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जब राष्ट्रपति ने सम्मानित किया और ताम्रपत्र हाथ में लिया तो डबडबा आई आंखें… : जानवे

राजस्थान के मूकाभिनय कलाकार विलास जानवे से ख़ास बातचीत

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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 23 फरवरी को विज्ञान भवन, नई दिल्ली में जब राजस्थान के वरिष्ठ रंगकर्मी विलास जानवे को मूकाभिनय के लिए वर्ष 2021 के अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया तो ताम्रपत्र हाथ में लेकर उनकी आंखें डबडबा आईं। इस प्रतिष्ठित पुरस्कार को प्राप्त करने वाले विलास जानवे पांचवें कलाकार हैं। उन्होंने इस पुरस्कार का श्रेय अपने पिता वसंत जानवे, गुरु भानु भारती, डाॅ. शैल चोयल, मंगल सक्सेना, पद्मश्री देवीलाल सामर,पद्मश्री निरंजन गोस्वामी और पत्नी किरण जानवे को दिया। जानवे से उनकी रंगकर्म यात्रा के बारे में पत्रिका से विशेष बातचीत हुई, प्रस्तुत है कुछ अंश -

रंगमंच का सफर कैसे शुरू हुआ ?

उत्तर. पिछले 5 दशक से इस क्षेत्र में सक्रिय हूं। अभिनय का “ अ” पिताजी से सीखा। फिर नव भारत स्कूल में अपने बड़े भाई सुनील और छोटे भाई विकास के साथ स्किट करता। हमारी स्किट कोमेडी सेंडो और माइम रस्सा खींच बहुत लोकप्रिय हुईं। धीरे धीरे कॉलेज में मिमिक्री, मोनो एक्टिंग में इनाम मिलने लगे। काॅलेज में डॉ.शैल चोयल को सफ़ेद कॉस्ट्यूम और सफ़ेद मेकअप में पहली बार 1971 में मूकाभिनय करते देखा। तब से मैं भी चेहरा सफेद करके माइम करने लगा।

प्रश्न : आपने मूकाभिनय के शो करने कब से शुरू किए ?

उत्तर. सन् 1976 से 1986 तक मैं चंडीगढ़ में रहा। शुरू में वहां विभिन्न संस्थाओं के लिए सोलो माइम एक्ट करता था। दूरदर्शन के दिल्ली, जालन्धर के अलावा उपग्रह दूरदर्शन जयपुर और अमृतसर में मेरे कई कार्यक्रम दिखाए गए। बाद में मूकाभिनय का प्रशिक्षण देना शुरू किया। मैंने अपने दल “क्रिएटिव माइम थियेटर” द्वारा सोलो और ग्रुप माइम जोड़ कर पूरा 100 मिनट का कार्यक्रम तैयार किया। चंडीगढ़ के अलावा लेह लद्दाख, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़ के गांवों में शोज़ किए।

प्रश्न : उदयपुर आना किस तरह हुआ?

उत्तर. 1986 के सितम्बर में मैं पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, उदयपुर से जुड़ा। उदयपुर में मेरी नई पारी थी, कार्यक्रम अधिकारी के रूप में। अपना उत्सव दिल्ली और मुम्बई , शिल्पग्राम उत्सव, उदयपुर और गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, राजस्थान, दमन, दीव तथा सिलवासा के अलावा अन्य राज्यों में कई राष्ट्रीय और क्षेत्रीय उत्सवों से जुड़ने को मिला। 1998 में देश के पहले राष्ट्रीय मूकाभिनय उत्सव, हेबीटाट सेंटर, नई दिल्ली में पिता के नाम से बनाए दल “वसंत कला मंदिर” द्वारा भाग लिया। इसमें मेरी पत्नी किरण और छोटे बेटे रिधम ने अभिनय किया और बड़े बेटे समर्थ ने संगीत दिया।

प्रश्न : सेवानिवृत्ति के बाद भी इस क्षेत्र में आप सक्रिय हैं?

उत्तर. सेवानिवृत्त होने के बाद भी सीसीआरटी, उदयपुर में माइम एंड मूवमेंट के सेशन लेकर विभिन्न राज्यों के शिक्षकों को मूकाभिनय कला से परिचय कराया। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की नोबेल पुरस्कार रचना गीतांजली की कविताओं पर एक मूकाभिनय प्रस्तुति “कृपण” में स्वयं अभिनय किया और दूसरा मूकाभिनय मेरे बच्चे को पत्नी किरण जानवे से अभिनित करवाया।