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गणेश चतुर्थी विशेष : उदयपुर के कावड़ कलाकार मांगीलाल ने बनाई गणेश जन्म की कथा पर कावड़, विदेशों से भी आई मांग

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MANGILAL MISTRY

गणेश चतुर्थी विशेष : उदयपुर के कावड़ कलाकार मांगीलाल ने गणेश जन्म की कथा पर कावड़, विदेशों से भी आई मांग

राकेश शर्मा राजदीप/उदयपुर. उज्जैन के राजा विक्रमादित्य काल से कावड़ को गढऩे की कला कालान्तर में चित्तौड़ जिले के बस्सी गांव पहुंची। लेकिन, आज यह पारम्परिक कला लुप्त होने के कगार पर है। ये दीगर बात है कि उसी गांव की माटी से जुड़े एक कलाकार मांगीलाल मिस्त्री का परिवार करीब छह दशक से उदयपुर में रहकर इस कला को देश में ही नहीं विदेशों में भी स्थापित करने की अकेले दम कोशिश कर रहा है। तभी तो ये साक्षरता, प्रौढ़ शिक्षा, दहेज उन्मूलन, परिवार नियोजन के अलावा रामायण, गीता, महावीर, बाईबल, मीरां और प्रताप जैसे लोक चरित्रों पर आधारित विषयों पर अब तक 121 कावडें बना चुके हैं।

इन दिनों मांगीलाल गणेश चतुर्थी के विशेष अवसर पर पिछले 2-3 माह से प्रथम पूज्य गणेश की लोकश्रुतियों पर आधारित कथाओं के आख्यानों को कावड़ पर उकेरने में लगे हैं। उन्होंने बताया कि हमारे देश में गणेश चतुर्थी के अवसर पर महाराष्ट्र सहित अन्य राज्यों में गणेशोत्सव की धूम मचती है। ऐसे में अब तक पांच कावड़ें मुंबई भेजी जा चुकी हैं। इधर, विदेशों में बसे प्रवासी भारतीय और कई ख्यात विदेशी शख्सियतें उनकी बनाई कावड़ों की मुरीद हैं। देश भर के अलावा अमरीका, फ्रांस, जापान, नार्वे, आस्ट्रेलिया और इंग्लैण्ड में इनकी बनाई कावड़ों की खासी मांग है।

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ऐसे बनती है कावड़

खिरनी, आम, अड़ूसा और सागवान जैसी लकडिय़ों को काट-सुखाकर आग की गरमी से तपाया जाता है। सामान्यतया धर्म और शिक्षा पर आधारित विषयों के प्रभाव को ध्यान में रखकर ही ऐसी कहानियों को फ्रेम-दर-फेम चित्रात्मक रूप से तैयार किया जाता है जो जनमानस में लोकप्रिय हों। इसके लिए कावड़ शिल्पी मांगीलाल कई दिनों और महीनों उनका पूरा अध्ययन करने के बाद ही सृजन आरंभ करते हैं। कई मर्तबा कावड़ में एक कहानी होती है तो कभी कहानियों की श्रंृखला भी चित्रित की जाती है। जिसे क्रमबद्ध तरीके से सुनाया जाता है।

सबसे छोटी और बड़ी कावड़ का रिकॉर्ड

माचिस के आकार से लेकर बीस फीट की कावड़ बनाकर मांगीलाल ने विश्व रिकॉर्ड कायम किया है। अपनी इस अनुपम कला की बदौलत अब तक वे देश-दुनिया के कई बड़ी शख्सियतों से मिलने और सम्मानित होने का गौरव हासिल कर चुके हैं। इसके अलावा देश-दुनिया में कई जगह स्कूल-कॉलेजों सहित कला संस्थानों में कावड़ कला पर वे लेक्चर डेमोंस्ट्रेशन भी आयोजित कर चुके हैं। अपनी इस उपलब्धि के बारे में वे कहते हैं 'काम की प्रशंसा ही असली पुरस्कार है...काम है, तभी तो नाम है। मुझे खुशी है कि अपने देश का नाम इस कला के दम पर दुनियाभर में हो रहा है।’