ऐसे ही एक किसान है निम्बाहेड़ा के शिवराम मराठा। उन्होंने बताया कि वर्ष 2013 में एक हजार मीटर तथा वर्ष 2014 में 2-2 हजार वर्ग मीटर में दो पॉलीहाउस लगवाए। इन सब पर उनके 11.35 लाख रुपए खर्च हुए। जब फसल नहीं हुई तो उन्होंने 3.50 लाख रुपए की खाद डलवा दी, लेकिन अब भी निराशा हाथ लगी। मोटे तौर पर 4 हजार वर्गमीटर में कम से कम 43 टन खीरा होना चाहिए। अच्छी तरह से ट्रेनिंग लेकर खेती की जाए तो उत्पादन 56 टन से 60 टन तक आता है, लेकिन शिवराम के पॉलीहाउस में मात्र ढाई टन ही उत्पादन हुआ। जब उन्होंने शिकायत की तो मिट्टी और पानी की जांच कराने के बाद अधिकारियों ने बताया उसकी जमीन में टीडीएस ज्यादा है इसलिए यहां खेती नहीं हो सकती है। उनके गांव मंडा में तीन तथा चित्तौडगढ़़ जिले के करीब 50 से ज्यादा प्रगतिशील इस संरक्षित खेती से बर्बाद हो चुके हैं और अब सरकार भी सुनवाई नहीं कर रही है।
संरक्षित खेती के लिए शिवराम ने कृषि विभाग से ट्रेनिंग ली, फिर खेत की मिट्टी और पानी की जांच कराई। जांच सामान्य पाने पर उसका पॉलीहाउस मंजूर हुआ। कंपनी ने भी शेड लगाने से पहले मिट्टी और पानी की जांच की। जांच रिपोर्ट सामान्य आने पर सरकार ने कंपनी को पॉली हाउस लगाने के लिए पैसे जारी किए गए।
अब पीएम को लगाई गुहार
शिवराम ने कहा कि यहां सुनवाई नहीं हुई इसलिए अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को गुहार लगाई है। रजिस्टर्ड पत्र और मेल पर शिकायत की है। आशा है कि शायद वे हमारी समस्या का समाधान निकाल दें।