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परम्पराओं के साथ आधुनिकीकरण व नई तकनीक से संस्था विकास के पथ पर अग्रसर

विद्या प्रचारिणी सभा भूपाल नोबल्स संस्थान का शताब्दी स्थापना वर्ष महोत्सवपंचकुण्डीय यज्ञ के साथ शुरु हुआ आयोजन

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परम्पराओं के साथ आधुनिकीकरण व नई तकनीक से संस्था विकास के पथ पर अग्रसर

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उदयपुर. विद्या प्रचारिणी सभा भूपाल नोबल्स संस्थान ने 99 वर्ष पूर्ण होकर 100 वें वर्ष में प्रवेश किया। इस मौके पर रविवार को संस्थान का शताब्दी स्थापना वर्ष महोत्सव की भव्य शुरुआत हुई। मुख्य अतिथि पूर्व राजपरिवार की सदस्य निरूपमा कुमारी मेवाड़ व महिमा कुमारी मेवाड़ थी। महिमा कुमारी ने कहा कि महाराणा भूपाल सिंह शिक्षा के प्रति दूरदृष्टि रखते थे। यह उसी का परिणाम है कि भूपाल नोबल्स संस्था 2 जनवरी, 1923 में स्थापित होकर स्थापना का शताब्दी महोत्सव मना रहा है। उनका कहा कि महाराणा भूपाल सिंह का आधुनिकीकरण के प्रति विशेष लगाव था। वे सदैव नई तकनीक सीखने का आह्वान करते रहे। उन्होंने संस्थान अध्यक्ष एवं बीएन के प्रधान संरक्षक महेन्द्र सिंह मेवाड़ की ओर से प्रेषित शुभकामनाएं देकर उनका संदेश देते हुए कहा कि किसी भी संस्था के लिए 100 वर्ष की लम्बी यात्रा पूर्ण करना बहुत बड़ी उपलब्धि है। यह प्रगति और उन्नति बिना किसी स्वार्थ के किए गए सामूहिक प्रयास का परिणाम है। अतिथियों ने वार्षिक आयोजन के कैलेण्डर का विमोचन किया। इससे पहले महोत्सव पंचकुण्डीय हवन के साथ शुरू हुआ। अतिथियों ने शताब्दी वर्ष महोत्सव का गुब्बारा भी छोड़ा।

अतिथि भुवनेश्वरी पुरी ने कहा कि शिक्षा में समझ और संस्कार आवश्यक है। विद्या प्रचारिणी सभा शिक्षा के क्षेत्र में जो कार्य कर राष्ट्र सेवा कर रही है, वह सराहनीय है। वैश्विक परिस्थितियों में शिक्षा के सही प्रचार की जरूरत है। उन्होंने भगवान राम, कृष्ण, राजा भृतहरि व राजा जनक का उदाहरण दिया। महाराणा प्रताप व शिवाजी को याद किया तो वर्तमान में धैर्य व ज्ञान की महती जरूरत बताई।

बीएन पीजी कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ.युवराज सिंह झाला ने विद्या प्रचारिणी सभा भूपाल नोबल्स संस्थान के संस्थान के निर्माण से लेकर 100 वर्षों तक पहुंचने की गौरव गाथा बताई। झाला ने कहा कि महाराणा भूपाल सिंह ने मई, 1947 में ही प्रताप विश्वविद्यालय की कल्पना की थी और उसके लिए बजट की घोषणा भी की, जो परिकल्पना 2016 में भूपाल नोबल्स विश्वविद्यालय के रूप में साकार हुई है। उन्होंने संस्था के लिए पूर्ण रूप से समर्पित होने वाले गुमान सिंह व स्वरूप सिंह ज्ञानगढ़ को नमन किया।
जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ के कुलपति प्रो. शिव सिंह सारंगदेवोत ने संस्थान के इतिहास पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि विकट परिस्थितियों में शिक्षा के प्रति समर्पित महाराणा भूपाल सिंह ने महाराणा फ तह सिंह से शिक्षण संस्थान खोलने की स्वीकृति प्राप्त कर उसे मूर्त रूप दिया। 1923 में प्रथम दो छात्र मोतीसिंह थाणा (ताल) व शिव सिंह परसाद थे। दो छात्रों से शुरू होने वाले इस संस्थान में वर्तमान में तेरह हजार विद्यार्थी शिक्षा पाकर प्रति वर्ष देश और विदेश में विभिन्न क्षेत्रों में सेवाएं दे रहे हैं।

संस्थान के कार्यवाहक अध्यक्ष प्रदीप सिंह पुरावत सिंगोली ने कहा कि हम भाग्यशाली हैं कि यह संस्थान अपना शताब्दी वर्ष मनाने जा रहा है। यह संस्थान मेवाड़ के पूर्व राजवंश की बदौलत है और इसकी उन्नति प्राण प्रण से समर्पित हुए बिना संभव नहीं थी। यहां के विद्यार्थी देश विदेश में भी ख्याति फैला रहे हैं।
संस्थान सचिव डॉ.महेन्द्र सिंह राठौड़ ने अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि यह गौरव की बात है कि संस्था 100 वर्ष की अनवरत यात्रा करते हुए आज अपने प्रगतिशील रूप में क्रियाशील है। वर्तमान में संस्थान में चौदह प्रवृत्तियां संचालित है और इसका कन्या शिक्षा के क्षेत्र में विशेष योगदान रहा है। उन्होंने गुमान सिंह राठौड़, यशवन्त सिंह मदारा सहित कई गणमान्य के प्रयासों पर भी प्रकाश डाला। पूर्व कार्यवाहक अध्यक्ष गुणवन्त सिंह झाला, उपाध्यक्ष भगवान सिंह भाटी, संयुक्त मंत्री शक्तिसिंह राणावत, उपमंत्री व प्रबन्ध निदेशक मोहब्बत सिंह राठौड़, वित्तमंत्री डॉ. दरियाव सिंह चुण्डावत, ऑल्ड बॉयज एसोसिएशन के अध्यक्ष एकलिंग सिंह झाला का स्वागत किया गया। संस्थान उपाध्यक्ष भगवत सिंह नेतावल ने आभार जताया। इस मौके पर विद्या प्रचारिणी सभा के सदस्य व कार्यकारिणी ओल्ड बॉयज एसोसिएशन के पदाधिकारी सहित कई गणमान्य मौजूद थे।