उदयपुर जिले के रुण्डेड़ा में गन्ना उत्पादक किसान गुलाब चंद फ रावत खेत पर ही चरखा लगाकर गुड़ बना रहे हैं। इससे स्थानीय लोगों को शुद्ध मीठा गुड मिल रहा है। साथ ही बिक्री से आय भी हो रही है। बाजार में इसकी काफी मांग है।
बैलों की जगह ट्रैक्टर से जुताई
वर्तमान में बैल की जगह ट्रैक्टर ने ले ली है। किसान ट्रैक्टर से चरखे को घुमाकर महज दो घंटे में बड़ी कढ़ाही भरकर रस उबलने के लिए रख देता है। एक दिन में दो बार गुड़ बनाया जा रहा है। एक कढ़ाही रस निकालने में चार लीटर डीजल की खपत होती है । पूरी प्रक्रिया में आठ घण्टे लगते हैं।
केमिकल मिलावट रहित शुद्ध गुड़
किसान परंपरागत तरीके से बिना किसी केमिकल मिलावट के शुद्ध गुड़ बना रहे हैं। इसे खरीदने और रस पीने के शौकीन लोग सीधे खेतों पर पहुंच रहे हैं। यहां चरखे से निकल रहे गन्ने के ताजे रस में नींबू, धनिया डालकर उसका रसास्वादन लेते हैं। दूसरी ओर उबलते हुए गरमा- गरम गुड को पलाश के पत्तों पर लेकर लकड़ी की चम्मच से चाट कर क्राबक (गरम गुड़) का लुत्फ उठाते हंै। रस और गुड़ खाने के बाद लोग किसान से गरम गरम शुद्ध गुड़ खरीद कर लाते हैं।
रस को 5 घण्टे तक उबालते हैं
गुड बनाने के लिए छ: लोग गन्ने की कटाई, छिलाई व सफाई कर पूरे दिन में करीब गन्ने के 30 भाड़ी (बंडल) बनाते हैं। यह भाडिय़ां चरखे के पास रख दी जाती हैं। अगले दिन किसान चरखे को ट्रैक्टर की सहायता से घुमाते हैं। रस को टीन के डिब्बे में भरते हैं। पास ही भट्टी पर लगी कढ़ाही में इसे भरा जाता है । दो घंटे में 5 भाड़ी गन्ने से करीब 13 टीन यानी 4 क्विंटल रस निकलता है जिससे बड़ी कढ़ाही पूरी भरती है। इस रस को करीब पांच घण्टे तक लगातार उबाला जाता है । यह गुड़ में परिवर्तित हो जाता है।
राजकुमार मेनारिया — रुण्डेडा