
उज्जैन. शहर में अनूठा शिव मंदिर है, जहां दिव्यलिंग में शिव और शक्ति दोनों की एकसाथ पूजा की जाती है। किवदंती है, कंस का वध करने के बाद श्रीकृष्ण इस दिव्य शिवलिंग का पूजन कर अक्रूर हुए थे तो ब्रह्मा जी ने भी यहां यज्ञ-तपस्या से सिद्धि प्राप्त की। मराठाकाल में जीर्णोद्धार के बाद मंदिर का नाम अक्रूरेश्वर महादेव मंदिर हुआ।
यह मंदिर उज्जैन के अंकपाद मार्ग पर रामजनार्दन मंदिर के सामने स्थित है। पंडित नितेश मेहता ने बताया, मंदिर का इतिहास विक्रमादित्य के काल से रहा है। वर्तमान शिवलिंग छठी शताब्दी ईसा पूर्व का परमारकालीन है। पंडित मेहता ने बताया, स्कन्द पुराण के अनुसार, यहां ब्रह्मा जी ने यज्ञ-तपस्या से सिद्धि प्राप्त की। ब्रह्मा को महादेव ने कपाली स्वरूप में दो बार दर्शन दिए।
यहां ब्रह्मा जी ने मंदाकिनी कुंड अविष्कृत किया। बह्मा के कुशस्थली क्षेत्र की वजह से अवंतिका नगरी को कुशस्थली नाम से भी जाना जाता है। धर्मग्रंथों के अनुसार बलराम और कृष्ण ने क्रूर होकर कंस और केशी राक्षस का वध किया था। इसके बाद वे मथुरा से महाकाल वन आए और इस दिव्य शिवलिंग का पूजन कर अक्रूर (सौम्य स्वभाव) हुए।
शिव भृगिरीट से बोले-पार्वती की पूजा करो
पौ राणिक कथाओं के अनुसार एक बार माता पार्वती ने भृगिरीटि को पृथ्वी लोक में दंड भुगतने का श्राप दिया। भृगिरीटि पृथ्वी लोक पर श्राप भुगतने लगे तो भगवान शंकर ने भृगिरीटि से कहा- श्रापमुक्त होने के लिए तुम पार्वती जी से प्रार्थना करो। भृगिरीटि ने मां पार्वती की स्तुति की, जिसके फलस्वरूप माता ने प्रसन्न होकर कहा कि तुम महाकाल वन जाओ।
वहां अंकपाद क्षेत्र के आगे दिव्य शिवलिंग है, उसका पूजन अर्चन करो। उस शिवलिंग के दर्शन से तुम्हारी क्रूरता दूर होगी एवं बुद्धि निर्मल होगी। इससे तुम्हे पृथ्वी लोक से मुक्ति मिलेगी और पुन: कैलाश वास प्राप्त होगा। माता की बात सुन भृगिरीटि महाकाल वन पहुंचे और दिव्य शिवलिंग की आराधना की। इसके फलस्वरूप शिवलिंग में से अर्धनारीश्वर रूप में शिव पार्वती प्रकट हुए।
अक्रूरेश्वर के नाम से विख्यात हुआ दिव्यलिंग
अर्धनारीश्वर के रूप में दर्शन के बाद भृगिरीटि को पता चला कि शिव-पार्वती की सनातन देह एक है। इस तरह भृगिरीटि की बुद्धि निर्मल हुई और तब से यह दिव्य शिवलिंगअक्रूरेश्वर (अक्रूरेश्वर यानी बुद्धि को सौम्य करने वाले) कहलाया। भृगिरीटि ने वरदान मांगा की जिस शिवलिंग के दर्शन से उसकी सुबुद्धि हो गई। वह शिवलिंग अक्रूरेश्वर के नाम से विख्यात होगा। मान्यता है, जो मनुष्य शिवलिंग के दर्शन कर पूजन करेगा, उसे बुद्धि, सुख-समृद्धि और अंत में शिव लोक प्राप्त होता है।
पूजा का विशेष महत्व
कृष्ण पक्ष की अष्टमी, प्रदोष और मासिक शिवरात्रि पर पूजन का विशेष महत्व है। इनके लिए मौन व्रत रखने का विशेष महत्व है। यह एकमात्र स्थान है, जहां परमेश्वर और परमेश्वरी ने अर्धनारीश्वर स्वरूप में शिवलिंग में दर्शन दिए हैं।
अंकपात नहीं अंकपाद
वर्तमान में शहरवासी अंकपाद मार्ग को अंकपात के नाम से जानते है, जबकि सही शब्द अंकपाद है। पंडित मेहता ने बताया, जहां परमेश्वर श्रीकृष्ण के पदकमल अंकित हैं, इसलिए अंकपाद क्षेत्र कहते हैं। अंकपाद तीर्थ इसीलिए भी क्योंकि ऋषि सांदीपनी जी के पुत्र को यमराज से प्राप्त करने के लिए श्रीकृष्ण ने यमराज को पराजित कर इस क्षेत्र को
वरदान दिया था एवं तभी से यह स्थान अंकपाद तीर्थ है।
Published on:
26 Jul 2022 03:34 pm
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