
अब तक इन वायरस के भी नहीं बन पाए है वेक्सिन, कोरोना के लिए देश-दुनिया में जद्दोजहद जारी
भुवनेश पंडया
उदयपुर. देश दुनिया में अभी भी ऐसे कई वायरस है, जिनकी वेक्सिन अब तक नहीं बन पाए हैं। कोरोना का वेक्सिन बनाने के लिए पूरी दुनिया जुटी हुई है, लेकिन अब तक ऐसे कोई आसार नजर नहीं आए है कि इसका वेक्सिन जल्दी बन पाए। हालात इतने खराब है कि ऑक्सफोर्ड से लेकर पूरी दुनिया अब इस वेक्सिन को बनाने के लिए दिन रात एक किए हुए है। अब तो कई चिकित्सा संस्थान ये भी मशवरा दे रहे है कि हो सकता है आगामी दिनों तक हमें इस कोरोना वायरस के साथ ही जीवन बिताना पड़े। हाल में ब्रिटेन के पीएम बोरिस जोनसन ने कहा कि ऑक्सफोर्ड में वेक्सिन तैयार करने पर चर्चा करने के प्रयासों की बात के साथ ही कहा कि ऐसा भी हो सकता है कि इसका वेक्सिन कभी बन पाएगा या नहीं ये कहना मुश्किल है।
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बेहद खतरनाक हालात है अभी...वेक्सिन नहीं बनी तो लंदन के इम्पीरियल कॉलेज के प्रोफेसर डॉ डेविड नेबारो को हाल में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोविड-19 की जंग में विशेष तौर पर इन्हें मनोनीत किया है। नेबारो का कहना है कि ऐसे कई वायरस है जिनकी हमारे पास कोई वेक्सिन नहीं है, हम साफ तौर पर नहीं कह सकते कि कोरोना की वेक्सिन आएगी ही, यदि आ भी जाती है तो वह कितनी सफल और सुरक्षित होगी ये कहना भी मुश्किल है। इसके बाद उन्होंने कहा कि हो सकता है कि कोरोना की कभी कोई वेक्सिन बने ही नहीं, ऐसे में हो सकता है कि हमें कोरोना वायरस के बीच ही रहकर जीवन यापन करना पड़े।
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एचआईवी, मलेरिया, रायनो वायरस, एडिनो वायरस, डेंगू वायरस के अब तक वेक्सिन नहीं बन पाए। एचआईवी की वेक्सिन बनाने के लिए 20 वर्ष से प्रयास किया जा रहा है।- एचआईवी से अब तक तीन करोड़ लोग मौत की भेंट चढ़ चुके हैं।- मलेरिया से प्रति वर्ष 23 करोड़ संक्रमित होते हैं और चार लाख लोग प्रतिवर्ष मरते हैं। - डेंगू - 2015 में एक वेक्सिन बनी जिसे डब्ल्यूएचओ ने मंजूरी दे दी थी, लेकिन इसके साइड इफेक्ट खतरनाक थे, इसलिए इस वेक्सिन को नाकामयाब बताया गया, लेकिन इसकी वेक्सिन अब तक नहीं बनी। - सार्स- सार्स वायरस 2003 में सामने आया था, लेकिन 17 वर्ष बाद भी वेक्सिन नहीं बन पाई।
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ये है महत्वपूर्ण बिन्दु
- करीब डेढ सौ सालों से हम वेक्सिन का इस्तेमाल कर रहे हैं। कई नवजात जो बेहद कमजोर होते हैं वे कई वेक्सिन के कारण ही जिंदा रहते हैं। - वेक्सिन बनाने में समय लगता है, इसका कारण है कि जो वायरस आता है उस पर रिसर्च कर लैब में इसके वेक्सिन को डवलप कर जानवरों पर और जरूरत पर लोगों पर इसका ट्रायल करते हैं।
- 37 प्रतिशत वेक्सिन पहले फेज में फेल होता है, ऐसा माना जाता है। दूसरे फेज में 69 प्रतिशत व तीसरे फेज में 47 प्रतिशत ट्रायल फेल हो जाती है। केवल दस प्रतिशत वेक्सिन ट्रायल में सफल होती है, इसके बाद इस पर विश्व स्वास्थ्य संगठन इस पर मुहर लगाता है और फिर इसे दुनिया भर में दिया जाता है। - कोरोना का वेक्सिन बनाने में 18 माह लगने की बात कही जा रही है, लेकिन वह स्पष्ट नहीं है।
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इसकी वेक्सिन बनी है अब तक...
कोलरा, हेमोफिलिस इन्फलूएंजा टाइप बी, पेपिलोमा वायरस, जापानीज बुखार, मलेरिया की पूरी तरह नहीं बनी, मिजल्स, मेनिन्जाइटिस, मम्स, पटोसिस, न्यूमोकोकल डिजिस, पोलिवेलाटाइपिस, रेबीज, रोटावायरस, रूबेला, टिटनेस, टिग्बोन इन्फ्लाटिस, टीबी, टायफाइड, वेरिसेला, यलो फिवर की वेक्सिन बन चुकी है।
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इनकी वेक्सिन नहीं है, पाइप लाइन में है.
..चिकनगुनिया, डेंगू, केपिलोबेक्टर जेजूबी, एन्टेरोटोक्सिक जोनिक, एन्टोरा, हार्पिज सिम्पेलेक्स, एचआईवी वन, लिस्मेनियासिस, निपाह, नोङ्क्षटफोडियल, नोरोवायरस, पेराटाइपस सहित कुछ अन्य वायरस ऐसे है जिनकी वेक्सिन पाइप लाइन में है। -----इतने- इतने सालों में बनी है वेक्सिन ...वेरिसिला का वायरस - 28फ्लू मिस्ट- 28 साल एचपीवी- पेपिलोमा - 15 साल रोटावायरस- 15 साल इबोला- चार साल, सबसे जल्दी बनी है।
Published on:
16 May 2020 02:07 pm
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