अवधेशपुरी महाराज ने टिकट की इच्छा जताई तो बाल योगी उमेशनाथ ने रखी समाज की मांग
उज्जैन. विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दल सक्रिय हैं, प्रशासन तैयारी में लगा है, आमजन अटकलें लगा रहे हैं वहीं शहर के साधु-संत व आचार्य भी इस विषय से दूर नहीं है। कोई राजनीति पर अपना मत रख रहे हैं तो कोई टिकट बंटवारे में समाज का पक्ष। कुछ ऐसे भी हैं, जिन्होंने सिस्टम को दिशा देने के लिए सिस्टम में आने की चाह जताई है, वे चुनाव लडऩे के लिए तैयार हैं। इसके पीछे तर्क है कि संतों ने शास्त्र से समाज को मार्गदर्शन किया अब राजनीति से पथप्रदर्शन करने की जरूरत है।
प्रदेश सहित जिले में भी विधानसभा चुनाव का माहौल गरमा गया है। प्रमुख राजनीतिक दलों के नेता टिकट के लिए दावेदारी कर दम लगा रहे हैं वहीं संगठन स्तर पर मंथन का दौर चल रहा है। इस बीच संत अवधेशपुरी महाराज ने भी उज्जैन दक्षिण से चुनाव लडऩे की चाह जताई है। वे भाजपा से चुनाव लडऩा चाहते हैं। इसके अलावा कुछ संत महात्मा सीधे तौर पर राजनीति से संबंध नहीं रखते, लेकिन राजनीति किस दिशा में हो और अवसर आने पर उनकी इसमें क्या भागीदारी रहे, इसको लेकर विचार जरूर रखते हैं। कुछ ऐसे भी संत हैं, जो चुनाव के लिए दावेदारी नहीं कर रहे लेकिन टिकट वितरण में अपनी बात जरूर रख रहे हैं। समाज में साधु-संतों की पेठ के चलते राजनीतिक दल भी प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से उनके सुझाव, मांग और प्रतिक्रिया को गंभीरता से ले रहे हैं।
इस विजन के साथ लडऩा चाहते चुनाव
- नए उद्योग स्थापित करवाने में अपनी ऊर्जा का उपयोग, ताकि रोजगार बढ़ें।
- शिक्षा स्थली के रूप में उज्जैन का विकास। इस क्षेत्र में शहर को नए कीर्तिमान दिलाना।
-पौराणिक व धार्मिक नगरी को पर्यटन का केंद्र बनाना। धार्मिक नगरी का दर्जा दिलाने का प्रयास।
- स्वास्थ्य क्षेत्र में विकास। धन्वंतरि कॉलेज है लेकिन स्टॉफ की कमी के कारण इसका पूरा लाभ नहीं मिल रहा है। इस दिशा में कार्य।
दक्षिण से लडऩा चाहते हैं चुनाव
संत अवधेशपुरी महाराज उज्जैन दक्षिण
विधानसभा से चुनाव लडऩा चाहते हैं। इस मंशा को लेकर डॉक्टरेट अवधेशपुरी का कहना है, पहले शास्त्र से देश चलता था, अब राजनीति से चलता है। साधु-संत ने प्रारंभ से मार्गदर्शक की भूमिका निभाई है, अब यदि राजनीति देश-समाज की दिशा तय कर रही है तो साधु-संतों को इस सिस्टम में भी रहना जरूरी हो गया है। जब देश में दागी नेता चुनाव लड़ सकते हैं तो फिर स्वच्छ छवि के साधु-महात्मा क्यों नहीं। चुनाव लडऩे की मंशा जताने के साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि वे भाजपा के टिकट पर ही चुनावी मैदान में उतरेंगे, निर्दलीय चुनाव नहीं लड़ेंगे। अपनी उपलब्धियों में वे उच्च शिक्षा के साथ, सिंहस्थ के कार्यों में भागीदारी, स्थानीय मठ-मंदिरों के विकास के लिए सरकार से चर्चा में सक्रियता, विश्वविद्यालय में डिग्री के लिए गाउन पहनने का प्रतिरोध आदि का उल्लेख करते हैं।
समाज का प्रतिनिधित्व मांगा
बालयोगी उमेशनाथ महाराज राजनीति से सीधे तौर पर जुड़े हुए नहीं हैं लेकिन दोनों ही प्रमुख दलों के नेता समय-समय पर उनसे मार्गदर्शन जरूर लेते हैं। चुनावी माहौल और टिकट वितरण के दौर के बीच उमशेनाथ महाराज का कहना है, प्रदेश में अनुसूचित जाति की 35 सीट हैं। उक्त सीटों पर वाल्मीकि समाज को प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है। इस चुनाव में समाज का भी प्रतिनिधित्व होना चाहिए। इसके लिए सर्वे कर अच्छे कार्यकर्ता को टिकट दिया जाए। कुछ दिन पूर्व भोपाल में हुए वाल्मीकि महाकुंभ उमेशनाथ महाराज मुख्यमंत्री के सामने भी यह बात रख चुके हैं।
राजनीति शोधन के लिए संत जरूर आए
हिंदुत्व के लिए प्रखर महामंडलेश्वर अतुलेशानंद सरस्वती महाराज का कहना है, वे राजनीति नहीं करना चाहते और नहीं यह उनका विषय है। उनका विषय हिंदुत्व है। राजनीति में कैसे लोग हो, इसको लेकर उनके मत स्पष्ट हैं। वे कहते हैं, हिंदुवारी विचारधारा के व्यक्ति को ही राजनीति में आना चाहिए क्योंकि जिन लोगों को हम देशनीति के लिए राजनीति के तहत भेजते हैं वे भ्रष्टनीति में शामिल हो जाते हैं। हिंदु समाज के लिए कोई कार्य नहीं करता। संत देशनीति के लिए कार्य करते हैं। राजनीति शोधन के लिए यदि कोई संत राजनीति में आना चाहे और देश की सेवा करना चाहे तो उनको जरूर आगे आना चाहिए। विश्वामित्र रावण को मार सकते थे, लेकिन रामजी को इसका श्रेय मिले इसलिए उन्होंने अपने अस्त्र व सूत्र उन्हें बता दिए। चुनाव लडऩे का अवसर मिलने के सवाल पर उनका कहना है, मैं नहीं लडूंगा लेकिन ऐसे अनुयायी के नाम दूंगा जो राष्ट्र और देशनीति को लेकर चले और हिंदुत्व की समरसता का भाव रखे।