24 दिसंबर 2025,

बुधवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

जाएं तो जाएं कहा: सक्षम लोगों ने फेरा मुंह, अक्षम की मजबूरी का होता है मोलभाव

प्रदेश में सरकारी अस्पतालों के हाल बुरे हैं। ऐसे में सक्षम व्यक्ति का राजकीय चिकित्सालयों में उपचार से मोह टूट रहा है, जबकि आर्थिक तौर से कमजोर तबके को राजकीय चिकित्सालयों में उपचार की मजबूरी उसे यहां खींच लाती है

2 min read
Google source verification

image

jyoti Jain

Mar 18, 2017

प्रदेश में सरकारी अस्पतालों के हाल बुरे हैं। ऐसे में सक्षम व्यक्ति का राजकीय चिकित्सालयों में उपचार से मोह टूट रहा है, जबकि आर्थिक तौर से कमजोर तबके को राजकीय चिकित्सालयों में उपचार की मजबूरी उसे यहां खींच लाती है। दूसरी ओर कुकुरमुत्ते की तरह पनप रहे निजी चिकित्सालयों में लोगों की मजबूरी का 'मोलभाव' होता है।

प्रदेश के चिकित्सा राज्य मंत्री बंशीधर बाजिया की ओर से निजी चिकित्सालयों में हो रही लूट और सरकारी चिकित्सालयों के बिगड़ते हाल को लेकर राजस्थान पत्रिका ने सच जानने के प्रयास किए तो उनका मत जमीनी हकीकत पर मोहर लगाता मिला।

READ MORE: सच्चाई की जीत @ 32 साल बाद भी इंसाफ रहा कायम, हाईकोर्ट ने की अपील खारिज

जानकर आश्चर्य होगा कि प्रदेश की जनता को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने वाली सरकार के दावों के विपरीत केवल उदयपुर के रवींद्रनाथ मेडिकल कॉलेज एवं इसके अधीन संचालित चिकित्सालयों में 40 फीसदी विशेषज्ञ चिकित्सकों का अभाव है। एेसा ही गंभीर हाल चिकित्सा एवं स्वास्थ्य महकमे के अधीन संचालित राजकीय संस्थानों का है। सालों पहले स्वीकृत पदों के विपरीत चिकित्सालयों पर रोगियों की संख्या भार अधिक हुआ है।

हर सांस में दुर्गंध

निजी चिकित्सालयों की तुलना में राजकीय चिकित्सालयों में गंदगी का आलम है। महाराणा भूपाल चिकित्सालय, पन्नाधाय महिला एवं क्षय रोग चिकित्सालय में गंदगी के चलते आम आदमी का वहां खड़ा रहना मुश्किल भरा महसूस होता है। वार्डों के गंदे शौचालय, संशाधनों की कमी, बंद पड़े एक्जॉस फेन, साफ-सफाई में आवश्यक फिनाइल का उपयोग नहीं करना, सफाई के नाम पर चिकित्सालय के वार्डों में उपयोग लिए जाने वाले चद्दरों से पोछा लगाना, गंदगी से अटे चिकित्सालय के पिछले गलियारे, नालों में अटा कचरा जैसी कमियां सक्षम आदमी को चिकित्सालय आने से रोकती हैं।

READ MORE:राजस्थानी संस्कृति की बिखरेगी रंग-रंगीली छटा, राजस्थान दिवस और मेवाड़ महोत्सव पर आप भी कहेंगे फिर भी दिल है राजस्थानी...

रोगी भार की अधिकता भी गंदगी के लिए कुछ हद तक जिम्मेदार है। सफाई के ठेकों के नाम पर हर माह लाखों रुपए के भुगतान को लेकर चिकित्सालय प्रशासन की चुप्पी भी इसके लिए बहुत हद तक जवाबदार है। दूसरी ओर निजी चिकित्सालयों का आकर्षण उनके परिसर में सफाई से जुड़ा हुआ है। शहर के सेटेलाइट हॉस्पिटल में बड़े चिकित्सालयों की अपेक्षा साफ-सफाई कुछ हद तक सही मिली।

वार्ड में बंद, कक्षों में चलते एसी

कॉलेज से जुड़े चिकित्सालयों का आलम यह है कि यहां के बर्न वार्ड, आईसीयू, ट्रोमा सर्जरी, ट्रोमा एवं अन्य बड़े वातानुकूलित वार्डों में यह यंत्र अनुपयोगी बने हुए हैं। आए दिन खराबी के अलावा मरीज सुविधा को दरकिनार कर यहां बिजली बिल बचाने की जुगत होती है। जबकि, कड़वा सच यह है कि दायरे से बाहर होने के बावजूद चिकित्सालय के विभागाध्यक्ष एवं अन्य ओहदेदार चिकित्सा विशेषज्ञ उनके बैठक कक्षों में अवैध तरह से वातानुकूलित यंत्रों का उपयोग कर चिकित्सालय के राजस्व पर भार डाल रहे हैं।

प्रयास में कमी नहीं

स्वीकृत पदों की अपेक्षा सेवारत चिकित्सा विशेषज्ञों की ओर से मरीजों को हर संभव सेवाएं देने की जिम्मेदारी रहती है। सफाई को लेकर सावधानी बरती जाती है।

डॉ. शलभ शर्मा, उपाचार्य, आरएनटी मेडिकल कॉलेज

READ MORE: शराबबंदी की आवाज बुलंद कर रहीं यहां की महिलाएं, दारू ठेका बंद करने की मांग

बेहतर प्रयास पर जोर

प्रशासनिक प्रयास व्यवस्थाओं को बेहतर बनाने के होते हैं। रिक्त पदों की सूचना समयवार विभाग मुख्यालय को दी जाती है।

डॉ. संजीव टाक, सीएमएचओ, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग

ये भी पढ़ें

image