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प्रधानमंत्री मोदी के मेक इन इंडिया से प्रेरित उदयपुर के दो युवाओं ने लाखों का पैकेज छोड़कर चुनी अलग राह, पढ़ें इनकी कहानी

सैकड़ों परिवार को रोजगार संग मिल रही पर्यावरण संरक्षण की प्रेरणा भी

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राकेश शर्मा राजदीप/ उदयपुर . जीवन में अच्छी शिक्षा के साथ बेहतर भविष्य का सपना हर कोई देखता है। अब चाहे वो डॉक्टर हों, इंजिनियर, एडवोकेट, टीचर या फिर किसी विभाग में ऑफिसर ही क्यों न हों। कुछ लोग निजी व्यवसाय करके भी सामाजिक मान-प्रतिष्ठा हासिल करते हैं। यह सिलसिला बरसों-बरस एक पीढ़ी से दूसरी-तीसरी पीढ़ी अनवरत चलता रहा है और आगे भी जारी रहेगा। कुछ एेसी ही प्रेरक कहानी है लेकसिटी के दो युवा उद्यमियों असीम बोलिया और शुभम बाबेल की। इन्होंने साल 2014 में एक साथ लाखों का पैकेज छोड़कर अपने शहर के लिए कुछ अनूठा करने का मानस बनाया। वे बताते हैं 'औरों की तरह हमारे परिजनों ने भी हमें पढ़ाया, लायक बनाया। मैकेनिकल और कैमिकल इंजिनियरिंग करके लाख सालाना पैकेज पर काम करते एक दिन विचार आया कि अपने शहर में अपनों के बीच एेसे सपने बुनें जिसकी तामीर हर एक को बुलंदी दे सकें। बस, फिर क्या था? परिजनों संग विचार विमर्श और ना-नुकर के बाद शहर से करीब 35 किलोमीटर दूर ईको ग्रीन और कॉस्ट इफेक्टिव 'फ्लाई एेश ब्रिक्स' प्लांट की स्थापना की।'

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क्या है अनोखा इसमें

असीम बताते हैं 'अक्सर उपजाऊ मिट्टी खोदकर ईंटें बनाते और उन्हें पकाने के लिए भट्टों से निकलने वाले धुएं को देखकर बचपन में कई बार पीड़ा होती थी। अपनी शिक्षा के दौरान इससे निजात पाने के उपायों पर भी बहुत बार मित्रों से चर्चाएं कीं। दरअसल, उसी विचार को अमली जामा पहनाकर हम दोनों बेहद खुश हैं। इसलिए नहीं कि प्रधानमंत्री की मेक इन इंडिया मुहिम से जुड़ गए बल्कि इसलिए भी कि इस प्रोजेक्ट के कारण हम अपने शहर अपनों के बीच आकर इस शहर और आसपास की उपजाऊ धरा को खोदे जाने के अलावा पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने में भी अपना योगदान दे पाए हैं। इतना ही नहीं, इन ईंटों का निर्माण पावर प्लांट से वेस्ट के रूप में बचने वाली उस राख को रिसाइकल कर इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसे निस्तारित करना सरकार के लिए भी बहुत जटिल काम साबित हो रहा था।'