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बकरी पालन में फायदे का धंधा कर, किसानों को अतिरिक्त मुनाफे से जोड़ रहा उज्जैन का केवीके

- अप्रेल 2017 में 12 बकरी से शुरू हुआ फार्म अब तक बेच चुका है 8.5 लाख रुपए का बकरी धन पत्रिका एक्सक्लूसिव

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Got farming in Krushi Vigyan Kendra Ujjain MP

Got farming in Krushi Vigyan Kendra Ujjain MP

अतुल पोरवाल

उज्जैन.
कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके)वैसे तो फसलों में होने वाली बीमारियों का पता लगाकर उनसे बचने का उपाय सुझाता है और अधिक उत्पादन का शोध कर किसानों को फायदा पहुंचाता है। लेकिन उज्जैन का केवीके इसके साथ ही किसानों को बकरी पालन में अव्वलता के साथ अतिरिक्त फायदे से भी जोड़ रहा है। पिछले ५ साल से एक नए शोध के साथ इससे होने वाले फायदे के बारे में चर्चित है। दरअसल उज्जैन केवीके ने अप्रेल २०१७ से बकरी पालन शुरू किया था, जिसमें राजस्थान की प्रसिद्ध सिरोही ब्रीड की बकरी है। यह क्वालिटी हमारे यहां के मौसम को सहन करने की क्षमता रखती है। अप्रेल २०१७ में १ लाख ७६ हजार रुपए में १२ बकरी व एक बकरे से शुरू हुआ केवीके का यह फार्म अब तक ८ लाख ५० हजार रुपए का नगद फायदा दे चुका है, जबकि अब भी केवीके के फार्म में करीब ६ लाख रुपए का बकरी धन सुरक्षित है।
केवीके उज्जैन के वरिष्ठ वैज्ञानिक आरपी शर्मा के अनुसार २०१७ में शुरू किए गए गोट फार्म के लिए सिरोही बकरी चयन केवल इसलिए किया गया क्योंकि यह राजस्थान की ब्रीड है, जो मप्र के वातावरण को सहन कर सकती है। शर्मा ने बताया कि बकरी में वैसे २० प्रतिशत मृत्युदर होती है, लेकिन इस प्रजाती की बकरी में ५ प्रतिशत से भी कम मृत्युदर है। यह बकरी दुग्ध उत्पादन में बहुत अच्छी क्वालिटी है। इस बकरी पालन के बढ़ते कारोबार से केवीके अब तक ८ लाख ५० हजार रुपए के बकरी धन का विक्रय कर चुका है, जबकि वर्तमान में उनके फार्म पर लगभग ६ लाख रुपए के २८ बकरी व बकरे मौजूद हैं। शर्मा के मुताबिक पहली प्राथमिकता में बकरी धन अन्य केवीके को विक्रय किया जाता है, जिसमें अब तक कृषि विज्ञान केंद्र शिवपुरी, ग्वालियर और कई अन्य संस्थानों को दिया गया है। इसके बाद बचा बकरी धन किसानों को पालन के लिए दिया जा रहा है, जिससे होने वाले फायदे की जानकारी के साथ इन्हें पालने का तरीका भी बता रहे हैं। मप्र के केवीके में सबसे पहले उज्जैन में बकरी पालन का स्टार्टअप शुरू हुआ था।

एक साल से बढ़ा दिया भाव
केवीके के वरिष्ठ वैज्ञानिक शर्मा के अनुसार पहले बकरा ५०० रुपए तथा बकरी ४५० रुपए प्रति किलो वजन के हिसाब से बेचे जाते थे, लेकिन पिछले एक साल से दाम में ५० रुपए की वृद्धि कर दी है। बकरी पालन के लिए विक्रय में एक और नियम यह है कि कम से कम २० किलो वजन का होने पर ही इसकी बिक्री होगी। अधिकतर डिमांड छोटे बच्चों को होती है, लेकिन कम वजन पर बेचने से फार्म घाटे में चला जाता है। शर्मा ने बताया कि कोई भी बकरी १५५ दिन में बच्चा दे देती है। इनमें ४० प्रतिशत बकरियां सिंगल तथा ६० प्रतिशत बकरियां दो बच्चों को जन्म देती है। गोट व्यापार में यही बड़ा फायदा है।


बेचते नहीं बच्चों को पिलाते हैं दूध
उज्जैन केवीके में बकरी के बच्चों को पौष्टिकता देने के लिए बकरियों का दूध बेचने की बजाय उनके बच्चों को ही पीलाते हैं। इससे बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बनी रहती है और वे जल्द ही हष्टपुष्ट हो जाते हैं। हालांकि कोविड काल में केवीके ने बकरियों का दूध बेचा था, लेकिन शर्मा का दावा है कि यह दूध कोविड ग्रसित मरीजों को निशुल्क उपलब्ध कराया था।