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अंग्रेजी मीडियम की शूट‍िंग के दौरान साथ रहने वाले ड्र्राइवर और बचपन के दोस्‍त ने बोली दि‍ल छूने वाली बातेें

अभिनेता इरफान नहीं रहे, स्मृतियां शेष .... नहीं भुला पाता वो पल जब मेरी मां के पैर छुए और मांगा आशीर्वाद

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उदयपुर. फिल्म अंग्रेजी मीडियम की शूटिंग के दौरान करीब 60 दिन उनके साथ रहा। उनकी गाड़ी ड्राइव करता था। सुबह 9 बजे उन्हें लेने होटल पहुंच जाता था फिर सेट पर छोड़ देता था फिर उनकी शूटिंग खत्म होने के बाद होटल जाते और रात में घूमने निकलते थे। रात में कभी बड़ी तालाब तो कभी उभयेश्वर, कभी पिछोला और कभी कहीं ओर ले जाता था। उन्हें झील, पहाड़, जंगल बहुत पसंद थे, जहां वे घंटों बैठ सकते थे। हर दिन होटल से करीब 200-300 रोटियां लेकर निकलते थे जो रास्ते में कुत्तों को देते थे। वहीं, घास भी रखते थे जिसे मैं घर से लाता था, उसे इरफान सर गायों को खिलाते थे। होटल के पास एक छोटा शिवजी का मंदिर भी था जहां भी वे जल चढ़ाते थे। उनकी पत्नी और बच्चे भी कुछ समय तक उनके साथ रहे। इरफान सर के लिए काम कर के कभी ऐसा महसूस नहीं हुआ कि वे बहुत बड़ेे एक्टर हैं। बहुत ही सादा जीवन जीते थे। एक बार मेरे साथ मेरे गांव भी चले और वहां उन्होंने मेरी मां से मिलकर उनके पैर छुए। उनसे कहा कि मुझे बस ये आशीर्वाद दो कि मैं जल्द ठीक हो जाऊं। ये पल याद कर के आज भी मेरी आंखों में आंसू आ जाते हैं। मैं उन्हें खेतों पर भी ले गया। उनके लिए हमेशा मैं घर से ही बकरी का दूध लेकर जाता था और गाय का घी। वे ऑर्गेनिक चीजें खाते थे इसलिए मुंबई में भी उनके लिए भिजवाता था।

(इरफान की गाड़ी के ड्राइवर नरपतसिंह आशिया की जुबानी)

वर्षों बाद मैं और इरफान ऐसे गले लगे, जैसे कृष्ण-सुदामा’

मेरे किशोरावस्था के साथी इरफान खान बहुत सरल व सज्जन रहे हैं। अहंकार उनमें तब भी नहीं था, आज भी नहीं। आमेर रोड, जयपुर में हम दोनों के घर आसपास हैं। मैं सुभाष क्रिकेट क्लब में सेके्रट्री था। वे बैट्समैन और स्पिनर के रूप में खेलते थे। घर के पास राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान के ग्राउंड में वर्षों तक खेले। समय के पाबन्द थे। सबसे पहले आकर ग्राउंड में विकेट गाड़ते थे। पतंगें भी खूब उड़ाई और लड़ाई। इरफान भाई को वायलिन बजाने का भी शौक था। बाद में वे नाटक थियेटर सीखने दिल्ली चले गए। इधर मैं आयुर्वेद कालेज में। उनके पिता के पास पुराने टायरों की दुकान थी। साधारण घर के होने पर भी स्वयं के दम पर खुद के बलबूते प्रतिभा से शिखर तक पहुंचे ।

अभी करीब 8 महीने पहले ही ‘अंग्रेजी मीडियम’ की शूटिंग के दौरान मुझे याद किया, मिलने बुलवाया। मैं लोक कला मण्डल के निदेशक लईक हुसैन को साथ लेकर मावली के पास मिलने गया। गले मिले, कृष्ण सुदामा से भावुक हुए ,नई पुरानी बातें हुई। मैंने कैंसर होने से विल पावर रखने की सलाह दी तो बहुत आत्मविश्वास से बोले तभी तो शूटिंग कर रहा हूं..अभी भी उनका मनोबल बहुत मजबूत देखा। जल्दी ठीक होकर मेरे घर आने की बात कर ,आयुर्वेद उपचार के बारे में बातें करने लगे। इरफान खान से लॉकडाउन के कारण 5 दिन पूर्व ही बात करने फोन किया तो उनके सेके्रटरी ने बताया कि भाई की तबीयत ठीक नहीं है। बात करने की स्थिति में नहीं है।
(बचपन के मित्र बालकृष्ण शर्मा की जुबानी )


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