6 दिसंबर 2025,

शनिवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

दो भाईयों के चार बच्चे अनाथ, एक जन्मांध तो दो साल का मासूम गंभीर बीमार

भगवान भरोसे जीवन, कोटड़ा क्षेत्र के लोहारी गांव में रह रहे बच्चे  

2 min read
Google source verification
दो भाईयों के चार बच्चे अनाथ, एक जन्मांध तो दो साल का मासूम गंभीर बीमार

दो भाईयों के चार बच्चे अनाथ, एक जन्मांध तो दो साल का मासूम गंभीर बीमार

पंचायत समिति कोटड़ा की उमरिया पंचायत का लोहारी गांव। यहां के रहने दो परिवारों के 4 बच्चे अनाथ जीवन जी रहे हैं। इनमें से एक की आंखों में रोशनी नहीं और दो साल का एक मासूम भूपेश दो माह से बीमार है। नासमझी में ना तो इन बच्चों की देखभाल हो पा रही है और ना ही बीमार को सही उपचार मिल पा रहा है।

अनाथ बच्चों का सहारा नहीं होने की सूचना पर राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय रेलवे ट्रेनिंग उदयपुर के शिक्षक दुर्गाराम मुवाल कोटड़ा के साथी शिक्षक मुकेश ओला के साथ बच्चों की सुध लेने पहुंचे। पता चला कि दो परिवारों के 4 बच्चे अनाथ हैं। चारो बच्चों के माता-पिता की मृत्यु हो चुकी है। 16 साल का उजमाराम बच्चों की देखभाल कर रहा है, उसका भाई 7 वर्षीय नकाराम जन्मांध है। उनकी चचेरी बहन 4 वर्षीय चंद्रिका भी इनके साथ है। चंद्रिका का भाई 2 वर्षीय भूपेश बीमार चल रहा है।

आशा भी हुई लाचार

लोहारी गांव की आशा सहयोगिनी लीला खेर ने मानवता के नाते बीमार बच्चे को अपने घर रखा। सुधार नहीं हुआ तो इलाज के लिए हिम्मतनगर ले गई। बच्चे के साथ अस्पताल में रहने वाला कोई नहीं था तो कुछ दिन लीला रुकी रही। फिर बच्चे के परिवार से ही उजमाराम को मेहनताना देकर बच्चे की देखभाल के लिए रखा।

घरेलू काम करने की मजबूरी

नकाराम जन्म से अंधा है, वह नदी से पानी लाता मिला। उसे परिवार की एक दादी ने अपने घर इसलिए रखा है ताकि घरेलू काम कर सके। इसी तरह से चंद्रिका को भी परिवार की एक दादी ने घरेलू काम के लिए रख रखा है। दोनों बच्चे मुश्किल भरा जीवन जी रहे हैं, क्योंकि इनके सिर से माता-पिता का साया उठ चुका है।

नकाराम-चंद्रिका के लिए सफल प्रयास

बुजुर्ग महिलाएं बच्चों को शेल्टर होम भेजने को तैयार नहीं थी। वजह ये कि उनकी मदद के लिए कोई नहीं है तो बच्चे घर का काम करते हैं। उनके भविष्य को लेकर समझाइश की तो वे शेल्टर करवाने के लिए तैयार हुए। नकाराम और चंद्रिका के लिए तो नए स्कूल सत्र में आवासीय विद्यालयों में प्रवेश करवाने की व्यवस्था हुई।

भूपेश का जीवन खतरे में

बीमार भूपेश के लिए मदद नहीं मिल पा रही है। उसे वापस आशा सहयोगिनी के घर रखा, लेकिन परिवार के लोग दबाव बना रहे हैं कि बच्चे के साथ कुछ अनहोनी हुई तो जिम्मेदारी तुम्हारी होगी। आशा सहयोगिनी बच्चे का जीवन बचाना चाहती है, इसलिए वह हर स्थिति का सामना करते हुए बच्चे को अपने साथ रखे हुए है।