
MP News Online Shradh Tarpan: पत्रिका (फोटो: सोशल मीडिया)
MP News Online Shradh Tarpan: कोरोना काल में शुरू हुए ऑनलाइन श्राद्ध को लेकर नई बहस छिड़ गई है। कुछ पंडित पक्षधर हैं तो बड़ी संख्या में पंडितों का कहना है, ऑनलाइन कर्मकांड से पितरों को मुक्ति नहीं मिलती। पितृ पक्ष में मोक्षदायिनी नगरी उज्जैन, काशी, गयाजी आदि के तटों पर पहुंचकर श्राद्ध पद्धति की महत्व है। धर्म ग्रंथों में उल्लेख है कि पितरों की आत्मशांति और मुक्ति के लिए श्राद्ध कर्मकांड का संपादन तीर्थों पर ही शास्त्रसम्मत और फलदायी माना जाता है। ऑनलाइन श्राद्ध से धर्म की मूल भावना नहीं आ पाती, यह विधि के विपरीत बताया है।
एमपी की धार्मिक नगरी उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. अमर डब्बावाला के अनुसार सनातनी कर्मकांड पद्धति में हर क्रिया का महत्व और विधान है। पितरों को देवताओं से पहले स्थान दिया गया है। उन्हीं के आशीर्वाद से कुल की वृद्धि और वंश का कल्याण संभव है।
शास्त्रों के अनुसार तीर्थ स्थलों पर श्राद्ध का अक्षय पुण्य मिलता है। वहां की भूमि में विशेष ऊर्जा और सात्विकता होती है, जो पितरों की आत्मा को सरलता से तृप्त करती है। उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित सिद्धवट और गयाकोठा जैसे स्थानों पर श्राद्ध करने की परंपरा है।
पुरोहितों के अनुसार, श्राद्ध कर्म में कर्ता का प्रत्यक्ष रूप से शामिल होना जरूरी है। संकल्प, गोत्रोच्चार और अंजलि से जल-तिल का अर्पण होता हैं। यह क्रियाएं कर्ता की देह, भावना से सीधे जुड़ी होती हैं। ऑनलाइन श्राद्ध में भौतिक और भावनात्मक जुड़ाव का पूर्ण अभाव होता है।
जबलपुर. शहर से दूर या विदेश में रह रहे लोगों के लिए पंडे-पुजारी ऑनलाइन श्राद्ध और पितृकर्म करवा रहे हैं। गौरीघाट के पुजारी अभिषेक मिश्रा के अनुसार यह सब लैपटॉप या मोबाइल पर वीसी से होता है। मुंबई, असम, दिल्ली, कोलकाता के अलावा नेपाल, यूके, अमरीका में बैठे लोग भी तर्पण (Online Tarpan) करा रहे हैं।
ऑनलाइन श्राद्ध (Online Shradh) जैसी आधुनिक प्रथाएं सनातन की मूल गति, सिद्धांतों को प्रभावित कर रही हैं। कर्मकांडों के व्यवसायीकरण को बढ़ावा देती हैं युवाओं को धर्म के मर्म से दूर करती हैं।
-पं. आनंदशंकर व्यास, ज्योतिर्विद
Published on:
09 Sept 2025 10:05 am
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