उदयपुर . रावल समरसिंह के बाद 1302 ई. में उनके पुत्र रत्नसिंह चित्तौडगढ़ के शासक बने। तब मेवाड़ एक नवोदित
शक्ति के रूप में उभर रहा था। अलाउद्दीन खिलजी अति महत्वाकांक्षी और घोर साम्राज्यवादी शासक था। चित्तौडगढ़़
दुर्ग भौगोलिक एवं सामरिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण था। मालवा, गुजरात और दक्षिण भारत को अपने अधीन रखने के लिए किसी भी शासक के लिए चित्तौडगढ़़ पर अधिकार रखना जरूरी था। मालवा और दक्षिण जाने का रास्ता भी यहीं से गुजरता था। ऐसे में खिलजी ने चित्तौडगढ़़ पर आक्रमण किया था। रानी पद्मिनी के लिए युद्ध जैसी बातें निराधार हैं। यह कहना है मेवाड़ के प्रमुख इतिहासकारों का।