सदियों से संरक्षण व समर्पण, जिससे सुरक्षित रहे जलाशय
मेनार में जलाशयों की सुरक्षा और पक्षियों के संरक्षण की परंपरा सदियों पुरानी है। 19वीं शताब्दी में अंग्रेज यात्री जॉन टिल्ट्सन की ओर से लिखित पुस्तक Òपिक्चरेस्क सीनरी इन इंडियाÓ में इसका जिक्र मिलता है कि जब एक ब्रिटिश अधिकारी ने पक्षी का शिकार किया, तो गांववासियों ने उसका हुक्का-पानी तक बंद कर दिया। यह घटना बताती है कि मेनार में पक्षी संरक्षण कितना महत्वपूर्ण रहा है।
सामुदायिक समर्पण: ना सिंचाई और ना ही मछली का ठेका
यहां की जनता ने अपने बुजुर्गों की ओर से बनाए नियमों को आज तक निभाया है। जलाशयों का पानी सिंचाई के लिए इस्तेमाल नहीं होता, जिससे यहां की जलीय परिस्थितियां पक्षियों के अनुकूल बनी रहती है। शुरू से ही यहां मछली पकड़ने का ठेका नहीं दिया जाता है। जिससे प्रवासी पक्षियों को भरपूर भोजन मिलता है। वहीं, मेनार क्षेत्र में शिकार पर पूरी तरह से पाबंदी है। जिससे स्थानीय व प्रवासी पक्षी यहां बिना किसी खतरे के प्रवास कर सकते है।
पक्षियों के लिए पूरी तरह बंद कर दी खेती
कुछ वर्षों पहले तालाब सूखने पर यहां खेती की जाती थी, जिससे ग्रामीणों को आय प्राप्त होती थी। लेकिन जब पता चला कि खेती के लिए उर्वरक और पेस्टीसाइड उपयोग में लिया जाता है तो तुरंत बंद कर दिया गया। पिछले कई वर्षों से ग्रामीणों ने इस परंपरा को पक्षियों के हित में पूरी तरह समाप्त कर दिया। अब तालाब क्षेत्र में कोई खेती नहीं होती, ताकि परिंदों का प्राकृतिक आवास बना रहे।
अनवरत चल रही पेड़ लगाने की परंपरा
दशकों से तालाब की पाल और अपने खेतों पर आम का पेड़ बोने की परंपरा है। करीब हर परिवार के घर का सदस्य तालाब की पाल अपने खेत की मेड़ पर एक आम का पेड़ जरूर बोता है। साथ ही उसकी देखभाल की जिम्मेदारी भी लेता है, यही वजह है कि आज इस गांव के दोनों तालाब की पाल पर आम के सैकड़ों पेड़ लगे है। ये पेड़ छांव के साथ प्रकृति को संरक्षण और जीव जंतुओं का आश्रय स्थल भी बना।
ग्रामीणों के प्रयासों में हर कदम पर हमसफर रहा पत्रिका
राजस्थान पत्रिका ने मेनार वेटलैंड को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए पिछले 15 वर्षों से इस क्षेत्र के संरक्षण और प्रचार में सक्रियता दिखाई। हर छोटे से बड़ा मुद्दा प्रदेश और देश स्तर तक उठाया। लगातार खबरों के प्रकाशन से मेनार को Òबर्ड विलेजÓके रूप में पहचान दिलाई। साथ ही क्षेत्र की जैव विविधता को उजागर करते हुए इसे पक्षी प्रेमियों के लिए एक प्रमुख स्थल बनाया। अंतरराष्ट्रीय स्तर के बर्ड फेस्टिवल के आयोजन के साथ मेनार को वैश्विक स्तर पर चर्चित किया। पत्रिका ने ग्राउंड, एक्सक्लूसिव और अभियानों के माध्यम से मेनार वेटलैंड को संरक्षित करने के प्रयासों को समर्थन दिया। इन प्रयासों के चलते मेनार को मेनार वेटलैंड कॉम्प्लेक्स और अब रामसर साइट का दर्जा मिला, जिससे यह स्थल अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संरक्षित क्षेत्रों में शामिल हो गया।
इनका कहना है…
मेनार और उसके आसपास का इलाका पक्षियों को देखने के लिए दुनिया में मेरी पसंदीदा जगहों में से एक है। रामसर साइट के रूप में नया दर्जा मिलना मनुष्यों और पक्षियों दोनों के लिए अच्छी खबर है। -पॉल पेट्रिक कुलेन, पक्षी विशेषज्ञ, आयरलैंड हमारे पूर्वजों की परंपराओं को हमारी पीढ़ी ने आज भी कायम रखा है। गांव के सभी मौतबिरों ने एकत्रित होकर वर्षों से पूर्व लिए सटीक फैसलों से आज मेनार सुरक्षित बच पाया है। गांव के बुजुर्गों ने सबसे महत्वपूर्ण फैसला तालाब क्षेत्र में खेती बंद करने का लिया था, इसी के फलस्वरूप आज मेनार पक्षियों के लिए मुफीद आवास बन चुका है।
-विजय लाल एकलिंगदासोत, ग्रामीण सदियों से मेनार के ग्रामीण इन तालाबों का संरक्षण कर रहे है। केंद्र सरकार ने मेनारवासियों को रामसर साइट का तोहफा देकर पूर्वजों के समर्पणों को गौरवान्वित किया है। अब मेनार के लोगों की जिम्मेदारियां बढ़ गई है।
-शंकर लाल मेरावत, ग्रामीण पीढ़ियों से हमें पर्यावरण संरक्षण की समृद्ध परंपरा विरासत में मिली है। मेनार को रामसर साइट हमारे लिए सम्मान की बात है और आने वाली पीढ़ियों को प्रकृति संरक्षण की प्रेरणा देगा।
-अजय मेनारिया, युवा, मेनार तालाबों और पक्षियों के संरक्षण के लिए लिए गए छोटे-छोटे फैसलों ने आज मेनार को विश्व विख्यात कर दिया। रामसर साइट से मेनार में पर्यटन की अपार संभावनाएं होगी और लोगों को रोजगार मिलेगा।
-ओंकारलाल भलावत, ग्रामीण