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गणेशोत्सव : लंका से लौटते समय राम-लक्ष्मण और सीता ने की थी चिंतामण गणेश की स्थापना

लंका से लौटते समय भगवान राम, सीता एवं लक्ष्मण यहां रुके थे। यहीं पास में एक बावड़ी भी है जिसे लक्ष्मण बावड़ी के नाम से जाना जाता है।

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उज्जैन. जब भगवान श्रीराम ने सीता और लक्ष्मण के साथ अवंतिका खंड के महाकाल वन में प्रवेश किया था तब अपनी यात्रा की निर्विघ्नता के लिए शहर के विभिन्न स्थानों पर षट् विनायकों की स्थापना की थी। ऐसी मान्यता है कि लंका से लौटते समय भगवान राम, सीता एवं लक्ष्मण यहां रुके थे। यहीं पास में एक बावड़ी भी है जिसे लक्ष्मण बावड़ी के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि सीता माता को पानी की प्यास लगी, तब लक्ष्मण ने अपने बाण से यहां पानी निकाला था, वही स्थान आज बावड़ी के रूप में नजर आती है, यह करीब 80 फुट गहरी है।

चैत्र मास के हर बुधवार लगता है मेला
मंदिर के पुजारी शंकर गुरु और संतोष गुरु ने बताया कि गणेश चतुर्थी, तिल चतुर्थी और प्रत्येक बुधवार को यहां श्रद्धालुओं की काफी भीड़ रहती है। चैत्र मास के प्रत्येक बुधवार को यहां मेला भी भरता है। मनोकामना पूर्ण होने पर हजारों श्रद्धालु दूरदराज से पैदल चलकर मंदिर तक पहुंचते हैं। सीताराम पुजारी बताते हैं कि सिंदूर और वर्क से प्रात: गणेशजी का श्रृंगार किया जाता है, जबकि पर्व और उत्सव के दौरान दो बार भी लंबोदर गणेश का श्रृंगार किया जाता है।

बांधा जाता है मन्नत का धागा
पुजारी बताते हैं कि मनोकामना पूर्ण करने के लिए श्रद्धालु यहां मन्नत का धागा बांधते हैं और उल्टा स्वस्तिक भी बनाते हैं। मन्नत के लिए दूध, दही, चावल और नारियल में से किसी एक वस्तु को चढ़ाया जाता है और जब वह इच्छा पूर्ण हो जाती है तब उसी वस्तु का यहां दान किया जाता है।

सबसे प्रथम निमंत्रण, विवाह बाद जोड़े से पूजन
विवाह से पूर्व सबसे प्रथम भगवान गणेश को निमंत्रण पत्र दिया जाता है कि आप सपरिवार हमारे घर विवाह में पधारें और कार्य निर्विघ्न संपन्न कर वर-वधु को आशीर्वाद दें। विवाह संपन्न होने के बाद नवविवाहित जोड़ों के साथ यहां पूजन किया जाता है। इसके अलावा नए वाहन खरीदने वाले लोग भी यहां विशेष रूप से आशीर्वाद लेने आते हैं और गाडिय़ों की पूजन कराते हैं।

तीन प्रतिमाओं के होते हैं एकसाथ दर्शन
भगवान चिंतामण गणेश मंदिर में एक साथ तीन प्रतिमाओं के दर्शन होते हैं। सबसे पहली मूर्ति चिंतामण, दूसरी इच्छामन और तीसरी प्रतिमा मनछामन गणेश की है। गर्भगृह में आरती-पूजन करने वालों की लंबी कतारें लगती हैं। मंदिर परिसर के बाहर लड्डू, पेड़े, फूल-प्रसाद और दूर्वा बेचने वालों की दुकानें हैं। यह स्थान शहर से करीब 7 किलोमीटर दूर ग्राम जवासिया के समीप है।