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आखिर ‘भाऊÓ बनना चाहते है हिटलर

हिटलर की बायोपिक बने तो उस फिल्म में मैं हिटलर का किरदार निभाना चाहूंगा।

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उज्जैन. हिटलर की बायोपिक बने तो उस फिल्म में मैं हिटलर का किरदार निभाना चाहूंगा। यह बात अभिनव रंगमंडल के तत्वावधान में आयोजित राष्ट्रीय नाट्य समारोह के लिए उज्जैन पहुंचे अभिनेता और रंग मंच के कलाकार व शोला और शबनम, वांटेड, पुकार, सत्या, गर्व में कई यादगार किरदार निभा चुके गोविंद नामदेव ने चर्चा के दौरान कही। उन्होंने कहा कि हिटलर एक पेंटर था, एक कवि था और उसकी जिंदगी में रोमांच भी था। एक कलाकार और प्रेमी होने के बाद भी किस तरह उसने लाखों लोगों को मौत के घाट उतरवा दिया। इसी विरोधाभासी चरित्र को वे पर्दे पर जीवंत करना चाहते हैं।
उन्होंने कहा कि वर्तमान में रियल स्टोरी और बायोपिक पर आधारित फिल्में जो बन रही हैं, वह फिल्म इंडस्ट्री और समाज के लिए अच्छी बात है। पहले सब कुछ काल्पनिक हुआ करता था। अब कुछ प्रेरणाप्रद दर्शकों को देखने के लिए मिल रहा है। कुछ वर्ष पूर्व तक इस प्रकार की फिल्में आर्ट फिल्मों की श्रेणी में आती थी और कुछ फेस्टिवल में ही देखने को मिलती थी वे फिल्में रिलीज भी नहीं हो पाती थी। रियल स्टोरी और बायोपिक के कारण ये फिल्में रिलीज हो रही है और दर्शक इन्हें पसंद भी कर रहे हैं।
फिल्मी दुनिया में श्रीदेवी मेरी गुरु
शनिवार को दुबई में हिंदी फिल्म इतिहास की पहली महिला सुपर स्टार श्रीदेवी के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि फिल्मी दुनिया में वे उनकी गुरु थीं। श्रीदेवी एक एेसी कलाकार थीं, जो एक ही शॉट में कई भाव, कई आवाज और कई वेरियेशंस प्रस्तुत कर देती थी। मुझे उनके साथ किसी फिल्म में काम करने का मौका तो नहीं मिला, परंतु पुकार और वांटेड के दौरान उनसे कई बार मुलाकात हुई है। वे बहुत बड़ी कलाकार थीं और उनकी आकस्मिक मौत का मुझे बहुत दुख है।
रियलिटी शो ने गांव से भी निकाली है प्रतिभा
रियलिटी शो से जुड़े एक सवाल पर उन्होंने कहा कि कोई सोच भी नहीं सकता था कि देश के छोटे गांव में भी कोई कलाकार छिपा हो सकता है। इन शो के कारण गांव की उनकी प्रतिभाओं को भी मंच पर आने का मौका मिल रहा है। कुछ शो में उन्होंने देखा कि बच्चे भी किसी बड़े कलाकार जैसी उम्दा एक्टिंग कर रहे हैं। यह आश्चर्य करने वाली बात है कि बच्चे कितनी जल्दी कितना कुछ सीख रहे हैं।
पुरानी फिल्मों में भाव थे, अब टेक्नॉलोजी है
फिल्म और रंगमंच पर ४३ साल गुजारने के बाद गोविंद नामदेव ने पुरानी और नई फिल्मों में अंतर की बात को लेकर कहा कि पुरानी फिल्मों में भाव हुआ करते थे, जो दर्शकों के दिल को छू जाते थे। कहानी, संगीत, गीत के बोल सबकुछ भाव प्रधान हुआ करता था। आज टेक्नॉलोजी आ गई है और इसके बल पर फिल्मों को हिट कराने के प्रयास किए जा रहे हैं। पुरानी फिल्मों में एक जादू हुआ करता था, जो दर्शकों को बांध लिया करता था। हालांकि आज भी कई फिल्में एेसी बनती हैं, परंतु यदि प्रतिशत की बात करें तो पहले ८० प्रतिशत फिल्में हिट होती थी और आज २० प्रतिशत फिल्में हिट होती हैं।
खुद को परखें, नहीं कर
सकते तो छोड़ दें
नए कलाकारों के लिए उन्होंने कहा कि वे सबसे पहले स्वयं का आकलन करें। यदि वे एक्टिंग करने में सक्षम हैं तो ही वे एक्टिंग करें अन्यथा उसे छोड़ दें। स्वयं के आकलन में स्वयं को समर्थ पाते हैं तो अपने आइडियल का कोई भी सीन अपने सामने रखें और उनके जैसा या उनसे बेहतर करने का प्रयास करें तभी आप सफल हो सकते हैं। फिल्म में आने से पहले मैंने भी १० साल रंगमंच को दिए जब मुझे लगा कि मैं अब किसी भी एक्टर के सामने अपना १०० प्रतिशत दे सकता हूं, तब ही फिल्म साइन की थी। ओ माय गॉड के स्वामी वाले किरदार को वे स्वयं के लिए चैलेंजिंग मानते हैं, जिसमें उन्हें गुस्सा दिखाना था। कई फिल्मों में खलनायक का किरदार निभाने के बाद भी उनका कहना है कि डराने से ज्यादा कठिन है दर्शकों को हंसाना।