गणेश चतुर्थी के महापर्व के पहले उज्जैन में अजब घटना घटी। यहां षड्विनायकों में प्रथम प्रतिमा ने चोला छोड़ दिया। करीब एक सदी के बाद गणेशजी ने चोला छोड़ा है जिसे लोग चमत्कार बता रहे हैं। जिस किसी ने भी यह बात सुनी, वह मंदिर की ओर दौड़ आया। यहां गणेश भक्तों की भीड़ लग गई।
गणेश चतुर्थी के महापर्व के पहले उज्जैन में अजब घटना घटी। यहां षड्विनायकों में प्रथम प्रतिमा ने चोला छोड़ दिया। करीब एक सदी के बाद गणेशजी ने चोला छोड़ा है जिसे लोग चमत्कार बता रहे हैं। जिस किसी ने भी यह बात सुनी, वह मंदिर की ओर दौड़ आया। यहां गणेश भक्तों की भीड़ लग गई।
गणेशोत्सव के पहले धार्मिक नगरी उज्जैन में अद्भुत संयोग हुआ जब शहर के विभिन्न स्थानों पर विराजित षड्विनायकों में प्रथम प्रतिमा ने सोमवार को चोला छोड़ दिया। महाकाल के कोटितीर्थ कुंड के समीप स्थित यह प्रतिमा लक्ष्मी प्रदाता मोद गणेश के नाम से जानी जाती है।
लक्ष्मी प्रदाता मोद गणेश मंदिर के पुजारी पंडित केशव व्यास हैं। पंडित आनंदशंकर व्यास के पौत्र अक्षत व्यास ने बताया कि यह अतिप्राचीन प्रतिमा है। इनका अवंतिका खंड में भी उल्लेख मिलता है।
अवंतिका खंड में उल्लेख किया गया है कि माता सीता ने वनवास के दौरान महाकाल वन क्षेत्र में षड्विनायकों की स्थापना की थी। यह प्रतिमा उन्हीं में से एक है। इसकी विशेषता यह है कि यहां एक ही स्तंभ में भगवान गणपति, रिद्धि-सिद्धि के साथ विद्यमान हैं। पंडित व्यास ने बताया कि प्रतिमा ने सोमवार को चोला छोड़ा है। गणेशजी ने करीब 100 साल बाद चोला छोड़ा है।
गणेश चतुर्थी पर सुबह से ही शहर में इस घटना की चर्चा हो रही है। बता दें कि महाकाल के साथ ही उज्जैन में षड्विनायकों की भी पूजा अर्चना की महत्ता है। षड्विनायकों में प्रथम प्रतिमा के करीब एक सदी के बाद चोला छोड़ने के बाद परंपरा अनुसार पूजा अर्चना की जाएगी। गौरतलब है कि कुछ पंचागों में सोमवार को भी गणेश चतुर्थी बताई गई थी।