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पढ़ें खास खबर…क्या है नव-संवत, कैसे होता है नामकरण

मध्यप्रदेश की इस नगरी से सृष्टि के उदय का अहम जुड़ाव

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उज्जैन. विक्रम संवत कालगणना के तौर पर विश्व में उज्जैन की पहचान है। इसे सबसे प्राचीन कालगणना माना गया है, इसी दिन सृष्टि का उदय हुआ। सृष्टि को अब तक 1 अरब 95 करोड़ 58 लाख, 85 हजार 125 वर्ष हो गए है। उज्जैन से समय की उत्तपत्ति हुई और ज्योर्तिलिंग महाकालेश्वर का प्रार्दूभाव हुआ। नए वर्ष से ही प्रकृति में परिवर्तन होता है और पर्व-त्योहार शुरू हो जाते हैं। ऐसे में विक्रम संवत रूपी नया वर्ष पूरे देश और विश्व में भी मान्यता रखता है। विक्रम संवत 2079, 2 अप्रेल से शुरू होने वाला है। संवत घोषित करने के लिए कई नियमो का पालन करना होता है, इसमे जनता पर कर्ज ना हो, राज्य धन धान्य से परिपूर्ण हो इत्यादि। वैसे राजा विक्रमादित्य द्वारा शको को हराने के बाद इस संवत की घोषणा माना जाता है। एक वजह यह भी कि उज्जैन कालगणना का केंद्र भी है।

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राजा विक्रमादित्य के नाम पर विक्रम संवत
विक्रम शोध संस्थान उज्जैन के डायरेक्टर डॉ. श्रीराम तिवारी ने बताया, विक्रम संवत का नाम राजा विक्रमादित्य के नाम पर है। माना जाता है कि सम्राट विक्रमादित्य ने ईसा पूर्व 57 में इसका प्रचलन शुरू किया था। सम्राट विक्रमादित्य ने शकों के अत्याचार से मुक्त कराया था। उसी विजय की स्मृति में चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से विक्रम संवत का आरंभ हुआ। विक्रम संवत को देश के साथ नेपाल में भी माना जाता है। भारत के शासकीय कैलेंडरों में भी विक्रम संवत को मान्यता दी गई है। डॉ. तिवारी ने बताया कि विक्रम संवत 2078 को गुड़ी पड़वा के दिन से 2079 वर्ष हो जाएंगे।

उज्जैन की विश्व को अनुपम देन
ज्योतिषाचार्य पं. आनंदशंकर व्यास बताते हैं कि चैत्र शुक्ल का दिन श्रृष्टि के आरंभ और विक्रम संवत शुरू होने का दिन है, विक्रम संवत विश्व को कालगणना की देन है। उज्जैन कालगणना का केंद्र है और यहीं से इसकी उत्पत्ति हुई है। इस दिन से मौसम में परिवर्तन होता है और प्रकृति नया रूप लेती है। विक्रम संवत ईस्वी से 57 वर्ष आगे है। यानी जब ईस्वी सहित अन्य कालगणना नहीं थी उससे पहले विक्रम संवत प्रचलित था। इसी से तारीख का निर्धारण होता है। इस वर्ष विक्रम संवत में शनि राजा और गुरु मंत्री होंगे। यानी जिस दिन नव संवत आरंभ होता है उस दिन के वार के अनुसार राजा का निर्धारण होता है।

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ये है विक्रम संवत में खास
विक्रम संवत में एक वर्ष और सात दिन का सप्ताह है, विक्रम संवत में महिने का निर्धारण सूर्य व चंद्रमा की गति के आधार पर होता है। 12 राशियां बारह सौर मास है। उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है। विक्रम संवत का इस वर्ष नाम राक्षस संवत्सर ओर नल संवत्सर दो नाम दिए जा रहे है। सही नामराक्षस संवत्सर है। बनारस के विद्वानों ने भी यही नाम घोषित किया है। विक्रम संवत को राजा विक्रमादित्य ने घोषित किया था। उज्जैन कालगणना का केन्द्र है, इसलिए जयपुर के राजा जयसिंह ने वेधशाला का निर्माण भी उज्जैन मेंं कराया था।