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पांच न्यायालयों के आदेश, फिर भी नहीं मिल पाया कब्जा

- वर्ष 2012 में तहसील, 2015 में सिविल, 2017 में जिला, 2019 में एसडीएम व हाईकोर्ट ने दिए आदेश

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Orders of five courts, still could not get possession

- वर्ष 2012 में तहसील, 2015 में सिविल, 2017 में जिला, 2019 में एसडीएम व हाईकोर्ट ने दिए आदेश

नागदा. न्यायालय के आदेश की अवहेलना सरकार के नुमाइंदे किस तरह कर रहें हैं, इसका उदाहरण जमीन व रास्ते कब्जे का यह प्रकरण हैं। नगर के एक सीनियर सिटीजन पांच कोर्ट से अपनी कब्जे की जमीन व रास्ते का केस जीत चुकें हैं। इसके बावजूद प्रशासन पीडि़त को कब्जा दिलाने में नाकाम साबित हो रहा हैं। करीब 19 दिन पहले नायब तहसीलदार कोर्ट ने कब्जेदार को कब्जा छोडऩे का सूचना पत्र जारी कर जेल भेजने की चेतावनी दी गई हैं। मगर प्रशासनिक नुमाइंदों की बेपरवाही की वजह से कब्जेदार के हौंसले इतने बुलंद हैं कि वह मंगलवार शाम तक पीडि़त की जमीन पर पशु चराते नजर आ रहे थे। मामला उजागर होने के बाद अब गिरदावर, पटवारी से लेकर अपर तहसीलदार गोलमाल जवाब देकर खुद को बचाने में लगे हैं।
मामला एक नजर में
मामला खाचरौद के गांव बड़ागांव का हैं। प्रभुलाल पिता भेराजी दयानंद कॉलोनी में रहते हैं। सालों पहले हुए ग्राम बड़ागांव में स्थित पुश्तैनी जमीन के बंटवारे में उनके हिस्से में लगभग 11 बीघा जमीन आई थी। जिसमें से करीब तीन बीघा जमीन पर वर्ष 2011 से पूना पिता भेरा, शंकर पिता नरसिंह, बद्रीलाल पिता बालमुकुंद कब्जा करके बैठे हैं। जमीन के इस प्रकरण में सबसे पहले तहसीलदार कोर्ट ने प्रभुलाल के पक्ष में फैसला भी सुना दिया था। फिर भी कब्जा नहीं छोड़ा गया। फिर सिविल कोर्ट में वाद लगाया गया। सिविल कोर्ट ने भी प्रभुलाल के पक्ष में ही फैसला सुनाया। सिविल कोर्ट के फैसले के विरुद्ध कब्जेदारों ने एसडीएम कोर्ट, जिला न्यायालय, हाईकोर्ट तक में अपील की। जिसे भी कोर्ट ने खारिज करते हुए प्रभुलाल को जमीन का मालिक माना।
प्रकरण में कब क्या हुआ
- 24 नवंबर 2012 को तहसीलदार कोर्ट ने जमीन का कब्जा देने के आदेश दिए थे, लेकिन फिर कब्जा कर लिया गया।
- 25 जनवरी 2015 को सिविल कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए प्रभुलाल को जमीन का कब्जा देने के आदेश दिए थे।
- सिविल कोर्ट के फैसले के विरुद्ध कब्जेदार ने जिला कोर्ट में अपील की थी। जिस पर 22 अक्टूबर 2017 में इस जमीन को प्रभुलाल की ही मानते हुए अपील खारिज कर दी थी।
- वर्ष 2019 में एसडीएम कोर्ट में अपील की गई थी। एसडीएम कोर्ट ने 2 फरवरी 2018 को प्रतिवेदन मांगवाया था। फिर 1 जून 2019 को आदेश देते हुए तीनों को 15 दिन की जेल भेजने के आदेश दिए थे, जिसका पालन नहीं हुआ।
- वर्ष 2019 में ही कब्जेदार ने हाईकोर्ट में अपील की। इस अपील को भी हाईकोर्ट ने खारिज करते हुए 3 जुलाई 2019 को प्रभुलाल के पक्ष में फैसला सुनाया था।
एक को जेल हुई, दूसरी बार फिर नोटिस जारी, लेकिन कार्रवाई नहीं
कोर्ट के आदेश के बावजूद कब्जेदार पुना, शंकर, बद्रीलाल जमीन तो राजाराम रास्ते से कब्जा नहीं छोड़ रहें हैं। फरवरी 2015 में सिविल कोर्ट के आदेश पर बद्रीलाल को एक महीने की जेल भी हो चुकी हैं। फिर वर्ष 2019 में एसडीएम कोर्ट ने सभी कब्जेदारों को 15 दिन की जेल भेजने के आदेश दिए थे। इस आदेश का पालन हुआ ही नहीं। इसके बाद दोबारा अपर तहसीलदार कोर्ट ने गत 28 अक्टूबर को कब्जेदार पुना, शंकर, बद्रीलाल व रास्ते पर कब्जा करने वाले राजाराम को भी सूचना पत्र जारी कर जेल भेजने की चेतावनी जारी की गई हैं, लेकिन इस पर भी कार्रवाई नहीं की गई। इस मामले में पीडि़त प्रभुलाल ने गिरदावर रघुनाथ मचार, पटवारी धर्मेंद्र पंवार पर भी सांठगांठ का आरोप लगाया हैं। प्रभुलाल का कहना है कि प्रशासन ने उन्हें मौके पर ले जाकर कब्जा दिलाते हुए फोटो-वीडियो ले लिए, लेकिन हकीकत में अब भी वे कब्जे से वंचित हैं।
इनका कहना
पीडि़त को हम कब्जा दिला चुके हैं। चूंकि पीडि़त नागदा में रहते हैं, यह उन्हें ध्यान रखना चाहिए कि उनकी जमीन पर दोबारा कब्जा नहीं हो।
- धर्मेंद्र पंवार, पटवारी, बड़ागांव हल्का
हमने पीडि़त को उसका कब्जा दे दिया हैं। यह भाईयों के आपस का विवाद हैं।
रघुनाथ मचार, आरआई
इस बारे मेें मैं आपसे बुधवार को चर्चा कर पाऊंगी।
मृदुला सचवानी, अपर तहसीलदार, खाचरौद