
विश्व आदिवासी दिवस बुधवार को है। इस मौके पर राजस्थान पत्रिका ने आदिवासी बहुल झाड़ोल क्षेत्र के वनवासी परिवारों का रुख किया। रोचक परंपराएं जीवंतता के साथ नजर आईं। सबसे खास यह कि विषम परिस्थितियों के बावजूद अतिपिछड़े कहे जाने वाले इस इलाके के आदिवासी दैनिक जीवन में एका बनाए हुए हैं। यहां हम पेश कर रहे हैं नए-पुराने कुछ ऐसे उदाहरण, जो सभ्य समाज को भी पीछे छोड़ रहे हैं। पारिवारिक-सामाजिक एकता की मिसाल हैं हमारे वनवासी । अनूठे इसलिए कि शहरी तड़क-भड़क भले ही इनमें नहीं है, लेकिन अपणायत की झिलमिलाहट कायम है।
दावा : यहां नहीं होती भ्रूण हत्या, एक हजार बेटों पर ११ से ज्यादा बेटियां
क्षेत्र में कन्या भ्रूण हत्या का एक भी मामला सामने नहीं आया है। बेटी को भी उतनी ही आजादी होती है, जितनी कि बेटे को। चूंकि आदिवासी लड़कियां भी कम उम्र में ही मजदूरी करते हुए आत्मनिर्भर बन जाती हैं, पसंद से रिश्ता जोडऩे के बाद परिवार को भी संबल देती हैं। लड़का-लड़की की समानता का उदाहरण मेलों और गवरी में भी दिखता है। देर रात तक चलने वाले फाल्गुन के मेलों में किशोरियां-युवतियां भी टोलियों में दिखती है। इनकी संख्या गवरी के दर्शकों में भी युवकों के मुकाबले ज्यादा होती है। समुदाय में सक्रिय समाजसेवियों का दावा है कि इस क्षेत्र में प्रति हजार लड़कों पर लड़कियों की संख्या ११०० से भी ज्यादा है।
ये भी खास : एक से ज्यादा शादियां सामान्य है। चार साल पहले माकड़ादेव में युवक ने एक ही मंडप में दो युवतियों से शादी की थी। शहरों में बीते कुछ वर्षों में चला लिव इन रिलेशनशिप कोटड़ा-झाड़ोल में सदियों पुराना है। आदिवासी युवा अकसर शादी नहीं करते। पसंद से साथ रहते हैं। कई बार तो इनकी शादियां बेटे या नाती-पोतों की मौजूदगी में होते हैं। कोटड़ा में बीते दो साल के दरमियान ऐसी तीन शादियां सामने भी आ चुकी हैं।
Published on:
09 Aug 2017 12:16 pm
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