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43वें दिव्यांग एवं निर्धन सामूहिक विवाह के विशेष भावी जोड़े –
व्हाट्सऐप दोस्ती से सात फेरे
धर्मदास पाल (35) ग्राम पठारी पेठपुरा, जिला टीकमगढ़ (मध्य प्रदेश) के निवासी हैं। जन्मजात दोनों हाथों से दिव्यांग होते हुए भी उन्होंने किसी भी चुनौती को अपने सपनों पर हावी नहीं होने दिया। बारहवीं तक की पढ़ाई पूरी की और माता-पिता व पांच भाई-बहनों के साथ रहते हुए कम्प्यूटर ऑपरेटर व प्रिंटिंग प्रेस में काम कर रहे हैं। उनकी जिंदगी में मोड़ तब आया जब उन्होंने टेलीविजन के माध्यम से संस्थान के निःशुल्क सेवा प्रकल्पों के बारे में जाना।
छोटी सी मुलाकात, जन्मों का सफर

एक सड़क हादसे के जख्म ने छत्तीसगढ़ के वायगांव निवासी सोमनाथ धृतलहरे (28) के बांए हाथ को नाकाम कर दिया। उन्हें 2018 में बाइक एक्सीडेंट के बाद बाएं हाथ में इंफेक्शन के चलते हाथ कटवाना पड़ा। पिता नंदकुमार मजदूरी कर परिवार का पालन पोषण करते हैं। सोशल मीडिया से जानकारी मिलने पर वे उदयपुर आये। जहां कृत्रिम हाथ लगवाया और साल 2023 में संस्थान से निःशुल्क त्रैमासिक मोबाईल रिपेयरिंग प्रशिक्षण प्राप्त कर आत्मनिर्भर बने। अब गांव में मोबाईल रिपेयरिंग की खुद की दुकान चला परिवार को आर्थिक संबल दे रहे हैं।
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एक साल पहले छत्तीसगढ़ में ही आयोजित ‘दिव्यांग पैदल मार्च’ आयोजन में इनकी राखी से हुई छोटी सी मुलाकात दोनों को जन्म-जन्म के बंधन तक ले लाई। सेंदरी जैजैपुर की राखी भी दोनों पांवों और दांयी आँख से जन्मजात दिव्यांग थी। गांव के एक परिवार के बच्चे का संस्थान में सफल ऑपरेशन हुआ था, जिसने इन्हें संस्थान जाने की सलाह दी। वर्ष 2014 में संस्थान आने पर दोनों पैरों का सफल ऑपरेशन होने के बाद कैलिपर्स के सहारे आराम से चलने लगी। दोनों का संस्थान से लाभान्वित होना और अब दोनों का विवाह भी संस्थान के 43वें निःशुल्क सामूहिक विवाह समारोह होना ये दोनों मात्र संयोग ही नहीं, अपना सौभाग्य भी मानते हैं।
संकलाग काली बनेंगी दिव्यांग कचरू की लाठी
राजस्थान के आदिवासी बहुल बांसवाड़ा निवासी कचरूलाल (29) पुत्र कमला जन्मजात पोलियो के कारण दोनों पांवों से अकाम हैं और लाठी के सहारे चलते है। वहीं पादरा- बडाना, गांव की काली कुमारी (25) निर्धन परिवार से है। पिता शंकरलाल खेती एवं दिहाड़ी मजदूरी कर पांच भाई-बहिनों का भरण-पोषण बमुश्किल कर पाते हैं । कचरूलाल परिजनों के साथ खेती में सहयोग कर जीवन यापन कर रहे हैं।