
काशी विश्वनाथ जैसा महाकाल लोक, दर्शन करने यहीं से जाएंगे श्रद्धालु
उज्जैन . वैसे तो बाबा महाकाल की महिमा निराली है, देशभर से श्रद्धालु उनके दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं, यही कारण है कि महाकालेश्वर मंदिर में हर दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं की लाइन लगती है, बाबा महाकाल के इस वैभव में और भी बढ़ोतरी हो जाएगी, क्योंकि 11 अक्टूबर से महाकाल मंदिर के समीप तैयार हुआ महाकाल लोक भी आमजन के लिए खुल जाएगा, काशी विश्वनाथ के बाद उज्जैन में महाकाल लोक की भव्यता खुद श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करेगी।
आपको बतादें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 11 अक्टूबर को उज्जैन में नव निर्मित महाकाल लोक का लोकार्पण करेंगे। महाकाल के प्रति देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी लोगों की आस्था जुड़ी है। यहां बाबा महाकाल के दर्शन करने देश विदेश से श्रद्धालु आते हैं। अब महाकाल लोक के कारण यहां का वैभव और भी बढ़ जाएगा, यहां दर्शन करने के साथ श्रद्धालु महाकाल लोक की भव्यता देख उसके वैभव में रमते नजर आएंगे।
डॉ दुर्गेश केसवानी ने बताया कि मूर्तिकला के द्वारा हमारे पौराणिक धर्म को जीवंत करने का प्रयास किया गया है। 12 ज्योर्तिलिंगों को एक एक कर प्रधानमंत्री मोदी उनका खोया हुआ वैभव लौटा रहे हैं। इन मंदिरों को भूल चुकी युवा पीढ़ी इनको जान रही है। राम मंदिर सहित 4 अन्य ज्योर्तिलिंगों का स्वरूप बदलते हुए देखा है। जिन जगहों पर आक्रांताओं ने मंदिरों को जमींदोज कर दिया था। उन्हें फिर से स्थापित किया जा रहा है।
अब आसान हो रहा तीर्थों तक पहुंचना
पहले जिन धार्मिक स्थलों और तीर्थों तक आवाजाही करने में श्रद्धालुओं को काफी परेशानी होती थी, वहां सड़क मार्ग से लेकर अन्य सुविधाएं करने के कारण अब दिक्कतें काफी कम हो गई है।
जानिये महाकाल मंदिर का इतिहास
डॉ केसवानी ने बताया कि 1234-35 में सुल्तान इल्तुतमिश ने महाकालेश्वर मंदिर को ध्वस्त कर मूल शिवलिंग को नष्ट करने का प्रयास किया, तीन सौ साल तक शिवलिंग कुंड में पड़ा रहा। लेकिन इसके बाद भी सदियों तक इसका धार्मिक महत्व बना रहा। इसके बाद सिंधिया काल में मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ। लेकिन इस मंदिर के खोए हुए गौरव को लौटाने का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जाता है, जिन्होंने 920 मीटर लंबे नवीन कॉरिडोर की योजना के लिए मंजूरी दी। महाकाल लोक को इस तरह बनाया गया है कि मंदिर तक जाने से पहले लोगों को लगेगा कि वे वास्तव में महाकाल लोक में उतर आए हैं और भगवान शिव के विभिन्न रूपों के साथ, सप्तऋषि, भगवान शिव के सभी अवतारों और शिव से जुड़ी कथाओं का प्रतिमाओं के द्वारा सजीव चित्रण देखते हुए मंदिर तक पहुंचेंगे।
500 साल पहले तोड़ दिया था राम मंदिर
बाबर द्वारा लगभग 500 वर्ष पूर्व राम मंदिर को तोड़ दिया गया था। इसके बाद से ही मंदिर स्थल पर सदियों से सनातन धर्म के अनुयायी मंदिर होने का दावा करते आ रहे थे। लगभग 70 साल पहले मामला कोर्ट में गया और 7 दशकों की कानूनी लड़ाई के बाद 9 नवंबर 2019 को रामजन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया। रामलला से जुड़ी लोगों की आस्था का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि लगभग 500 सालों तक आसपास के 105 गांवों के सूर्यवंशी क्षत्रिय न तो पैरों में जूते पहनते थे और न ही सिर पर पगड़ी धारण करते थे। प्रधानमंत्री मोदी ने राम मंदिर निर्माण के साथ ही इनमें से हर एक सूर्यवंशी को उसका खोया हुआ सम्मान लौटाया है। अगस्त 2020 में पीएम ने मंदिर की नींव रखी।
2019 में काशी विश्वनाथ कोरिडोर शुरू
काशी के विश्वनाथ सारी दुनिया में अपनी भव्यता के लिए प्रसिद्ध हैं। वहीं मंदिर के चारों ओर स्थित गलियां इस पूरे वैभव को कमजोर कर देती थीं। काशी से सांसद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसके मूल स्वरूप को सुधारने पर खास काम करना शुरू किया। 8 मार्च 2019 को उन्होंने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर परियोजना की शुरुआत की। शुरुआत में इस परियोजना को असंभव माना जा रहा था। इस प्रोजेक्ट के तहत मौजूदा संरचनाओं को संरक्षित कर मंदिर परिसर में नई सुविधाएं दी जाना थीं। मंदिर तक आवागतन सुलभ करना और मंदिर से घाट सीधा दिखे। इसकी व्यवस्था की जाना थी। प्रधानमंत्री मोदी मां गंगा और बाबा विश्वनाथ के बीच सीधा संबंध जोडऩा चाहते थे। असंभव दिखने वाला यह प्रोजेक्ट पूरा हुआ खास बात यह है कि पूरे प्रोजेक्ट में प्राचीन 40 अन्य मंदिर भी हमारे सामने आए।
12 ज्योर्तिलिंगों में एक है सोमनाथ मंदिर
सोमनाथ 12 ज्योर्तिलिंगों में एक ऐसा ज्योर्तिलिंग है, जिसे दुर्दांत आक्रांताओं ने बार बार तोड़ा और यह फिर से जीवंत हो गया। माना जाता है कि 12 ज्योर्तिलिंगों में सर्वप्रथम बाबा सोमनाथ के मंदिर का निर्माण सबसे पहले स्वयं चंद्रदेव ने किया था। सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह स्थित इस मंदिर का उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है। भगवान श्रीकृष्ण ने यहीं अपनी देह त्याग की थी। इस कारण यह मंदिर हर सनातनी के लिए सर्वप्रथम है। मंदिर के ईसा पूर्व भी होने के कई पौराणिक दस्तावेज मौजूद हैं। मंदिर का दूसरी बार निर्माण 649 ईस्वी में वैल्लभी के मैत्रिक राजाओं ने किया। 725 ईस्वी में इसे मुस्लिम सूबेदार अल जुनैद ने तुड़वा दिया। 815 में राजा नागभट्ट ने इसका तीसरी बार निर्माण कराया था। 1024 और 1026 में अफगानिस्तान के महमूद गजनवी ने दो बार मंदिर को तहस नहस कर लूट लिया। इस दौरान गजनवी ने हजारों निहत्थे लोगों को बर्बरता पूर्वक मार दिया। 1297 में नुसरत खां ने मंदिर को दुबारा तो? दिया। 1395 में मुज्जफरशाह और 1412 में उसके पुत्र अहमदशाह ने इसे तुड़वा दिया। बाद में 1665 और 1706 में इसे औरंगजेब के कार्यकाल में दो बार तोड़ा गया। 1783 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने मूल मंदिर से कुछ दूरी पर एक अन्य शिव मंदिर का निर्माण कराया। 1950 में पूर्व गृहमंत्री सरदार वल्लभ पटेल ने संकल्प लेकर मंदिर का निर्माण कराया। इस मंदिर को कैलाश महामेरू शैली में बनाया गया। वर्तमान मंदिर के निर्माण का श्रेय सरदार वल्लभ पटेल को जाता है। 1995 में इसे राष्ट्र को समर्पित किया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मंदिर के वैभव को और बढ़ाने के लिए कई परियोजनाएं शुरू कीं। प्रधानमंत्री ने एक प्रदर्शनी केंद्र और समुद्र तट पर सैरगाह का निर्माण किया।
केदारनाथ धाम
2013 की बाढ़ के बाद मंदिर परिसर को दोबारा से तैयार किया गया और मंदिर को पूरी तरह से बदल दिया गया। पीएम मोदी ने कहा कि केदारनाथ का पुन: विकास उन्हें व्यक्तिगत रूप से प्रिय है और वे यह बात 2013 और 2017 के अपने भाषण में कह भी चुके हैं।
इसके अलावा सरकार ने केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री तीर्थों को जोडऩे के लिए चारधाम परियोजना की शुरुआत की है। सड़क परियोजना के साथ ही रेल लाइन का काम भी तेज गति से चल रहा है। वहीं कश्मीर में भी ध्वस्त हो चुके प्रमुख हिंदू मंदिरों को बनाने का काम तेजी से चल रहा है। 952 हिंदू मंदिरों में से 212 चल रहे हैं, जबकि 740 जर्जर अवस्था में हैं। इनमें से कई धार्मिक स्थलों के नवीनीकरण का काम फिर से शुरु हो गया है।
Updated on:
09 Oct 2022 09:12 am
Published on:
09 Oct 2022 09:03 am
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