
प्रतीकात्मक तस्वीर
ऐसे कामकाजी माता-पिता जो अपने काम में व्यस्त हैं, उनमें से अधिकांश के बच्चों को मोबाइल की लत लग चुकी है, यानी वे मोबाइल एडिक्शन के शिकार हो रहे हैं। इससे डिप्रेशन, मूड अस्थिरता और छोटी उम्र में गुस्सा आना जैसी मानसिक समस्याएं सामने आ रही है। शहर में ऐसे कई परिवार हैं, जो इन दिनों अपने बच्चों को मोबाइल की लत को छुड़वाने व सामान्य करने के लिए मनारोग विशेषज्ञ की सलाह तक ले रहे हैं।
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बढ़ते एकल परिवार : और भी हैं कई कारण
विशेषज्ञों के अनुसार बढ़ते एकल परिवार की वजह से बच्चों को दादा दादी, नाना नानी का साथ नहीं मिल पाता। उनके द्वारा प्राप्त की जाने वाली जीवन मूल्यों की कमी साफ़ दिखाई पड़ती है। माता-पिता दोनों का ही कामकाजी होना आजकल काफी परिवारों में देखा जाता है। ख़ास तौर पर उच्च दबाव वाले पेशों में जहां कई घंटों और तनावपूर्ण कार्य रहते हैं जैसे यदि दोनों माता-पिता चिकित्सक, बैंकर, इंजीनियर्स, अधिवक्ता या फिर सार्वजनिक जीवन में या दोनों के कार्यस्थलों में दूरियां है, तो वे बच्चों के साथ कम समय दे पाते हैं। इससे बच्चों में उनके प्रति असवेंदनशीलता बढ़ाता है, यह बच्चों में तनाव का मुख्य कारण है।
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किसी ओर के भरोसे बच्चों को रखना- काम की व्यस्तता की वजह से बहुत से परिवारों में बच्चों की देखभाल दाई या घरों में काम करने वाली मैड करती है, जिससे उनमें माता पिता के प्रेम का अभाव बन जाता है। जो जिंदगी में खालीपन को बढ़ावा देता है।
- ज्यादातर बार बच्चों को व्यस्त करने के लिए या उनके खालीपन को दूर करने के लिए बहुत से परिवार बच्चों को बहुत ही कम उम्र में मोबाइल फ़ोन थमा देते हैं। छोटे बच्चों में खाना खिलाने के दौरान भी ये अक्सर देखा गया है, इसका दुष्परिणाम कुछ समय बाद दिखाई देता है जैसे चिड़चिड़ापन, मोबाइल के प्रति ज्यादा उत्सुकता, एकाग्रता में कमी, देरी से बोलना, जिद्दीपन आदि।
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इन बातों का माता-पिता रखे ध्यान:
- 18 साल से पहले बच्चों व किशोरों को मोबाइल फ़ोन व अन्य स्क्रीन जैसे टी.वी., टेबलेट आदि से दूर ही रखा जाना चाहिए।- समाज में, विद्यालयों में पढाई व खेल कूद के अलावा जीवन मूल्यों पर भी खास ध्यान देने की जरुरत है। जिससे वे आने वाली चुनौतियों को बेहतर तरीके से संभाल पाएं।
- माता-पिता को बच्चों के साथ रोजमर्रा में गुणवत्ता वाला समय बिताने की खास जरुरत है। जिससे बच्चों में आत्मविश्वास व् स्फूर्ति में तेजी आती है।- बच्चों व किशोरों के साथ काम कर रहे मनोचिकित्सक से सहयोग लेने में बिलकुल संकोच न करें। जो समस्या माता पिता व परिवार स्वयं नहीं संभाल पा रहे हैं, उनमें अक्सर मनोचिकत्सकीय सहयोग से काफी बेहतर नतीजे देखे गए हैं और मनोचििकत्सा का मतलब सिर्फ दवाई नहीं है अपितु समस्या को सही से समझ कर समाधान करना है। जिसमें बिहेवियर थेरेपी व् फॅमिली थेरेपी की अहम् भूमिका है।
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कामकाजी माता-पिता की अति व्यस्तता के कारण बच्चों में बढ़ती मोबाइल की लत मनोविकारों को बढ़ा रही है। हालात ये है कि उदयपुर के सैंकड़ों परिवार इस समस्या से लड़ रहे हैं। पहले तो माता-पिता को भी ये स्वीकारना होगा कि उनका बच्चा इस बीमारी या लत का शिकार हो चुका है, इसके बाद तत्काल चिकित्सक की सलाह लेनी होगी।
डॉ आरके शर्मा, मनोचिकित्सक व सचिव चेतस हैल्थ केयर एंड चैरिटेबल ट्रस्ट उदयपुर
Published on:
07 Apr 2023 07:40 am
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