विधायक गौतमलाल मीणा ने घर-घर सोलर पैनल के तहत बिजली पहुंचाई परंतु ये भी ढंग से नहीं चल रहे हैं। अब खेतों में पिलाई की मोटर नहीं चलने से ग्रामीणों को डीजल पम्प में डीजल का अतिरिक्त बोझ पडता है।
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पहाड़ी या पर चढ़कर करते हैं बात
धार व मायदा गांवों में मोबाइल नेटवर्क नहीं आने से इन गांवों में मोबाइल खिलौना बना हुआ है। नेटवर्क नहीं आने से मोबाइल की घंटी इन गांवों में नहीं बजती है। एेसे में पहाड़ों पर या पेड़ पर चढ़कर बात करनी पड़ती है।
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