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मैं नेपाल का नहीं हूं,वहां के लोगों ने प्रेमवश मेरा नाम रख दिया…नेपाली बाबा

सदैव फलाहारी और सादे वस्त्र धारण करने वाले तपस्वी आत्मानंद दास जी ने पत्रिका से की विशेष बातचीत

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I am not from Nepal, the people there lovingly named me...Nepali Baba

सदैव फलाहारी और सादे वस्त्र धारण करने वाले तपस्वी आत्मानंद दास जी ने पत्रिका से की विशेष बातचीत

उज्जैन. करीब 45 साल से फलाहार ग्रहण करने और सादे वस्त्र पहनने वाले महान तपस्वी संत आत्मानंद दास जी महाराज यानी नेपाली बाबा ने शनिवार को अंकपात मार्ग स्थित खाकी अखाड़े में पत्रिका से विशेष बातचीत की। उन्होंने कहा कि मैं नेपाल का नहीं हूं, लेकिन वहां के लोगों ने प्रेमवश मेरा नाम रख दिया, तो मेरा नाम नेपाली बाबा हो गया। तन पर लंगोटी और सादा वस्त्र ओढ़े हुए छोटे से तखत पर बैठे नेपाली बाबा से चर्चा के कुछ अंश।
प्रश्न : वर्तमान में देश में ङ्क्षहसा बहुत बढ़ रही है, बच्चों का शोषण हो रहा है, क्या वजह है।
उत्तर : देव और दानव सदियों से इस धरती पर हैं। एक किस्सा सुनाते हुए कहा कि राजा परीक्षित ने एक बार देखा कि एक काला सा आदमी एक पैर वाले बैल को लाठियों से मार रहा है। वह बैल भय से कांप रहा है। एक दुबली गाय है उसे भी वह मार रहा है। परीक्षित ने पूछा तुम कौन हो, इसे क्यों मार रहे हो। ऐसा क्यों हो रहा है। तो बैल धर्म था, गाय धरती थी और काला पुरुष कलयुग था। वही क्रम आज तक चला आ रहा है। इसमें नया कुछ नहीं।
प्रश्न 3 आपका नाम नेपाली बाबा कैसे पड़ा।
उत्तर- हम नेपाल के नहीं हैं, हम तो अयोध्या वासी हैं। नेपाल और भारत का संबंध बेटी-रोटी का संबंध है। संस्कृति एक है। वहां कोई वीजा की जरूरत नहीं होती, आ-जा सकते हैं। जहां भगवान श्रीराम ने धनुष तोड़ा था, उसे धनुषाधाम कहा जाता है। यह स्थान जनकपुर से 16 किमी दूरी पर है। वहां हमने भी आश्रम बनाया है, जब हम अन्य स्थान के लिए रवाना होने लगे, तो वहां के लोगों ने रोका और कहा कि आप नेपाल को भी अपने साथ ले जाओ, यानी इसका नाम आप अपना लो।
प्रश्न : ङ्क्षसहस्थ को लेकर क्या योजना है।
उत्तर : ङ्क्षसहस्थ का आयोजन इस बार अच्छे करना चाहिए, क्योंकि लाखों नहीं, इस बार करोड़ों लोग आएंगे। शहर का विस्तार होना चाहिए। मंगलनाथ क्षेत्र में ङ्क्षसहस्थ 2016 में विशाल शिविर लगाया। सच्चे संत के लिए मठ और आश्रम जरूरी नहीं, उसे तो केवल झोपड़ी ही चाहिए। साधु के चरित्र और धूम्रपान को लेकर नेपाली बाबा बेबाक नजर आ आए। उन्होंने कहा कि साधु का कोई संप्रदाय, जात-पात आदि नहीं होती। संप्रदाय से ही सारी समस्याएं हैं।
प्रश्न: महाकाल मंदिर में हर जगह टिकट लगा दिया, क्या यह सही है?
उत्तर: पहले जो मंदिर था, वह आज बदल गया है। स्वरूप बदल गया है। काफी सुविधाएं जुटाई गई हैं। युगों युगों में बदलाव होता रहा है, यदि व्यवस्था बना रहे हैं, तो टिकट ले रहे हैं। इसमें मेरे हिसाब से कुछ गलत नहीं है।
दो दिन रुकने के बाद आज रवाना होंगे बाबा
दो दिन उज्जैन रुकने के बाद नेपाली बाबा शनिवार सुबह 8 बजे अयोध्या के लिए रवाना होंगे। जानकारी देते हुए नेपाली बाबा के शिष्य हरी ङ्क्षसह यादव और रवि राय ने बताया कि परम त्यागी नेपाली बाबा वर्ष में एक बार गुरु पूर्णिमा के बाद धार्मिक नगरी उज्जैन जरूर आते हैं। इस बार वे अधिकमास के उपलक्ष्य में 3 अगस्त को उज्जैन आए। अंकपात रोड स्थित खाकी अखाड़े में अनुयायियों को आशीर्वाद दिए।