
उदयपुर. भारतीय संस्कृति में हमेशा से मां को प्रथम गुरू और घर को ही पाठशाला कहा गया है। घर ही है जहां माता-पिता बच्चों को ज्ञान देने की शुरुआत करते हैं। लेकिन, समय के साथ सब बदलता गया और व्यस्तता भरी जिंदगी में बच्चों के लिए माता-पिता के बजाय ये ज्ञान प्ले ग्रुप व नर्सरी कक्षाओं में कराए जाने लगा। वहीं, पहली बार स्कूलों की दहलीज पर कदम रखने वाले नन्हों के कंधों पर बस्ते का भार भी दे दिया गया। लेकिन, कोरोना महामारी के कारण पिछले साल से छोटी कक्षाओं के स्कूल बंद ही रहे हैं। एेसे में जो बच्चे प्ले ग्रुप या नर्सरी में जाने वाले थे, उन बच्चों को अब फिर से घरों में ही माता-पिता अक्षर ज्ञान करा रहे हैं। वहीं, नन्हों के कंधों पर जो बस्तों का बोझ था, उससे भी वो मुक्त ही है।
कोरोना काल में एडमिशन कराने से कतरा रहे अभिभावक
दरअसल, शैक्षणिक सत्र शुरू हो चुका है और अब तक नर्सरी, प्री प्राइमरी व प्ले ग्रुप के स्कूलों पर ताले ही है। ना तो सरकारी स्कूलों में प्रवेशोत्सव हो पाए और ना ही निजी स्कूलों में प्रवेश। पहले जहां इन कक्षाओं में प्रवेश के लिए अभिभावक भागदौड़ करते थे। वहीं, अब कोरोना काल में बच्चों का एडमिशन कराने से अभिभावक कतराते नजर आ रहे हैं। वहीं, अब कोरोना की तीसरी लहर का भी खतरा बताया जा रहा है, जिससे बच्चों के ही अधिक प्रभावित होने की आशंका जताई जा रही है। एेसे में अभिभावक बच्चों को कोरोना के हालात ठीक होने तक स्कूल भेजने को तैयार ही नहीं हैं। इसका नुकसान इन कक्षाओं व स्कूलों को हुआ है।
घर पर ही अ, आ, इ, ई का पाठ
अभिभावक श्रेष्ठा माथुर ने बताया कि कोरोना के कारण उन्होंने उनके ४ साल के बेटे का एडमिशन पिछले साल नर्सरी में नहीं कराया। इस साल भी वे अभी एडमिशन कराना नहीं चाहतीं। इसलिए घर पर ही बेटे को अलग-अलग तरीकों से सब कुछ सिखा रही है ताकि स्कूल जाने पर कोई दिक्कत नहीं आए। इसी तरह एक अन्य अभिभावक नीतू मेहता ने बताया कि उनकी बेटी नीरिति का एडमिशन कोरोना काल होने के कारण नहीं कराया। बच्चों को आराम से घर पर ही खेल-खेल में अक्षर ज्ञान करा रहे हैं। बाकी यू-ट्यूब का भी सहारा लेते हैं जिस पर सभी तरह के वीडियोज उपलब्ध हैं।
मनोचिकित्सक का कहना...
कोविड महामारी के दौरान घर पर ही अक्षर ज्ञान अभिभावकों के लिए महज एक औपचारिकता नहीं रह कर बच्चों एवं अभिभावकों के बीच रिश्ते को मजबूती देने का एक अच्छा अवसर है। आज की इस भागदौड़ की जिंदगी में जो हमारी अपनी जिम्मेदारी हमने पूरी तरह स्कूल के भरोसे छोड़ दी थी, यह ठहराव उन्हें समझने का और बच्चों से जुडऩे का एक अच्छा वक्त है जो कि उनके मनोविकास के लिए अत्यंत आवश्यक है। यह वर्षों पुरानी परम्परा जो समय के साथ कहीं पीछे छूट रही थी, अक्षर ज्ञान के साथ साथ बच्चों के मानसिक वृद्धि में भी सहयोगी है।
डॉ. आरके शर्मा, मनोचिकित्सक व सदस्य, इंडियन साइकेट्रिक सोसायटी की कोविड 19 ऑनलाइन मेंटल हैल्थ सर्विसेस
Published on:
26 May 2021 07:06 pm
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