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उदयपुर कृषि विश्वविद्यालयों के पूर्व कर्मचारी पेंशन को तरसे, अधूरी स्वायत्तता ने किया जमीनें बेचने पर मजबूर, ढाई हजार से अधिक कार्मिकों का मामला

उदयपुर . प्रदेश के कृषि विश्वविद्यालयों को स्वायत्त बताते हुए उनके मत्थे जिम्मेदारियों की भारी भरकम पोटली रख दी है।

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Former employees of agricultural universities pension udaipur

उदयपुर . सरकार ने महज अनुदान राशि नहीं देनी पड़े इस गर्ज से प्रदेश के कृषि विश्वविद्यालयों को स्वायत्त बताते हुए उनके मत्थे जिम्मेदारियों की भारी भरकम पोटली रख दी है। हालांकि ये विवि आज भी नाममात्र के स्वायत्त हैं, क्योंकि वे कई निर्णय स्वयं नहीं कर सकते हैं। महाराणा प्रताप कृषि विवि ने पूर्व कार्मिकों की बकाया पेंशन चुकाने के लिए अपनी जमीन बेच दी, लेकिन इससे हासिल 30 करोड़ रुपए का इस्तेमाल पेंशन राशि चुकाने में करने से सरकार ने मना कर दिया। ऐसे में विवि फिर से जमीन बेचकर फंड जुटाने की तैयारी में है।


मामले में राज्य के अन्य कृषि विश्वविद्यालयों बीकानेर , जोबनेर, जोधपुर और कोटा के हाल और बुरे हैं। ये विश्वविद्यालयों ने यह कहकर पल्ला झाड़ रहे हैं कि राज्य सरकार उन्हें वित्तीय सहायता नहीं दे रही है। ऐसे में वे पेंशनधारियों को पैसा कैसे दें। इन विवि के पूर्व कार्मिकों की दो-दो साल की पेंशन बकाया है। महाराणा प्रताप कृषि विवि अब करीब 500 से 700 करोड़ रुपए की जमीन को बेचने की तैयारी में है, ताकि बड़ी राशि के ब्याज से पेंशनधारियों को पैसा दिया जा सके।

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सरकार की दलील कि खुद पैसा पैदा करो
सरकार ने इन विवि को स्पष्ट कर दिया है कि यदि वे पेंशनधारियों को पैसा देना चाहते हैं, तो खुद पैसे का जुगाड़ करें। परीक्षा फीस, पाठ्यक्रम का शिक्षण शुल्क, सम्बद्धता शुल्क, विकास निधि से आय अर्जित करें। एमपीयूएटी के 1000, बीकानेर के 1200 और जोबनेर, जोधपुर व कोटा के पांच सौ पेंशनधारी ऐसे हैं, जों पेंशन को तरस रहे हैं।


यह है मुख्य परेशानी
कृषि विवि की संरचना अलग से होने के कारण इसकी तुलना पारम्परिक विवि से नहीं की जा सकती। छात्र संख्या तुलनात्मक कम होती है। शिक्षण के अतिरिक्त अनुसंधान व प्रसार का कार्य भी होता है। ऐसे में स्टाफ संख्या विद्यार्थियों के अनुपात से अधिक होती है। इसलिए आय स्रोत कम और पेंशन फण्ड में अधिक राशि की जरूरत होती है।


पेंशनर्स घनचक्कर
पेंशन चुकाने के लिए एमपीयूएटी अब जमीनों को ऊंचे दाम पर बेचने के लिए हाथ-पैर मार रहा है। आरसीए के बागवानी फार्म का एक हिस्सा नगर विकास न्यास को दिया गया है। फार्म के बीच एक सडक़ निकाली गई। इस तरह विवि का महत्वपूर्ण फार्म बर्बाद हो रहा है, जो कृषि शिक्षण, प्रशिक्षण व वैज्ञानिक शोध के काम आता है।


कानून से भी निर्णय नहीं मिला
1 जनवरी 1990 में सभी विश्वविद्यालयों ने पेंशन स्कीम लागू की। इसमें कृषि विवि के कार्मिक जिन्होंने पेंशन के लिए विकल्प दिया, वे पेंशन ले रहे थे। वर्ष 2010 में कृषि विश्वविद्यालय में धन के अभाव में पेंशन बंद हो गई, लेकिन राजस्थान उच्च न्यायालय जयपुर की डबल बेंच के निर्णय की अनुपालना में राजस्थान सरकार ने कृषि विवि को अनुदान दिया, जिससे पेंशनर्स को पेंशन मिल रही थी। वर्ष 2013 के बाद सरकार ने पेंशन अनुदान बंद कर दिया। पेंशन नहीं मिलने पर पेंशनर हितकारी संघों ने 2014 में उच्च न्यायालय जोधपुर में रीट दायर की।

याचिका की सुनवाई कर न्यायाधीश गोपालकृष्ण व्यास ने 14 अक्टूबर 2014 को आदेश दिया कि सेवानिवृत्त कार्मिकों को नियमित पेंशन भुगतान करने के लिए राज्य सरकार राशि उपलब्ध करवाए। इसमें विफल रहने पर राज्य के वित्त सचिव व विवि के कुल सचिव अपना वेतन नहीं लेंगे। इस पर सरकार ने उच्चतम न्यायालय में स्पेशल लीव पिटीशन दायर की, जिसमें फैसला हुआ कि विवि एक स्वायत्त संस्थान है, पेंशन चुकाने की जिम्मेदारी विवि की है। ऐसे में सरकार महाराणा प्रताप कृषि विवि के पेंशनर संघ की याचिका अलग हो गई।

अब मामला पेंशनर संघ व विवि के बीच रह गया। सुनवाई के दौरान न्यायाधीश अमरजीत कौर ने पाया कि विवि का कोई प्रतिनिधि नहीं था। ऐसे में विवि ने शपथ पत्र पेश करते हुए कहा कि वह उच्चतम न्यायालय के निर्णय के खिलाफ रिव्यू पिटीशन दायर करेगी, लेकिन आज तक यह फाइल नहीं की है। 19 सितम्बर 16 में विवि के रजिस्ट्रार ने शपथ पत्र देकर लिखा कि अब विवि पेंशन चुका रहा है और बकाया पेंशन एरियर भी छह माह के बीच चुका देगा।


ये है नीति
कृषि विश्वविद्यालय के संदर्भ में सरकार ने वर्ष 2013 में कृषि नीति में स्पष्ट किया है कि राज्य कृषि विवि बाह्य संस्थाओं पर निर्भरता की बजाय अनुसंधान, अध्यापन व प्रसार क्रियाकलापों की आवश्यकता पूर्ति के लिए पर्याप्त वित्तीय अनुदान लें।


-हम जल्द ही बड़ी जमीन बेचकर राशि को जुटा रहे हैं, ताकि पूरी पेंशन भी दे पाएं और बड़ी राशि फण्ड शामिल कर सकें। करीब 500 से 700 करोड़ आ जाएंगे तो उसके ब्याज से राशि पूरी चुकाते रहेंगे। 30 करोड़ रुपए हमारे पास पड़े हैं, लेकिन वह राशि सरकार ने रोक रखी है, जिसे हम पेंशन देने में इस्तेमाल नहीं कर सकते। दूसरे कृषि विवि ने तो दो-दो साल की पेंशन नहीं दी।
उमाशंकर शर्मा, कुलपति महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि उदयपुर


हमने जयपुर मेट्रो के लिए करीब पांच सौ करोड़ की जमीन सरकार को दी है, जैसे ही पैसा आएगा यह समस्या दूर हो जाएगी। जल्द ही हमें 20 मार्च को न्यायालय के निर्देशानुसार 12 करोड़ रुपए मिलने वाले हैं, यह राशि आते ही तीन माह की पेंशन देंगे।
डॉ बीआर छीपा, कुलपति कृषि विवि बीकानेर


शुरुआत में जब एक विवि था, इसके बाद चार और हो गए। कार्मिकों की जो राशि कटी गई, वह बीकानेर विवि के पास जमा है। साथ ही पहले जब कार्मिकों की जो राशि कटती थी, तो वह कम होती थी, लेकिन अब नए वेतनमान के आधार पर काफी अधिक राशि देनी पड़ रही है। ऐसे में अब पैसा कहां से आएगा, यह बड़ी परेशानी है। जब नए विवि खोले गए, तब मैनेजमेंट ऑफ फण्ड में बड़ी खामी रही। यह स्पष्ट नहीं हो सका, इसलिए ये मुकदमेबाजी और समस्या पेश आ रही है।
डॉ बलराजसिंह, कुलपति जोधपुर कृषि विवि