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युवाओं में बढ़ रही पैनिक अटैक की टेंशन

- हृदयघात, ब्रेन स्ट्रोक या अन्य गंभीर शारीरिक बीमारी होने का अंदेशा

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पैनिक अटैक अब युवाओं में आम होने लगा है। कई बार जब ऐसा होता है, तो लगता है मानो हार्ट अटैक या ब्रेन स्ट्रोक आया हो, लेकिन ये ऐसी समस्या है, जो गंभीर नहीं होने के बावजूद गंभीर है। यह घबराहट से उपजी बीमारी है। आमतौर पर चिकित्सक भी जांच व रिपोर्ट के बाद मरीज को फ्री कर देते हैं, मनोचिकत्सा विभाग में रेफर करने पर भी इसका कोई निष्कर्ष नहीं निकला, केवल सामान्य दवाइयों के बूते मरीजों को घर भेज दिया गया।

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जानिए, कैसे कैसे मामले- दामिनी परिवार के साथ पारिवारिक समारोह में पहुंची तो अचानक से उसकी धड़कन बढ़ गई, सांस फूलने लगी और ऐसा लगा बस अभी चक्कर खाकर गिर जाएगी। परिजन तुरंत अस्पताल पहुंचे, जहां उसकी ह्रदय सम्बन्धी जांचें की गई, जिसमें सब ठीकठाक था। कुछ इंजेक्शन व दवाइयां देकर उसे घर भेज दिया गया। जब भी बाहर जाती तो कई बार ऐसा हुआ।

- कुशल के साथ भी कुछ ऐसा ही था। ग्यारहवीं की परीक्षा के समय अचानक घबराहट का दौरा आया, जिसमें उसे धुंधलापन महसूस हुआ और चक्कर आने लगे, सीने में तेज दर्द महसूस हुआ। इससे शरीर पसीने-पसीने हो गया। उसे लगा आज तो बचना मुश्किल है। उसे तुरंत अस्पताल ले जाया गया। यहां जांच सामान्य आई, उसे कई बार दौरे आए, जो 1 से 5 मिनट तक रहते और स्वतः ही ठीक हो जाते।

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यह है पैनिक अटैक के लक्षणचिकित्सकों के अनुसार पैनिक अटैक के कई मामले इमरजेंसी में पहुंचते हैं। ये युवाओं में आम है, जिसमें मरीज व उसके परिवार को हृदयघात, ब्रेन स्ट्रोक या अन्य गंभीर शारीरिक बीमारी होने का अंदेशा होता है। बार-बार होने वाले ऐसे दौरे, जिसमें शारीरिक जांचें सामान्य रहती हैं। ये चिंता के दौरे यानी पैनिक अटैक की पहचान होते हैं। इसमें घबराहट, धड़कन बढ़ने, सांस लेने में तकलीफ, चक्कर आने, कंपकंपी होने व ऐसा लगना जैसे अब जान निकल जाएगी। कई बार चिकित्सक इसे एंग्जाइटी बताकर घर भेज देते हैं। लेकिन समस्या जैसी की तैसी बनी रहती है। मनोचिकित्सक को दिखाने को कहा जाता है, लेकिन कई बार मरीज खुद इसके लिए तैयार नहीं होता है, क्योंकि मनोचिकित्सा को लेकर नकारात्मक धारणा है।

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पैनिक अटैक मानसिक समस्याओं के कारण...

मन में नकारात्मक विचार इन दौरों के पीछे के मुख्य कारण हैं। कुछ अनहोनी होने की आशंका, गंभीर शारीरिक बीमारी होने का डर, परफॉरमेंस एंग्जायटी इसमें शामिल है।नकारात्मक विचारों के पीछे इंसान की पर्सनालिटी एक मुख्य कारण है, कुछ लोगों में चिंता स्वभाव में रहती है जो कई बार इसका कारण बनती है। रिलेशनशिप में तनाव, पढ़ाई.लिखाई या काम का तनाव, लोगों के ताने व अन्य तनाव भी नकारात्मकता को बढ़ाकर दौरों का कारण बन जाते हैं।

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यह है समाधान :

- मरीज व उनके परिवारों को इनके कारणों एवं इलाज की प्रक्रिया की सही जानकारी होना अनिवार्य है। स्वीकार्यता एवं इलाज़ के प्रति तत्परता व सहयोग अगला कदम है।- मनोवैज्ञानिक कारण जानकर साइको थेरेपी यानी पेशेवर काउंसलिंग जैसे कॉग्निटिव बिहेवियर थेरेपी के जरिए नकारात्मक सोच को सकारात्मकता में बदला जाता है।

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- इसमें एन्टी डिप्रेसेंट वर्ग की दवाइयों के माध्यम से सही दिशा में मनोचिकित्सकीय इलाज किया जाता है। हालांकि समाज में इन एन्टी डिप्रेसेंट दवाइयों के प्रति कई तरह की भ्रांतियां पहले से है। ये मरीज को सिर्फ सुलाने के लिए देने, दिमाग को सुन्न करने या आदत पड़ने व जिंदगीभर लेने जैसी भ्रांतियां हैं। जो सही नहीं है। चिकित्सक की सलाह व दवाई जरूरी है।

डॉ आरके शर्मा, मनोचिकित्सक