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बड़ा है निराला, भोलेनाथ डमरू वाला…ऐसे किया जाता है भगवान महाकाल का भांग शृंगार, देखें वीडियो

भगवान महाकाल दिनभर में कई रूप बदलते हैं। उनका हर रूप निराला होता है। भक्त भी इन निराले स्वरूपों के दर्शन पाकर खुद को धन्य महसूस करते हैं।

उज्जैनApr 30, 2019 / 09:37 pm

Lalit Saxena

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उज्जैन. भगवान महाकाल दिनभर में कई रूप बदलते हैं। उनका हर रूप निराला होता है। भक्त भी इन निराले स्वरूपों के दर्शन पाकर खुद को धन्य महसूस करते हैं। संध्या कालीन आरती के पहले पुजारी भारत गुरु द्वारा किए जा रहे इस अद्भुत शृंगार में करीब पांच किलो भांग, काजू, बादाम और कई तरह के सुगंधित द्रव्य पदार्थों व ड्रायफ्रूट्स का उपयोग प्रतिदिन किया जाता है। आप भी करें इस अनूठे भांग शृंगार के लाइव वीडियो में भगवान महाकाल के दर्शन।

दिनभर चलता है दूध-जल अर्पण का सिलसिला
राजाधिराज महाकाल का प्रतिदिन निराला शृंगार किया जाता है। स्नान, पूजा, शृंगार और जल-दूध अर्पण करने का सिलसिला सुबह से लेकर शाम तक चलता रहता है। शाम 5 बजे के बाद बाबा को जल-दूध चढऩा बंद हो जाता है। क्योंकि इसके बाद संध्या आरती के पहले भांग और ड्रायफ्रूट्स का शृंगार होता है। यह शृंगार शयन आरती तक रहता है।

दर्शन करना बड़े सौभाग्य की बात
भगवान महाकाल की प्रतिदिन सुबह 4 बजे भस्म आरती होती है। इस विशेष आरती में भस्म के अलावा शृंगार भी किया जाता है। इस आरती का दर्शन करना बड़े सौभाग्य की बात होती है। पुजारी प्रदीप गुरु का कहना है, इस एक आरती में जीवन से लेकर मरण तक का दृश्य साकार होता है। बाबा महाकाल निराकार से साकार और फिर साकार से निराकार रूप में भक्तों को दर्शन देते हैं।

भोग आरती का प्रसाद नहीं खाते पंडे-पुजारी
प्रतिदिन सुबह 10.30 बजे भोग आरती होती है। बाबा महाकाल को हर दिन नैवेद्य अपज़्ण किया जाता है। इसके लिए मंदिर में ही एक कक्ष बना हुआ है, जहां साफ-स्वच्छ वातावरण में शुद्ध भोग तैयार किया जाता है। भोग आरती में चढ़ाया हुआ खाना पंडा या कोई पुजारी नहीं खाता, बल्कि यह महानिवाणज़्ी के महंत प्रकाशपुरी महाराज के लिए पहुंचाया जाता है।

संध्या आरती में गूंजते हैं डमरू-झांझ
भगवान महाकाल की संध्या आरती विशेष होती है। इस आरती में झांझ-डमरू और नगाड़ों की गूंज सुनाई देती है। बाबा का भांग और ड्रायफू्रट से अद्भुत शृंगार किया जाता है। आरती में शंख, झालर, नगाड़े आदि बजाए जाते हैं। भोले के भक्त इस महाशृंगार के दशज़्न पाकर खुद को धन्य पाते हैं।

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